"सुनिए जी। गजब हो गया। रवि ने आकांक्षा से रिश्ते के लिए मना कर दिया। कह रहा था, उसे आपकी भानजी समिधा से शादी करनी है। अब तो सारी तैयारियाँ हो चुकी हैं। कार्ड भी छप चुके हैं। अब क्या होगा जी।" ममता ने पति किशोरीलाल से कहा।
"कल तक तो सब ठीक था। रातोंरात दुलहन बदल गई। आकांक्षा से पूछते हैं। शायद उसे इस बारे में कोई जानकारी हो।"
आकांक्षा बेटा क्या हुआ? रवि ने तुमसे शादी के लिए क्यों मना कर दिया। अचानक उसने फैसला क्यों बदल दिया? क्या तुम्हें पता है?" किशोरीलाल ने आकांक्षा से पूछा।
"पापा जब अपने ही गला काटने पर आ जाएँ तो क्या हो सकता है। यह सब समिधा का किया धरा है।"
"मतलब" ममता ने हैरानी से पूछा।
"मम्मा। यह सब समिधा का ही तो किया धरा है। पता नहीं रवि को मेरे बारे में क्या उल्टा पुल्टा कहा कि उसने मुझसे शादी करने से इनकार कर दिया। परसों तक तो सब सही था। काश समिधा यहाँ पढ़ने के लिए न आई होती।" आकांक्षा न भरे कंठ से कहा।
"तू चिंता मत कर। हम समझाएँगे रवि को। इस समिधा की बच्ची का तो आज ही गाँव का टिकट करवाती हूँ। बुआ जी से भी बात करेंगे। तेरा रिश्ता यहीं पर होगा।" ममता ने आकांक्षा का कंधा थपथपाते हुए कहा।
सीनहीं मम्मा। अब मुझे रवि से शादी ही नहीं करनी।"
"पर क्यों बेटा। वह तो तेरा प्यार है। थोड़ी-सी गलतफहमी है दूर हो जाएगी।" किशोरीलाल ने कहा।
"नहीं पापा। उसे समझाने की ज़रूरत नहीं। मुझे नहीं मालूम था, रवि कान का कच्चा है। क्या वह मुझे नहीं जानता मैं किस तरह की लड़की हूँ। हमारी कोई नई पहचान तो है नहीं।शादी होने वाली थी। जब विश्वास की डोर ही कच्ची है तो क्या फायदा। गला काटनेवाले तो मिलते ही रहते हैं। अच्छा हुआ जल्दी ही रवि के बारे में पता चल गया। "
उधर ममता और किशोरीलाल के मन में रह- रहकर ये विचार आ रहे थे, काश समिधा इधर न आई होती।
अर्चना कोहली अर्चि
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
मौलिक और स्वरचित
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