रावतजी और बनर्जी बाबू बेंगलोर में आयकर विभाग में एक साथ काम करते थे.रावत जी मारवाड़ से थे और बनर्जी बाबू कोलकाता से थे। बरसों से साथ में काम करते हुए दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी। नौकरी के सिलसिले में बनर्जी बाबू कई राज्यों में रह चुके थे,. और काफ़ी अनुभवी भी थे।बनर्जी बाबू जब भी कोलकाता जाते तो वहाँ से रावतजी और उनके परिवार के लिए संदेश रसगुल्ले और अन्य मिठाइयाँ तथा मुलायम बनावट और जीवंत रंगो वाली गारद सिल्क और जामदानी साड़ियां लाना नहीं भूलते थे। वे बहुत भावुक प्रकृति के इंसान थे.रावतजी को यह सब बहुत ओपचारिक लगता था वे यह सब पसंद नहीं करते थे पर और बंगाली बाबू के आग्रह के आगे कुछ कह नहीं पाते थे।रावतजी सोचते भी रहते थे कि वे भी मारवाड़ से बनर्जी बाबू के लिए कुछ राजस्थानी वस्तुएँ मिठाइयाँ,और साड़ियाँ लेकर आये पर पर एक तो उनका बजट और दूसरा संकुचित मन उन्हें यह सब करने से रोक देता था. वह अपने आप को यह कहकर दिलासा देते कि बेंगलुरू का चिकपेट पूरा राजस्थानी सामान से भरा पड़ा है ,पर उनके मन में टीस उठती रहती थी।
एक बार रावतजी को ज़रूरी काम से मारवाड़ जाना था उन्होंने चार दिन की छुट्टी के लिए आवेदन भी दिया पर बॉस ने कार्य की अधिकता का हवाला देते हुए स्पष्ट इनकार कर दिया. रावतजी अपनी सीट पर मुँह लटकाए बैठे थे बनर्जी बाबू ने उनसे उनका हाल पूछा तो उन्होंने अपनी व्यथा बतायी.बनर्जी बाबू ने हँसते हुए कहा “इतनी सी बात है ,चलो मेरे साथ बॉस से बात करते हैं”।बनर्जी बाबू ने बॉस को यह कहकर मना लिया की रावतजी की सीट का काम भी मैं कर लूँगा केवल चार दिन की ही तो बात है”। बास को क्या आपत्ति होती उन्हें तो काम से मतलब था उन्होंने तुरंत छुट्टी मंज़ूर कर दी ।रावत जी गदगद हो गये, और उन्हें धन्यवाद अदा कर मारवाड़ से उनके लिए साड़ियाँ,मिठाइयाँ और कुछ वस्तुएँ लाने का वादा कर घर की तरफ भागे।
घर जाकर देखा तो पत्नी मुँह लटकाए बैठी थी पूछने पर उसने बताया कि “पूना में बड़े भैया दुकानसे लौटते वक़्त स्कूटी की टक्कर से घायल हो गए और उन्हें फ़्रैक्चर हो गया है हम तुरंत पूना चलेंगे उन्हें देखने। रावत जी पर तो मानो बिजली गिर गई। वे बड़े धर्मसंकट में फँस गए ।कहाँ तो बनर्जी से बड़े बड़े वादे कर जैसे तैसे छुट्टी लेकर घर पहुँचे और ये कौन सी आफ़त आ गई और अब कुछ हो नहीं सकता था।
ख़ैर रावतजी परिवार के साथ पूना पहुँच गये। तीसरे दिन ही पूना होकर लौट आए। अगले दिन भी वे छुट्टी पर ही थे अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए चिकपेट जाकर कुछ राजस्थानी साड़ियाँ ,केर सांगरी की सूखी सब्ज़ियों और अचार के पैकेट खरीद लाए।. अगले दिन ऑफिस में बनर्जी बाबू से आँखें मिलाते हुए झेंप रहे थे । बनर्जी बाबू ने पूछा भी “आपका मारवाड़ टूर कैसा रहा “वे बोले “बहुत अच्छा रहा ,आपके लिए वहाँ से कुछ सामान भी लेकर आया हूँ। एक दो दिन बाद वे बनर्जी बाबू के घर मिलने चले गए और उन्हें सामान थमा कर वापस घर आ गये। रावत जी महसूस कर रहे थे कि बनर्जी बाबू कुछ दिनों से पहले जैसे गर्मजोशी से नहीं मिल पा रहे थे वे आजकल टालमटोल के साथ उनसे बात करते हैं।पहले तो उन्होंने सोचा कि किसी घरेलु समस्या की वजह से ऐसा होगा और यह सिलसिला एक सप्ताह से ज़्यादा चला तो उनसे नहीं रहा गया और वे बनर्जी से पूछ ही बैठे” सब ठीक ठाक तो है”।बनर्जी बाबू तो जैसे भरें बैठे थे बोले “ देखो रावतजी, किसी का विश्वास तोड़ना अच्छा नहीं होता”।रावत जी बोले “मैं कुछ समझा नहीं “।हालाँकि उन्हें कुछ अंदेशा हो गया था पर वे अनजान बने रहे ।
तब बनर्जी बाबू बोले”रावतजी,जी मैंने भी घाट घाट का पानी पिया है।आपने मुझे जो सामान लोकल मार्केट की दुकान से लाकर दिया है, वह मेरे सामने वाले फ्लैट में रहने वाले मेरे मित्र जयसिंह जी की दुकान का है।मुझे आपके द्वारा लाई गई केर सांगरी के स्वाद में काफ़ी फ़र्क लगा क्योंकि मैं तो ख़ुद मारवाड़ में रह चुका हूँ और स्वाद और शुद्ता भी जानता हूँ। एक दिन जब जयसिंह जी मेरे घर आए थे मैंने इस बात का ज़िक्र किया तो आपके द्वारा लाए पैकेट देखते ही उन्होंने कहा यह पैकेट मेरी ही दुकान के है और ये तो सबग्रेड है, और ए ग्रेड बढ़िया क्वालिटी के पैकेट अलग होते हैं। तब मैंने तुम्हारी फोटो जयसिंह जी को दिखाई तो बोले यह सज्जन तो परसों ही चिकपेट से साड़ियाँ ख़रीदते हुए मेरी दुकान पर आए थे, और ये सामान वही से लिया था।जय सिंह जी मुझे बोले भी थे कि “क्या आपके मित्र ऐसेहैं”।
सच का सामना होने से रावत जी ने शर्मिंदा होते हुए माफ़ी माँगी और उन्होंने अपने साथ हुआ सारा घटनाक्रम बताया तो बनर्जी बाबू बोले कि “आप बजाय घटिया सामान लाने के आप मुझे यह बात पहले बता देते तो हमारी दोस्तीऔर विश्वास बना रहता। आपने मेरी भावनाओं की क़दर नहीं की।
रावत जी मन ही मन अपने इस कृत्य पर बहुत दुखी थे।
विजय कुमार शर्मा
कोटा राजस्थान
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