अंकल एक रुपए का मूंगफली दीजिए ना.... कहने वाली बच्ची तृषा अब महानगर के बड़ी कंपनी में नौकरी करने लगी थी ....!
एक दिन बचपन के यादों की बातों के दौरान तृषा ने पूछा .....मम्मी अब वो ठेले वाले अंकल अपनी दुकान बना लिए होंगे ना ...? तृषा का सोचना लाजमी भी था , अपने-अपने स्तर पर सभी लोगों का कुछ ना कुछ तो विकास होता ही है ..।
नहीं बेटा , वो अब साइकिल पर झोला लेकर मूंगफली बेचने निकलते हैं ...पर क्यों मम्मी ...? अब तो वो काफी बूढ़े भी हो गए होंगे ...।
हां बेटा ,बूढ़े तो वो हो गए हैं , पर करें भी तो क्या ...उनकी एक बीमार पत्नी भी है और सबसे बड़ी बात.....
उनकी भविष्य निधि एक्सपायर हो गई ....क्या मतलब मम्मी ...?
उनके बेटे की मृत्यु हो गई बेटा... ये सच है ...औलाद भी अपने अभिभावकों के लिए भविष्य निधि भी तो होते हैं.... किसी भी कारणवश यदि बच्चे बूढ़े माँ-बाप की देखरेख नहीं करते तो समझो आगे की जिंदगी कि उन्हें खुद ही देखभाल करनी पड़ेगी... चाहे परिस्थिति कैसी भी हो..।
मम्मी , कभी-कभी आप उन्हें कुछ पैसे दे दिया कीजिए ...भावुक होती तृषा ने कहा ...तू क्या सोचती है बेटा , यहां मदद करने वाले लोग भी हैं ...।
एक दिन मैंने ₹100 दिए.... साइकिल रोककर उन्होंने पूछा कितने का मूंगफली दूं ....? मैंने मुस्कुरा कर कहा ...भैया , कभी-कभी बिना कुछ लिए भी सिर्फ देना चाहिए ...बहुत खुशी मिलती है ...45 डिग्री के तापमान में , भरी दोपहर में साइकिल रोककर जितना बन पड़ा उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और भगवान से शिकायत करने के बदले बोले.. भगवान मेरे लिए कुछ जरूर सोचे होंगे ..तभी तो ऐसा किया ...
और फिर कोई बात नहीं ... आखरी में शरीर को उठाने के लिए नगर पंचायत तो है ही...!
अरे ऐसा क्यों बोल रहे हैं भैया ...बस इतना ही तो बोल पाई मैं.... उनके सकारात्मक सोच ने मुझे नतमस्तक होने पर मजबूर कर दिया... वरना हम तो एक पेंशन के लिए आमरण अनशन पर बैठ जाते हैं..!
साथियों , ये सच है ..बच्चे हमारे भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं... हम पूरी जिंदगी बच्चों के भविष्य संवारने में लगा देते हैं और जब हमें वास्तव में उनकी जरूरत होती है ..तो न जाने कितने ऐसे कारण सामने आ जाते हैं.. जिसकी वजह से बुजुर्ग उपेक्षित होते हैं...!
( स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी
छत्तीसगढ़
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