बदलाव

 राखी पर सब इकट्ठा हैं घर पर। दोनो भाई, ननद, बच्चे पूरा परिवार उत्सव की मस्ती में डूबा हुआ है, तभी अचानक दीदी ने कहा - आज मैं मम्मी के लिए कुछ लेकर आई हूं। सभी हतप्रभ! ऐसा होता नही सामान्यतः, मम्मी ही हर त्योहार पर सबको कुछ न कुछ देती है हैं अब तक। फिर आज अचानक दीदी को क्या हुआ। उल्टी गंगा कैसे बहेगी।

सब उन्हें घेर कर बैठ गए, बच्चो के चेहरे पे उत्सुकता झलकने लगी, दोनो भाई दम साधे नजर गड़ाए, और हम दोनों बहुएं सकते में कि जाने क्या होगा पैकेट में।

दीदी ने कहा मम्मी जरा अंदर चलिए, और आप सब इंतज़ार कीजिये। हम और शॉक्ड। ये क्या है जाने दीदी क्या करने वाली हैं। ये अच्छा है कि तीनों भाई बहनों में गजब सामंजस्य है। हम बहुएं भी दीदी के साथ मित्रवत रहती हैं। कभी लगा नही की वो ननद हैं। हमेशा दोस्त बहन या सलाहकार की भूमिका में रहती हैं वो। फिर भी थोड़ा सा डर तो लग रहा था।

दरवाजा खुला और दीदी के पीछे मम्मी ने कदम रखे कमरे में।

बच्चे सब आश्चर्य से चीख उठे, हम सब हंसे या कैसे रिएक्ट करें समझ नही आ रहा था। बस पापाजी शांत बैठे थे पर उनके चेहरे पर तनाव दिखाई दे रहा था।

मम्मी सलवार सूट पहनकर बाहर आई थी। पिछले सत्रह सालो में हमने साड़ी में ही देखा था उन्हें। फिर आज ये अचानक परिवर्तन कैसे?

बच्चो छेड़ रहे थे उन्हें। हाय दादी कितनी सुंदर लग रही हो। कितनी छोटी लग रही हो। ऐसे ही रहा करो न। और उनकी दादी के झुर्री भरे चेहरे पर शर्म की लाली बिखरी हुई थी।

दीदी ने घोषणा की। आज से मम्मी भी सूट पहनेंगी।

पापाजी कितने भी गुस्सेवाले ठहरे दीदी की बात नही काटते कभी सो चुप लगाए बैठे रहे।

मम्मी को कुछ समय से उम्र के हिसाब से तकलीफ रहने लगी थी, साड़ी पहनने में थोड़ी मुश्किल होती। कभी मैं कभी छोटी मदद करते तो तैयार हो पाती। डॉक्टर ने बोला सूट पहनें पर पापाजी को कौन मनाए। 

मगर इसके पीछे भी एक कहानी थी। छोटी शादी के पहले हर तरह की ड्रेस पहनती थी, यहां आकर वो भी साड़ी में बंध गयी। दीदी को जब भी ऐसे देखती,बोलती – काश हम भी ऐसे पहन पाते दीदी। अब तो जिंदगी साड़ी के प्लेट्स में सिमट कर रह गयी है। 

साड़ी के फायदे भी हैं तो नुकसान भी। मगर कामकाजी महिला को सूट सुविधाजनक लगता है।आजकल के समय मे वैसे भी पहनावे में बहुत बदलाव आ गया है। आजकल की बहुये तो मॉडलों जैसे कपड़े पहनती हैं। समय के साथ होने वाला परिवर्तन है ये तो। मगर हम साड़ी से बाहर नही आ पाए कभी। ऊपर से सर पर पल्ला खासकर जब पापाजी घर पर हों। आजकल की सिल्की साड़ियां और पल्लू, उफ़्फ़फ़! आसान नही होता काम करते करते सम्हलना।

मम्मी जी के चेहरे पर अलग सी खुशी दिखाई दे रही थी। शायद उनके बहाने उनकी बहुओं के लिए एक दरवाजा खुल जाए ये सोचकर। राखी आज कुछ अलग सी लग रही थी। पर्व के बहाने एक बदलाव की बयार चल पड़ी थी। मेरी बिटिया ने मम्मी जी के जूड़े को खोला और सुंदर सी चोटी डाल दी। सब मम्मी जी के पीछे पड़ गए थे।

ये बोले एक सुंदर वाली फोटो लो भाई मम्मी की। और फैमिली ग्रुप में पोस्ट करो। सब देखें माताराम की उम्र वापस लौट रही है।फिर क्या था फोटो लेने की होड़ मच गई।

मैंने देखा पापाजी की नजर मम्मी जी से मिली और वे हौले से मुस्कुराते हुए उठ कर बरामदे की ओर चल पड़े।

संजय अग्रवाल


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