खून के आंसू रुलाने वाला आज का मनहूस दिन रामलाल को भीतर तक तोड़ गया. ये शनि की वक्र दृष्टि पड़ी या बुरे ग्रहों की धमाचौकड़ी, रामलाल एक पेड़ के साए में सर पकड़े बैठा था. हफ्ता न दे पाने के कारण मन्युस्पिलटी के बड़े बाबू ने उसकी गन्ना पेरने की रेहड़ी ही उठवा ली थी. जैसे तैसे पैसे का जुगाड़ कर यह धंधा शुरू किया था. पूरे परिवार का पेट इसी रेहड़ी की थोड़ी बहुत कमाई से पल रहा था. दिन भर भरी दोपहरी आते जाते लोगों को गन्ने का रस पिलाना ही उसका काम था जो आत्मनिर्भर भारत में नौजवानों की आकांक्षाओं की पूर्ति का साधन बन रहा था. बी ए करने के बाद भी जब उसे अटैंडेंट या चपरासी की नौकरी भी न मिल पाई तो उसने गन्ने का रस पिलाने का ही व्यवसाय अपनाया. लेकिन हफ्ता उगाही के गुंडों ने आज रेहड़ी ही उठा ली, मारपीट की वह अलग.
' सुनो, चलो मेरे साथ...'
रामलाल ने सर उठाकर देखा. आंसुओं से भरी आंखों से उसे एक महिला दिखी जो उसे उठने के लिए कह रही थी. वह किसी एन. जी. ओ. से थी.
' चलो मेरे साथ पुलिस स्टेशन. रिपोर्ट लिखवाएंगे. आज मन्युस्पिलटी के बड़े बाबू की खैर नहीं. '
मैडम ने उसे ले जाकर रिपोर्ट लिखवाई. पुलिस के धमकाने पर बड़े बाबू ने रेहड़ी छोड़ दी. और भी कई पटरी वालों का सामान वापस करवाया.
रामलाल को तो जैसे भगवान ही मिल गए. महिला ने आगे भी परेशानी होने पर मदद करने का आश्वासन दिया.
रामलाल की गन्ना पेरने की मशीन के घुंघरु फिर बजने लगे.
- डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा
मौलिक एवं स्वरचित
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