रमा अपने मायके आई हुई थी, आज उसके पति उसे लेने आने वाले थे। रमा के माता-पिता ने सुबह से ही तैयारी कर रखी थी। समोसे, ढोकला, मिठाई, आलू पूरी और क्या नहीं बनाया उसकी माँ ने अपने दामाद के लिए। आखिर में शाम को दामाद जी - 'रवि' पधारे।
दिखाने के लिए थोड़ा सा ससुर की तरफ नीचे हुए, जैसे की पैर छू रहे हों, लेकिन अकड़ इतनी कि पूरे क्या आधे भी नहीं झुके। रमा के पिता ने उन्हें ड्रॉइंग रूम में बिठाया, चाय नाश्ता, खाना सब कराया।
रमा जैसे ही खाने की प्लेट उठाकर ले जाने लगी, रवि ने कहा - 'जल्दी करो, घर से 2 बार फ़ोन आ चुका है'। बेचारी रमा ने फटाफट खाना खाया। निकलते वक़्त रमा की माँ ने दामाद जी के तिलक लगाया और शगुन के पैसे दिए।हर बार की तरह 'अरे नहीं नहीं मम्मी जी, इसकी क्या जरुरत है' कहते हुए उन्होंने पैसे अपने जेब में रख लिए।
जैसे ही रमा रवि के साथ ससुराल पहुंची, सास ने रवि की तरफ देखकर कहा - 'आ गया बेटा, थक गया होगा? ले पानी पी ले।' रमा की तरफ तो सास ने देखा भी नहीं, फिर भी वो झुकी और उसने सास के पैर छुए। जैसे ही रसोई में घुसी तो देखा बर्तनों का ढेर लगा हुआ था। रमा ने खुद ही अपना पानी का गिलास भरकर पिया और काम में लग गयी।रमा सोचने लगी कि पतिदेव तुम्हारा ससुराल कितना अच्छा और मेरा कितना रुखा। ये कोई नई बात नहीं थी रमा के लिए,
हर बार उसके साथ पराये जैसा ही व्यवहार होता था। लेकिन रमा ने बुरा मानना छोड़ दिया था, क्योंकि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, ये वो अच्छे से समझ गयी थी। रमा चाहती थी कि वो अपनी सास की सोच बदले, लेकिन वो जितना कोशिश करती उतना ही उसकी सास उससे नीचे दिखाती। उसने काफी बार रवि से भी कहने की कोशिश की लेकिन रवि उल्टा उससे ही डांट देता और कहता 'मेरी माँ कभी गलत नहीं हो सकती।
शुरू शुरू में तो रमा बहुत रोती, उसे लगता कि उसका कोई नहीं है। कभी कभी तो नाराज़ होकर खाना भी नहीं खाती, लेकिन मजाल है कि कोई पूछ ले कि तुमने खाना क्यों नहीं खाया? उसकी सास अपने बेटे के आगे और आग लगाती - 'बहू के तो नखरे ही बहुत हैं, बताओ खाना न खाने वाली क्या बात है।धीरे धीरे रमा को समझ आया कि रोना कोई समाधान नहीं है।
उससे ये बात भी समझ आई कि इस घर में बहू सिर्फ काम करने के लिए है। उसकी कदर किसी को भी नहीं है। अब रमा रोती नहीं थी, अपना पूरा ख्याल रखने लगी थी, टाइम पर खाना खाती थी। अगर सास कुछ कहती तो एक कान से सुनती और दूसरे कान से निकल देती थी, क्योंकि वो जानती थी कि उसकी साइड कोई नहीं लेगा।उसने ये उम्मीद करना छोड़ दिया कि उसका पति उससे पूछेगा कि तुमने खाना खाया कि नहीं। सास उससे माँ की तरह अपने हाथों से खाना परोसेगी। वो समझ गयी थी कि उसे खुद को मजबूत करना होगा। इंसान खुद को बदल सकता है, लेकिन घटिया सोच वाले इंसान को कभी नहीं। कहते हैं ना जितना कीचड़ में पैर मारो, कीचड़ खुद पर ही उछल कर आता है।
दुनिया में ऐसी सास और पति बहुत है इसलिए खुद के लिए जीना और खुद की फिक्र करना सीखो...
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