कामता प्रसाद जी अनमने मन से सुबह की चाय पी रहे थे। तब बहू सुनैना ने उनकी ओर देखा तो उनकी आंखें आंसूओ से डबडबाई हुई थी तब वह बोली- पापा क्या हुआ ,आप इतना क्यों दुखी हो ?तब वो बोले- जिस बिटिया को इतना बड़ा किया,उसे सर आंखों बिठाया वो ही अपनी न रही। तब वो पापा से बोली- हां पापा उन्होंने अपनी बिटिया की शादी में न बुलाया तो क्या हुआ उनकी रिया ही आपके और हम सबके आशीर्वाद से वंचित हो गई। उन्होंने न तो रोका में पूछा न ही शादी में ....आपकी उनसे कुछ बहस हुई तो दीदी भी चुप न थी। उन्होंने भी कहा-" देहरी में पैर न रखूंगी, पर एक हाथ से ताली नहीं बजती।" माना कि आपने गुस्से में कुछ सुनाया तो क्या ये पत्थर की लकीर हो गई! उन्होंने तो जीते जी हम सबसे रिश्ता ही तोड़ दिया। तब कामता प्रसाद जी बोले- बेटा जो बेटी मायके का मान न रखे, उससे उम्मीद ही क्या की जा सकती है, जिसे पापा की अहमियत न हो तो ऐसे रिश्ते का टूट ही जाना चाहिए। सबके दिन अच्छे बुरे दोनों आते हैं। एक न दिन उसे निश्चित ही एहसास होगा। हम सबकी कमी लगेगी। पैसे के जोर पर खून के रिश्ते नहीं खरीदे जा सकते हैं।
तब बहू ने कहा- पापा ऐसी बेटी पहली देखी जिसका सगे भाई बहन, पिता के बिना चल गया। रिश्तेदार भी मुंह देखी बातें कर रहे थे। और सब शादी में शामिल हुए और बता रहे आपकी बेटी को कोई मलाल न था।
और बिटिया की शादी बिना नाना के आशीर्वाद के संपन्न हो गई। तब रिया विदाई के समय कह रही मम्मी आपने नाना और मामा मामी को अपने अहम की वजह से नहीं बुलाया आपने हमें सब तो दिया नाना के आशीर्वाद से वंचित रह गई। भले ही कोई भी बात खून के रिश्ते से बड़ी नहीं होती। आप भले ही कभी बात न करो पर अपने आप को रोक नहीं पाऊगी, पापा की भी आपके सामने एक न चली। अब मैं वहां फोन करके बात करुंगी आप के किए की गलती मानूंगी।
इस तरह बेटी का विदाई हो गई।
स्वरचित रचना
अमिता कुचया
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