देह से परे

 पकवान की आती खुशबू से विनय एकबारगी तो चौंक उठा फिर सिर झटककर बोला "किसी और के किचन से आ रही होगी।"

काव्या के जाने के बाद घर और घर के सदस्य कोमा की स्थिति में जी रहे थे। बेटे को जन्म देते ही काव्या की आकस्मिक मृत्यु ने सभी को हिलाकर रख दिया था।

साल बीतने के बाद भी नार्मल नहीं हो पा रहे थे। आखिर वह खुशबू की ओर खिंचता हुआ किचन में पहुँच ही गया।

आश्चर्य से "माँ तुम पकवान बना रही हो।"

"मेरी सहेली आ रही है मिलने।"

"कौन ?"

"तुम नहीं जानते, शादी के बाद हम मिले ही नहीं, अब  पैंतीस साल बाद हम मिल रहे है।"

माँ के चेहरे पर झलकती खुशी उसे भी सकून दे रही थी।

"क्या तुम पहचान लोगी उसे? मेरा मतलब वह तो काफी बदल गयी होगी।"

"वो तो है, पर पहचान लूँगी। सबसे ज्यादा तो मुझे उसके बच्चे के बारे में जानने की जिज्ञासा है।"

"ऐसा क्या है?"

"उसका पहला बच्चा किन्नर था, पर उसने उस बच्चे को किन्नरों को देने से साफ इंकार कर दिया था।"

"फिर तो बहुत हँगामा हुआ होगा।"

"हाँ, पर उसका पति उसके साथ था तो परिवार वालों को मानना पड़ा।"

घंटी बजने पर "लगता है वह आ गयी।"

दोनों सहेलियाँ गले कम मिल रही थी। रो ज्यादा रही थी। यह देख उसकी भी आँखें भर आईं।

वह बैठा तो अपने कमरे में था पर कान उनकी बातें सुनने में लगे थे उसे भी उत्सुकता थी उनके बच्चे के बारे मेंं जानने की।

माँ का पहला प्रश्न भी यही था।

"डिप्टी कलेक्टर है। इसी शहर में पोस्टिंग हुई है,उसी ने तो तेरा पता ढूढ़ने में मेरी मदद की।"

"अरे वाह ! तूने तो उसे पढ़ा लिखा कर उसकी जिन्दगी ही बदल दी।"

"और...."

"इसके बाद हमनें दूसरी संतान के बारे में सोचा ही नहीं क्या पता कहीं वह भी......"

थोड़ा रुककर "और यदि नार्मल भी हुई तो कहीं उसके मोह में हम इसके साथ अन्याय न कर बैठे।"

"सही किया तूने।"

"लेकिन उसकी आगे की जिन्दगी के लिए चिंतित हूँ मेरे न रहने पर अकेली हो जाएगी। उसे तो कोई जीवनसाथी भी न मिलेगा।"

".......…"

"अच्छा छोड़, तू अपनी सुना। तू तो नाती पोतों वाली हो गयी है।"

लम्बी सांस भरते हुए। "चार साल की नातिन और एक साल का नाती है। नाती को जन्म देकर बहु हमें छोड़ गई।"

"ओह! ये तो बहुत बुरा हुआ। दूसरी शादी क्यों नहीं की बेटे की।"

"कहा तो बहुत, पर मना करता है उसे डर है कहीं दूसरी के साथ भी ऐसा हुआ तो।"

अचानक विनय कमरे से बाहर आता है

"माँ मैं इनकी बेटी से शादी करने तैयार हूँ।"

दोनों आश्चर्य से मुँह फाड़े देखती है।

"तू जानता है कि वह कौन है? फिर भी "

"मुझे पत्नी की नहीं, एक पढ़ी लिखी और समझदार साथी की जरुरत है। और कुछ रिश्ते देह से परे भी हो सकते हैं।"

दोनों सहेलियाँ इस बार फिर गले लग रो पड़ी आँसुओं की धार पहले से ज्यादा थी।

-मधु जैन

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