“ कैसी हो सरला चाची….घूम आई बेटा बहू का विदेशी घर …. फिर भी मुँह लटका रखा है… बहुत याद आ रही है क्या बेटा बहू की?” पड़ोस में रहने वाली मंजू ने कहा
“ क्या देश क्या विदेश मंजू सब जगह की एक ही कहानी है… कहते हैं ना घाट घाट का पानी पी लिया तब समझ आया कहा का पानी रास आया….बस हो गया अब कही ना जाना यही पड़ी रहूँगी जब तक ज़िन्दगी बाकी है।” सरला चाची की आवाज़ में अब पहले सी खनक नहीं लग रही थी जो चार महीने पहले विदेश जाने को लेकर हो रही थी
“ ऐसा क्यों कह रही हो चाची… विपुल तो तुम्हारा सबसे चहेता लाडला छोटा बेटा था… माँ को यहाँ वहाँ घुमाने की कितनी बातें करता था फिर अब आप कह रही हो बस अब कही नहीं जाना?” मंजू ने पूछा
“ हाँ बेटा सही कह रही हूँ जो मान सम्मान बड़ी बहू करे है… जितनी मेरी सेवा वो करे है उतनी तो कोई भी बहू किसी जन्म में ना कर सकें…उधर गई तो एक दिन तबियत नासाज़ हो गई..एक बार उठ कर बाथरूम जा ही रही थी कि वही बिस्तर के पास हो गया…छोटी बहू ने जो सुनाया मत ही पूछो और यहाँ जब कभी हालत ख़राब होती बड़ी बहू नाक मुँह बिना सिकोड़ें सब कर देती बता ऐसे में यहाँ ना रहूँ तो कहाँ रहूँ… चार बच्चों के पास रहकर सारे अनुभव करने के बाद यही समझ आया जो दिल से करता है वो कैसी भी परिस्थिति हो आपका मान करेगा ध्यान रखेगा बस हमें उन्हें पहचान कर उसके साथ बैसा व्यवहार करना चाहिए…बाकी जो जैसा चलता है चलता ही रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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