माँ जब तक मायका तब तक

 -प्रिया सोनी

सही तो कहते है कि माँ जब तक मायका तब तक, एक बेटी के लिए। एक बेटी की शादी के बाद वह अपने घर को मायका और पति के घर को ससुराल कहने लगती है। कोई भी ससुराल वाले क्यों रोकते है अपनी बहु को उसकी माँ से मिलने के लिए, क्या वो लोग यह नहीं जानते कि माँ जब तक है तब तक ही वह अपने घर बिलकुल आजादी के साथ जा सकती है,

आ सकती है, खा सकती है, घूम सकती है, घर की किसी भी चीज़ को छू सकती है ?? माँ है तब तक ही उसका पूरा हक़ है अपने मायके में, अगर वो ही ना रहे तो वो किस हक़ से जा सकती है। इसीलिए उसे भी अपने माँ से मिलने का पूरा हक़ है। उसे जाने दे उसे उसकी माँ से मिलने दे। उसके और उसकी माँ के बीच कभी दूरियां न आने दे क्यूंकि एक वही माँ है जिसके भरोसे वो बिना संकोच किये आराम से कुछ दिन रह सकती है।

ससुराल वालो को भी समझना चाहिए कि उसका, शादी के बाद उसके मायके से नाता नहीं टुटा है बल्कि ससुराल वालो का भी जुड़ गया है। समय समय पर उसे जाने दे, उसे जब उसकी माँ की याद सताए उसे उनसे मिलने दे। माँ के भी अरमान होते है उनकी बेटी पराई तो हो गई है मगर जब उन्हें उसकी जरूरत लगे तब वो उनके पास भी रहे। जो बहुत कम ससुराल वाले समझते है।

शादी के बाद माँ-बेटी जैसे ही जुदा होते है न जाने वो कौन-सा अहसास है जो फिर भी उन्हें जोड़े रखता है। अगर बेटी परेशान है तो माँ उसकी मायूसी, उदासी फ़ोन पर ही समझ जाती है। मगर जब माँ ही न रहे तो कौन उसकी उदासी समझे ?? जब उसका कुछ दिन मायके जाने का मन करे और माँ ही न रहे तो वो कहाँ जाए ??

माँ जब तक मायका तब तक ही है उसके बाद आपको कोई नहीं पूछता, त्यौहार मानो पन्ने पलट निकल जाते है और मायके से किसी त्यौहार पर फ़ोन ही नहीं आता और तू कब आएगी, नहीं यह  पूछा जाता है क्यूंकि अब माँ नहीं है न। राखी का त्यौहार तो मानो, माँ के जाने के बाद खत्म ही हो गया हो। रक्षाबंधन पर राखी पोस्ट करने के लिए फ़ोन जरूर आता है मगर तुम आ जाना कहने के पहले ही फ़ोन बंद हो जाता है।

यह कैसा रिश्ता है समझ ही नहीं आता है माँ तुम बहुत याद आती हो, तुम नहीं तो मेरा मायका भी नहीं। तुम थी तो हर गर्मी की छुट्टियां सिर्फ तुम्हारे लिए थी और अब बस बच्चो के साथ समय बिता लिया करती हूँ मगर दिल में हर वक़्त याद तुम्हारी रहती है।

माँ जब तक रहती है तब तक ही तो मायके जाने की जिद्द हम करते है अगर माँ ही न रहे तो कौन तुमसे जिद्द करेगा ससुराल वालो। ज्यादा नहीं बस कुछ समय हम अपने लिए मांगते है तुम वो भी न दे पाओ तो तुमसे कैसा रिश्ता क्यूंकि जब अपने समझ ही न पाए अपनों को, तो रिश्ते में अपनापन कैसा ??

जब तक माँ होती है तब तक ही हम उनके वहां जाने को तरसते है और कई बार तुम कितने आराम से हमें मना कर देते हो उनसे मिलने के लिए , अरे जाने दो हमें मिलने दो हमें भी, सुना है वक़्त का कोई भरोसा नहीं है क्या पता वो सिर्फ हमारी यादो में ही न रह जाए और इसके जिम्मेदार सिर्फ तुम होंगे ।

तुम्हे भी तो कितना अच्छा लगता है न जब तुम्हारी बहने आती है और न जाने कितने दिनों के लिए रुक कर जाती है, तुम्हारी माँ को भी कितना अच्छा लगता है और हम जाने लगे तब हमारे लिए उँगलियों पर दिन गिनने लग जाते हो और वापिस इतने दिन में आ ही जाना कहने लगते हो। तुम्हारी माँ तो इस तरह सवाल करती है जैसे कि मायके जाना है, कह कर ही बड़ा गुनाह कर दिया है। क्या वो नहीं है माँ, उनके दिल में माँ का दिल नहीं है क्या ?? तो इतना अंतर् क्यों तुम्हारी बहन और दूसरे की बहन में। वो तुम्हारी पत्नी या बहु होने के साथ साथ किसी की बेटी और बहन भी है।

यह बात समझने में अब और देर नहीं करनी चाहिए या फिर बहु को बहु ही रहने दीजिये उसे झूठे वादों के साथ अपने घर न लाए कि यह हमारी बहु नहीं बेटी है, हम इसे बेटी बना कर रखेगें। बेटी बना कर रखना ही है तो उसे अपनी बेटी के जैसी आजादी भी दीजिये।

आप जिसे ब्याह कर अपने घर लाए है उसकी जरूरतों और इच्छाओ का सम्मान करना भी सीखे, क्यूंकि वह आपके घर की बहु बनने से पहले किसी के घर की बेटी या बहन भी है। उसके परिवार को भी सुख दुःख में उसकी जरूरत है और उनकी जरूरत को पूरा करना आपका भी कर्तव्य है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ