" मैडम...एक सज्जन आपसे मिलना चाहते हैं।खुद को आपके मित्र बता रहें हैं।" कहते हुए चपरासी ने रजनी को उस व्यक्ति के नाम की पर्ची थमा दी।
" अनिकेत....।" वह बुदबुदाई और अपने दिमाग पर ज़ोर डालते हुए उस नाम के व्यक्ति को याद करने का प्रयास करने लगी।
उसके पति शेखर अपने एक रिश्तेदार की साझेदारी में लोहे का कारोबार करते थे।अच्छी कमाई थी, ज़िंदगी मज़े में गुज़र रही थी।शेखर को दोस्तों के साथ उठने-बैठने का बहुत शौक था।यही वजह थी कि छुट्टी के दिन अक्सर ही उसके घर में पार्टी होती थी।उन्हीं मित्रों में से एक था अनिकेत जो बोलने की कला में माहिर था।भाभी-भाभी कहकर उसके आगे-पीछे घूमता रहता। रात का खाना तो अक्सर ही उसके घर ही खाता था। शेखर से उसने हजारों रुपये उधार भी लिये थे।कुछ लौटाए तो कुछ टाल गया।वह शेखर से कहती कि अब अपने बेटे मनु के भविष्य की भी चिंता करो...अनिकेत को पैसे देना बंद करो...लेकिन शेखर मुस्कुराकर रह जाते।
अब होनी-अनहोनी तो अपने हाथ में होती नहीं।एक दिन काम से लौटते वक्त उनकी मोटरसाइकिल की ट्रक से भिड़ंत हो गई।वो बुरी तरह ज़ख्मी हो गये और अस्पताल पहुँचने से पहले ही उसने दम तोड़ दिया।उसकी दुनिया उजड़ गई।अपने बेटे के लिये उसने खुद को संभाला।शेखर के न रहने से उसके रिश्तेदार ने कारोबार पर कब्जा कर लिया।तब उसने शेखर के दोस्तों से मदद माँगनी चाही लेकिन सबने उससे किनारा कर दिया।अनिकेत तो उसका फ़ोन उठाता ही नहीं था।तब उसे समझ आया कि शेखर के सभी दोस्त उसके पैसों पर ऐश करने वाले गौं के यार थें।
तब उसके भाई ने समझाया कि दूसरों पर नहीं, खुद पर भरोसा रख।उसने शेखर की बचत राशि से दो सिलाई मशीन खरीद कर सिलाई का काम शुरु किया।व्यवसाय का अनुभव नहीं होने के कारण शुरु में तो उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।फिर धीरे-धीरे उसके काम को लोग पसंद करने लगे, आर्डर मिलने लगे तो उसने बड़ी जगह लेकर सिलाई मशीनों और महिला कारीगरों की संख्या बढ़ा दी।आज वह सफल महिला उद्यमियों में गिनी जाती है।काश! आज शेखर...।"
" मैडम..उस आदमी को..।" चपरासी के कहने पर वह वर्तमान में लौटी और बोली," हाँ..अंदर भेज दीजिये।" "भाभी..." कहते हुए अनिकेत उसके पैरों पर गिर पड़ा।मगरमच्छ के आँसू बहाते हुए बोला," भाभी..,अपने कारीगरों में मुझे भी शामिल कर लीजिये।"
" दूर हट...ईमानदार और वफ़ादार लोगों के बीच तुम जैसे कपटी-स्वार्थी गौं के यारों के लिये कोई जगह नहीं है।" वह गुस्से-से चीखी।
" लेकिन भाभी...।" तब तक में चपरासी उसे घसीटकर बाहर ले गया।सामने की दीवार पर लगी अपने पति की तस्वीर को उसने देखा जैसे वो कह रहें हों, " तुमने ठीक किया रजनी...आई एम प्राउड ऑफ यू!...।" विभा गुप्ता
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