मज़दूर या मजबूर

 सुबह की सैर के बाद जब हम घर आ रहे थे तो देखा कि कॉलोनी के गेट के पास ही सोसायटी के कर्मचारियों की सभा लगी हुई हैं ।

हम दोनों पति पत्नी को देखते ही उनमें से सबसे पुराना कर्मचारी सामने आया और बोला,” साहब आप लोग हमारी कुछ मदद कर सकते हैं तो कृपया कर के कर दीजिए नहीं तो हमारे नए सुपरवाइज़र हमारी गर्दन पर छुरी चला रहे हैं और हम लोग बस मजबूरी में उनकी बात मान रहे हैं।”

“ क्या बात है रामदीन..  खुल कर पूरी बात बताइए ।”अनुज ने पूछा 

“ साहब हम जिस कम्पनी के मार्फ़त काम करते हैं वहाँ का सुपरवाइज़र हम सबसे हमारी तनख़्वाह से दो दो हज़ार रूपये की माँग करता है … कहते है नहीं दोगे तो निकाल दिए जाओगे… अब आप ही बताइए साहब हमें आठ- दस हज़ार रूपये तनख़्वाह ही मिलता है उसमें से भी सुपरवाइज़र दो हज़ार माँग लेता है….पहले वाले सुपरवाइज़र भी लेते थे पर साल में एक बार ….शुरू में हमें लगा  ये भी एक बार ले रहा …अब नहीं माँगेगा पर ये तो हर महीने ही हमसे पैसे लेता है… हम सब का घर चलाना मुश्किल हो रहा है…हम लोग मज़दूर है साहब इसलिए शायद मजबूर है …. बस  हम सब यहाँ उस पर ही चर्चा कर रहे हैं ।” रामदीन ने कहा 

“ पर ये तो गलत है… ऐसा नहीं करना चाहिए….एक तो वो उस कम्पनी से भी पैसे ले रहा फिर आप सब से भी …आप लोग कम्पनी में किसी और से क्यों नहीं कहते ? “मैंने सवाल किया 

“ मेमसाहेब कोशिश की थी पर हमारी बात साहब लोगों से कहा हो पाती…उपर से सुपरवाइज़र हम पर नज़रें जमाए रखता है ।” रामदीन दीन हीन सा बोला

“ अच्छा मैं पता करवाता हूँ ।” अनुज उसे सांत्वना दे कर घर आ गए

कम्पनी में जब इस बारे में बात हुई तो वहाँ सबने नकार दिया कि ऐसा कुछ नहीं होता सबको बराबर से पूरी तनख़्वाह दे दी जाती है ।

एक दिन सुपरवाइज़र किसी काम से सोसायटी में आया हुआ था संजोग से अनुज की मुलाक़ात हो गई..

“ अरे सुपरवाइज़र जी क्यों इन ग़रीबों के गर्दन पर छुरी चला रहे हो… दस हज़ार की तनख़्वाह से दो हज़ार आप ले लेते हो…भई जीने के लिए पैसे की ज़रूरत सबको पड़ती है एक बस आप ही तो नहीं है… क्यों ग़रीबों की बद्दुआ ले रहे हैं…अपनी कमाई खाइए उन्हें उनकी खाने दीजिए… अच्छा होगा आप बात समझ जाए नहीं तो तरीक़े बहुत होते हैं ।” 

सुपरवाइज़र गर्दन झुकाएँ सुन रहा था….

“ जी साहब समझ रहा हूँ … एक बार तनख़्वाह से अतिरिक्त पैसे मिले तो ….बस पैसों के लालच में आ गया था।” सुपरवाइज़र कह कर चला गया 

बाद में पता चला सुपरवाइज़र ने पैसे लेना बंद कर दिया है और सभी कर्मचारी खुश हैं ।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 


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