नियम अनुसार रजनी के साथ रोज सुबह वाक पर निकल जाती हूँ सो मैं घर से निकल गई , रजनी को जहां मिलना था नही मिली शायद थोड़ी देर से आये मैं ही धीरे धीरे चलने चलते गार्डन में जा कर बैठती हूँ तब तक आ जायेगी सो चल दी पहुँच कर एक बैंच पर बैठ गई ।
पास ही दूसरी बैंच पर दो महिलाएं बैठ कर बातें कर रही थी रोज ही आती थी ।पर हम दोनों ही अपनी बातों में मगन रहते थे इसलिए उस और ध्यान नही देती थी , चूंकि आज मैं अकेली थी सो चुपचाप बैठी थी इस लिए उनकी बातें कान में पड़ गई ।
पहली महिला की बात तो मैं नही सुन सकी पर दूसरी ने उसका जवाब दिया मैंने सुना ---' नही नही ऐसा नही है बीना, मैने कोई पैसा इकठ्ठा नही किया करते कहाँ से शासकीय नौकरी तो थी नही ,प्रायवेट में कहाँ इतना कमा पाते है बस बच्चों को अच्छे से पढ़ा दिया ,बेटे -बेटी की शादी कर दी बहु भी अच्छी आ गई, बस यही दौलत है मेरी ।
अरे इतना सब कुछ तो मैं इसलिए कर रही हूं कि मेरा बेटा एवम बहु दोनों सुबह अपने काम पर जाते हैं तो रोज मेरे पाँव पड़ कर मुझे 100 -100/- रुपये दे जाते हैं ।और कहते है कि कभी भी काम पड़े तो आपको हमसे मांगना नही पड़ेगा पर वे पैसे कभी भी घर खर्च में काम नही आते क्योंकि दोनों समझदार है कभी ऐसा मौका ही नही आने देते और कभी उन पैसों का हिसाब भी नहीं मांगा ।शुरू -शुरू में मैंने उन्हें वापस देने की कोशिश , किंतु वे बोले नही माँ मुझे मालूम है आप स्वाभिमानी है कभी मुझसे अपने खर्चे के लिए मांगेगी नही इसलिए इससे आप जो करना चाहो ये आपके हैं ।
उसकी ये बात सुनकर मुझे उन समझदार बेटे- बहु को नमन करने का मन हुआ । क्या मेरे बेटे -बहु ऐसा कर सकते हैं । मैंने हमेशा मेरी सासु माँ को हमसे पैसे मांगते समय नीचे आंखे करते देखा है , नही अब मुझे भी उनके स्वाभिमान को आहत नही करना है कल से मैं भी ऐसा ही करूँगी ।
वाकई आज अकेले आना अखरा नही ।आज जीवन की किताब में एक नया पन्ना जुड़ा।
मंजुला शर्मा
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