खरपतवार

 सुषमा के बेटे  की नौकरी लगते ही उसके लिए लड़की वालों की तरफ से रिश्ते आने लगे। एक जगह रिश्ता तय हो गया। चट मंगनी पट ब्याह, जैसे शादी की तारीख भी तय हो गई । सुषमा बहुत खुश थी ।मां के घर 2 दिन के लिए गई ,ताकि शादी का न्योता भी दे दे और मां से शादी की तैयारियों के बारे में अच्छे से पता कर ले।

सुषमा ससुराल में सबसे छोटी बहू है।अभी तक दो बड़ी जेठानियों और ननदों के यहां बहू का आगमन हो चुका है, उनसे कई कई बातें उसने सुन रखी थी तो सास बनने का उत्साह भी था और, मन में आने वाली बहू को लेकर अनेक शंकाए भी।

मां ने प्यार से समझाया" देखो सुषमा, हम खेती-बाड़ी वाले है।"

'हां, तो? 'सुषमा ने असमंजस से कहा।

'तो बीज बोने से पहले खेत को तैयार करना पड़ता है गुडाई, निंदाई कर खरपतवार उखाड़ना पड़ता है, मौसम देखकर बीज पानी डालना पड़ता है।'

'हां मां, पर आप यह सब मुझे क्यों समझा रही है?

'बेटी तुम भी अपनी गृहस्थी के बगिया में नई पौध लगा रही हो ना? तो पहले सुनी सुनाई बातों की खरपतवार हटाओ और अपने मन आंगन को साफ कर आने वाली बहू का स्वागत करो। और हां यह पौधा जो तुम्हारे घर आंगन की शोभा बनेगा उसकी देखभाल बहुत प्यार से करो। पर जल्दी फल पाने की इच्छा मत रखना तुम्हारे अच्छे व्यवहार रूपी खाद से प्यार के फूल खिलेंगे।'

मां की बातों ने मन के आंगन में उगी शंकाओं की सारी खरपतवार उखाड़ दी, और एक साफ सुथरा मन आंगन लेकर सुषमा बहू के स्वागत के लिए चल पड़ी।

_______________________    लेखन..प्रतिभा परांजपे.


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