बहू तनिक सर पर आँचल रखकर अपने ससुरजी के सामने जाया करो हमारे संस्कार हैं सासूमाँ की आवाज कानों में सूई की भांति चुभती । ओफ हो जब देखो तो मुझे ही संस्कार और तहजीब की सीख देती हैं अपने बिगड़ैल बेटा को नहीं सुधारती जो सुबह दस ग्यारह बजे सोकर उठते और पंद्रह मिनट के अंदर झटपट तैयार हो शशांक ऑफिस निकल जाते । ननद रानी का भी क्या कहना इतनी ठसक कि नाक पर मक्खी भी न बैठने दे वो ।
पापा ऐसे परिवार में मेरा ब्याह करवाए जिनके साथ समझौता करना पड़ा है क्योंकि विदाई के वक्त उनकी कही बात कि बेटा अब मैं हरिद्वार में रहने जा रहा हूँ तुम अपने ससुराल में सबके साथ हिल मिल कर रहना बेटा , अपने पापा के मान सम्मान को बरकरार रखना सहेजना भी।
यहाँ सब कुछ उलटफेर है। दूसरे दिन ही रसोईघर में लगा दिया गया है सुबह से लेकर रात के बारह बजे तक चक्करघिन्नी की भाँति घूमती रहती तुर्रा सासूमाँ की तानाशाही । पेंडुलम बन गई मैं।
शशांक का देर तक सोना सालता है मुझे । उससे कह भी नहीं पाती कि आपकी माँ की टोकाटोकी से त्रस्त हूँ। मेरी बी एड की डिग्री घर गृहस्थी के चक्कर में अलमारी के कोने में पड़ी है।
एक साल के अंदर घरेलू कार्य के बोझ तले मेरा शरीर कमजोर होता जा रहा है कमर दर्द से परेशान हो जाती , दाएं से बाएं करवट लेना बला हो रहा है । अब सर के ऊपर पानी आ गया है घना कोहरा सा छा रहा मन के अंदर ।
पापा को फोन करते हुए,
मैं हरिद्वार आ रही हूँ और अब असहनीय हो रहा है मेरे लिए यहाँ । पापा के समक्ष मन का गुबार फूट फूट कर ज्वार भाटा बनकर निकला है ।
ठीक है मैं आ रहा हूं दो दिन में पापा आ गए हैं।
समधन जी आपको अपनी बेटी दिए हैं पर आपने इसे काम करनेवाली बांदी समझ लिया है और मेरी बेटी की बद से बदतर हाल कर दी है आपने। सासूमाँ की बोलती बंद है जिसके दामन में बदनामी के छींटे पड़े हो वो भला क्या बोले क्योंकि उनकी बेटी भी तलाकशुदा है ।
जमीनी हकीकत यह है कि अपनी बेटी दामाद के शादीशुदा जीवन पर इतना ज्यादा हस्तक्षेप करती गई हैं और दामाद को " तू ता अरे तरे " अपशब्द बोलकर अशोभनीय जनक व्यवहार की हैं और ननद भी अपने माँ के कटू बातों में आ कर बसी बसाई गृहस्थी उजाड़ बैठी है अब मायके रह रही है ।
अपना सामान पैक कर लो आज ही हम हरिद्वार चल रहे हैं शाम को ट्रेन है । शशांक भी अपने माँ के प्रभाव में हैं ।चलो कोई नहीं ।
हरिद्वार आकर ऋषिकेश के पास एक स्कूल ज्वाइन किया है और पापा के साथ पावन गंगा नदी के बहती स्वछंद स्वच्छ जलधारा के साथ साथ बहती जा रही हूँ । पापा भी निश्चिंत हैं कि मेरी बेटी अब मेरे पास सुरक्षित और खुश है।
ऋषिकेश के कन्या उच्च विद्यालय में इंग्लिश के नवीन शिक्षक मुकुंद आए हैं जहां मैं भी हूँ हमदोनों में छन रही है । मुकुंद भी मुझे चाहने लगे हैं मुकुंद के जीवन की विडंबना यह है कि उनकी पहली पत्नी भी पहले प्रसव के दौरान गुजर गई थी बच्चा पेट में ही खत्म हो गया था।
हमदोनों का हकीकत समकक्ष है । भगवान भी जोड़ी बना ही देते हैं।
-अंजु ओझा
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