शादी

 आज रमाकांत तिवारी जी का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था क्योंकि, उनके इकलौते बेटे अर्पित की शादी थी, अर्पित रेलवे में बड़ा अधिकारी था। उन्होंने बड़ी धूमधाम से शादी की तैयारियां की थी। उन्होंने सारे अरमान निकाल कर रख दिए थे। मोहल्ला  क्या, पड़ोस क्या, रिश्तेदार क्या ऐसा कोई नहीं था जिसे उन्होंने निमंत्रण ना भेजा हो और सभी उनकी शादी में शामिल होने के लिए आए थे  क्योंकि रमाकांत जी खुद बहुत विनम्र और मिलनसार थे उनका कोई दुश्मन तो था ही नहीं सभी दोस्त थे, सभी उनसे बहुत प्यार करते थे। सभी रीति-रिवाज अच्छी तरह संपन्न हो गए बहू घर आ गई जैसा उनका आज्ञाकारी बेटा था वैसी ही सुशील और सुंदर बहू उन्हें मिली, बहू के आने से चारों तरफ घर में रौनक- सी  छा गई। बड़ी खुशी-खुशी दिन बीत रहे थे पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था कि 1 दिन ऑफिस से घर लौटते समय, उनके बेटे की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई।  रमाकांत जी के घर में दुखों का पहाड़ गिर पड़ा अभी तो बहू के हाथ की मेहंदी भी फीकी नहीं हुई थी कि ऐसा दुख  आ पड़ा आखिर होनी को कौन टाल सकता था। तेरहवीं कार्यक्रम निपटने के बाद बहू के मां-बाप ने कहा, “यहां रहकर अकेले क्या करोगी ?  हमारे साथ चलो..” रमाकांत जी ने भी कहा, “फैसला तुम्हारे हाथ में है हम कुछ नहीं कह सकते।” तब बहू ने कहा, “नहीं बाबूजी, मां-बाप के घर से तो मैं कब की विदा हो चुकी,  अब यही मेरा घर है, अगर मैं अकेली हो गई तो आप भी तो अपने बेटे के बिना अकेले हो गए हैं… मैं आपको छोड़कर नहीं जा सकती, आपके बेटे का जो फर्ज आप के प्रति अधूरा रह गया है, अब मैं उसे पूरा करूंगी और आपका सहारा बनूंगी…” इतना कहकर वह अपने कमरे की ओर चली गई। धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार भी चले गए और दिन पहले की तरह सामान्य तरीके से चलने लगा इसी तरह कई साल बीत गए, अब रमाकांत जी की उम्र भी काफी हो चली थी एक उनके बचपन के मित्र हमेशा उनके घर आया-जाया करते थे उन्होंने रमाकांत जी से कहा, “ देखो भाई हमारी तुम्हारी तो उम्र हो चली है लेकिन बहू के बारे में भी तो सोचो हमारे बाद उसका क्या होगा कैसे अपना जीवन गुजारेगी अभी तो उसकी उम्र भी क्या हुई है उसकी दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते बहू बना कर लाए थे तो क्या उसे बेटी बनाकर विदा नहीं कर सकते?”  यह सुनकर रमाकांत जी ने कहा, “विधवा लड़की से कौन शादी करेगा, मैं भी तो इसी ख्याल में रहता हूं कि हमारे बाद उसका क्या होगा। उसने तो अपना फर्ज अच्छी तरह निभाया है और अब भी निभा रही है, अब मुझे भी अपना फर्ज निभाना है।  यदि तुम्हारे नजर में कोई हो तो बताना पर मैं यह बात बहु से कैसे कहूं मुझे तो कहने की हिम्मत नहीं होती तुम ही बात करके देखो” एक दिन रमाकांत जी घर पर नहीं थे तब उनके वही मित्र आए घर पर बहू अकेली थी, बातों-बातों में उन्होंने दूसरी शादी की बात रखी, तो बहू ने पहले मना कर दिया लेकिन जब उसे पता चला कि उसके ससुर भी यही चाहते हैं तो वह बोली, “ अगर मैं घर से चली गई तो पिताजी अकेले हो जाएंगे।” यह सुनकर उन्होंने कहा, “इसकी चिंता ना करो, तुम बस शादी के लिए तैयार हो जाओ और अपने नए जीवन की शुरुआत करो” अर्पित के ऑफिस में ही काम करने वाला उसका दोस्त भी कभी-कभी आया-जाया करता था कई बार रमाकांत जी ने उससे अपनी चिंता का जिक्र किया था जब यह बातें चल रही थी उसी समय वह आया। उसने कहा, “आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है, यदि आप मुझे इस योग्य समझते हैं और अपना बेटा मानते हैं तो मैं शादी के लिए तैयार हूं। बस फिर क्या था, रमाकांत जी ने अपनी बहू की दूसरी शादी कर बेटी के रूप में विदा कर दिया और अपना फर्ज निभाया।✒️

लेखिका : मधुलता सिंह 


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