जान पर भारी पड़ा शौक़

 “ क्या कह रही हो कनक बहू… दिमाग़ ठिकाने पर तो है।”  राजबाला जी बहू की बात सुन कर चिल्लाते हुए बोली 

“ मैं सच कह रही हूँ मम्मी जी… रचिता से बात कर ही रही थी कि वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी और उसके बाद मुझे बस घास मिट्टी दिख रही थी फिर फोन ही बंद हो गया लगता है उन दोनों को जंगली जानवर खा गए।” कहते हुए कनक दहाड़े मार कर रोने लगी 

राजबाला जी बेटे जयंत को कॉल लगा रही थी उसका फ़ोन नॉट रिचेबेल बता रहा था परिवार के सभी सदस्य परेशान हो रहे थे तभी रात के ग्यारह बजे दरवाज़े की घंटी बजी … सामने जयंत और रचिता के सिर पर पट्टी बँधी देख सब हैरान हो गए।

जयंत रचिता को सहारा देकर सोफे पर बिठाते हुए चेहरे पर ग़ुस्से के भाव लाते हुए कहा,” आज के बाद अगर तुम अपने फ़ोटो खिंचवाने के शौक़ को लेकर जंगल में गई तो याद रखना!!” 

“ तौबा करती हूँ जयंत अब ये शौक़ फिर नहीं।” सिर झुकाए रचिता ने कहा

सब दोनों को हैरानी से देख रहे थे।

तब जयंत ने कहा,” आज इसके फ़ोटो खिंचवाने का शौक़ दोनों की जान ले लेता… राखी बाँध कर जब इसके घर से आ रहे थे तब रास्ते में जो जंगल पड़ता है उधर मैडम फ़ोटो खिंचवाने उतर गई… एक तो बारिश की वजह से पूरा  झाड़ झंखाड़ …उपर से उबड़ खाबड़ रास्ते…मना कर रहा …फिर भी चली जी रही …एक लता में पैर अटका गिरने लगी इसको बचाने में मैं गिरा पास के पत्थर पर सिर लगा इसका फोन तो मिला भी नहीं पता नहीं किसको नज़ारे दिखाने में लगी थी वो तो कहो हम बच गए नहीं तो पता नहीं क्या होता।” सोफे पर बैठते हुए जयंत का चेहरे बता रहा था कि आज का हादसा उन्हें मौत के मुँह में भी ले जा सकता था 

“ तुम लोगों को उस जंगल मे उतरने की क्या ज़रूरत थी दिमाग़ विमाग है कि नहीं ।” राजबाला जी क्रोधित हो कर बोली

“ माफ कर दीजिए मम्मी जी वो मेरी वजह से…. आज के बाद तौबा करती करती हूँ जो कभी ऐसे ख़तरनाक जगहों पर अपने शौक़ को हावी होने दूँगी जहाँ उस शौक़ में जान ही चली जाए।”शर्मिंदा होते हुए रचिता ने कहा

 “ हाँ यही सही रहेगा ।” पूरा परिवार एक साथ रचिता से बोल पड़ा 

रचिता कान पकड़ कर सब से सॉरी कहने लगी ।

✍️रश्मि प्रकाश 


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