सेठ मजदूर से बोला " राजू आज ये सारी बोरियाँ उधर डालनी है। कल यहाँ नया माल आयेगा।" राजू बोला " आधा घण्टे बाद मेरी ड्यूटी खत्म हो जायेगी सेठ। उसके बाद मै घर जाऊंगा। आज बीवी बच्चों को मेला दिखाने ले जाना है। इसलिए बाकी का काम कल ही होगा। " सेठ बोला " अरे भाई ऑवर टाइम के पैसे दूंगा। फ्री मे थोड़े करवा रहा हूँ। " राजू बोला " मुझे पैसे नही चाहिए सेठ। मैंने बच्चों से वादा किया है आज रात उन्हे मेले मे जरूर ले जाऊंगा। " सेठ गुस्से मे बोला " घर मे आ रही लक्ष्मी के लिए क्यों मना कर रहा है। मेले मे कल चले जाना। मेला तो चार दिन चलेगा न? " राजू बोला " उस वादे का क्या करूँ सेठ जो बीवी बच्चों से कर आया हूँ। आज मुझे अपनो के साथ कुछ हंसी खुशी के पल बिताने है। मेला तो कल भी लगेगा मगर वो घर पर इंतजार कर रहे हैं। मेरे घर पर नही पहुँचने पर उनके चेहरे की मुस्कान बुझ जायेगी उसका मोल आपकी दिहाड़ी से बहुत ज्यादा है।" सेठ अंट गया बोला " मै रात की दुगुनी दिहाड़ी दूंगा। " राजू बोला "नही चाहिए!! " सेठ बोला " अरे यार पांच गुनी दिहाड़ी दूंगा। ये काम तो तुझे आज ही करना पड़ेगा। " राजू बोला " नही चाहिए सेठ। " सेठ आश्चर्य से राजू की तरफ देखता रहा । अपना सिर खुजाता रहा फिर काफी देर सोचने के बाद बोला " भाई तु और तेरा परिवार मुझसे ज्यादा अमीर है। आज मुझे समझ मे आ गया है कि अपनो के साथ "खुशी के पल" जीना ज्यादा जरूरी है। कमाई तो जीवनभर चलती रहेगी। हम यहाँ सिर्फ कमाने थोड़े आये हैं। जीने आए हैं। तु मेले जा। काम होता रहेगा। और इस बार मै तुझे पांच दिन की दिहाड़ी फ्री मे दूंगा। बच्चों को बोलना ताऊ जी ने भेजे हैं। मै भी आज अपने परिवार को लेकर मेले मे आ रहा हूँ। लेखक डी आर सैनी।
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