चुटकी भर सिंदूर

 अरे कालीचरण इतना काम करते हो थोड़ा अपने पर भी ध्यान दिया करो दिन-ब-दिन सेहत गिरती जा रही है टोकते हुए रमेश ने कहा तो कालीचरण मुस्कुराकर रह गया|  कालीचरण रघुपुर गांव का रहने वाला था|  उसका रंग सांवला लेकिन गठा हुआ शरीर था गांव में सब उसे कलवा कह कर बुलाते थे| कलवा के बाप के पास थोड़ी जमीन थी जिससे आराम से गुजर बसर चल रहा था जब कलवा सोलह बरस का हुआ तो उसकी मां उसके पिताजी से कहने लगी कि अब कलवा का ब्याह करो ताकि कुछ कामकाज सीखे, परिवार की जिम्मेदारी समझे नहीं तो कहीं इधर उधर की संगत में बिगड़ ना जाए | इस पर कलवा के बाप ने कहा- अरे अभी खेलने खाने दो शादी ब्याह तो हो ही जाएगा|

कलवा अपने दोस्त रमेश के साथ ही घूमता रहता या फिर अखाड़े जाकर कसरत करता अभी तक उसका यही काम था 1 दिन कलवा की मां अचानक बीमार पड़ गई, बहुत इलाज करवाया लेकिन ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी जैसे-जैसे उसकी सेहत गिर रही थी वैसे वैसे उसके मन में कलवा की शादी कराने की जिद भी बढ़ती जा रही थी आखिर थक हार कर कलवा के पिता ने कलवा की शादी पास के गांव में तय कर दी| शादी हो गई बहु घर आई तो कलवा की मां ने देखा कि बहुत एकदम चांद का टुकड़ा थी,  उसे देख कर कहने लगी अरे मेरे कलवा के तो भाग खुल गए बड़ी सुंदर है| उसकी बहू कुछ दिनों बाद कलवा की मां स्वर्ग सिधार गई|

अब घर में कलवा उसकी बहू और उसके पिता ही थे| धीरे-धीरे उसके पिता भी थकने लगे थे खेती-बाड़ी का काम कलवा के कंधे पर आ गया, कलवा की बहू को अपने रूप पर बड़ा घमंड था कलवा भी उसे बहुत प्यार करता था लेकिन उसकी पत्नी आए दिन उससे अब झगड़ने लगी थी| हर समय कुछ ना कुछ फैशन का सामान या गहनों की फरमाइश करती रहती ना मिलने पर घर में महाभारत मचा देती, अब कलवा के पास कोई ऊपरी आमदनी तो थी नहीं ले देकर खेती थी उसी में जो कर पाता था करता|

1 दिन की बात है, पत्नी की चिल्लाने की आवाज से उसकी नींद खुली तो उसने सुना वह कह रही थी कि इतने में मेरा गुजारा नहीं होता अगर तुम्हारे पास औकात नहीं थी तो ब्याह क्यों किया, और भी ना जाने क्या-क्या बड़बड़ा रही  थी| कलवा अपने दोस्त रमेश के पास गया, वह इन दिनों गांव आया हुआ था एक 2 सालों से वह मुंबई कमाने चला गया था, साल में एकाध बार गांव आता था उससे कलवा ने अपनी आपबीती सुनाई तो वह कहने लगा तुम भी मेरे साथ क्यों नहीं चलते मुंबई, अब खेती-बाड़ी में भी क्या रखा है| कलवा घर आकर मुंबई जाने के बारे में विचार करने लगा रात को खाने के समय उसकी पत्नी बोली मुझे सोने का हार बनवा दो फिर देखती हूं सुखमनी कैसे अकड़ती है,  उसके पति ने उसे नया मंगलसूत्र क्या बनवा दिया वह तो अपने आप को महारानी समझने लगी| कलवा ने सुना तो उसका दिमाग खराब हो गया अभी परसों ही तो 1 जोड़ी पायल ला कर दी थी अब फिर सोने का हार वह खाना छोड़ कर उठ गया और गुस्से से बोला आज के बाद तुझे मैं या तो गहनों से लाद दूंगा या फिर चुटकी भर सिंदूर को तरसा दूंगा|

यह कहते हुए वह घर से बाहर निकल गया और बिना कुछ बताए रमेश के साथ मुंबई चला गया वहां जाकर वह जी तोड़ मेहनत करने लगा 3 साल हो गए थे अब इतने पैसे जमा कर लिए थे जिससे वह गहने खरीद सकता था, 1 दिन काम से जल्दी लौट आया तो रमेश ने पूछा क्यों भाई, आज जल्दी क्यों लौट आए तो उसने कहा अब घर जाने का मन हो रहा है| चल तेरी भाभी के लिए कुछ लेना है,  दोनों ही थोड़ी ही देर में एक सुनार की दुकान पर थे| कलवा ने पत्नी के लिए पैर के बीच हुए कंगन, हार, मंगलसूत्र, पायल सभी कुछ खरीद घर आकर गांव जाने की तैयारी करने लगा|

1 रात अचानक तेज बुखार आ गया तो पास में ही दवाखाना चला गया| डॉक्टर साहब ने कहा तुम काफी कमजोर हो गए हो अच्छा होगा किसी बड़े अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज कराओ,  लेकिन कलवा  ने डॉक्टर की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया बस इतना कहा आप तो ऐसी दवा दे दो जिससे मेरा बुखार कुछ कम हो जाए| डॉक्टर साहब ने कहा दवा तो दे दूंगा पर तुम्हें अपना लंबा इलाज कराना पड़ेगा, यह कहकर कुछ गोलियां दे दी कलवा वापस कमरे आकर सो गया सुबह हुई लेकिन कलवा बिस्तर से ना उठा उसकी तबीयत और खराब हो गई| रमेश आया तो वह जिद करने लगा मुझे ट्रेन में बिठा दे रमेश उसे ट्रेन में बैठा कर काफी देर तक ट्रेन को जाते हुए देखता रहा, इधर कलवा बड़ी मुश्किल से गांव तक पहुंचा घर के दरवाजे पर पहुंचते ही उसने गहनों का डिब्बा पत्नी को देते हुए कहा अब शायद तेरे सारे अरमान पूरे हो जाएंगे| यह कहकर वह जमीन पर गिर पड़ा और फिर कभी ना उठ सका उसकी पत्नी ने डिब्बा खोला तो उसमें गहने देखकर उसके दिमाग में वही शब्द हथौड़े की आवाज की तरह गूंजने लगे आज के बाद याद तो तुझे गहनों से ला दूंगा या चुटकी भर सिंदूर को तरसा दूंगा….✍

लेखिका : मधुलता सिंह 


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