“ सर ये क्या हुआ…आपने तो कहा था इस बार तुम ही विजेता हो और जल्द ही तुम्हें ट्रॉफ़ी और सर्टिफिकेट दिया जाएगा पर आपने मेरी जगह किसी और का नाम सजेस्ट कर दिया?” चेहरे पर दुख के भाव लिए निशांत ने अपने मैनेजर से कहा
“ हाँ निशांत सोचा तो यही था इस बार जब एचीवमेंट अवार्ड दिए जाएँगे तो सबसे पहले तुम्हारा ही नाम रहेगा पर अब उपर मैनेजमेंट ने तुम्हारी जगह कृतिका का नाम सजेस्ट कर दिया तो मैं क्या कर सकता हूँ… मैं तो अभी भी कह रहा हूँ तुम ही उस अवार्ड के काबिल हो।” मैनेजर ने कहा और वहाँ से चला गया
निशांत सोचने लगा… जब भी किसी को ज़रूरत पड़ती है मुझे ही बुलाते हैं हर काम ठोक बजाकर सारा समय देकर मैं ही करता हूँ पर वाहवाही ये कृतिका ले जाती है…मैनेजर भी अपना काम निकलवा कर सामने तारीफ़ों के पुल बाँध देता पर कही ना कही वो भी कृतिका से मिला हुआ है ताली कभी एक हाथ से तो बजती नहीं…दोनों हमेशा एक दूसरे को गलत ठहराने पर लगे रहते हैं पर अंदर ही अंदर मिले हुए है और इन सब में पिस रहा हूँ मैं… क्या ही फ़ायदा ऐसे काम का जब सब कुछ करने के बाद भी आपको सराहाना ना मिले?
अगली बार से निशांत ने अपने काम पर ज़्यादा फ़ोकस किया जो मदद माँगने आते उन्हें थोड़ी मदद कर बाकी काम उनको करने कह देता…मैनेजर और कृतिका दोनों निशांत के बदले व्यवहार से खफा रहने लगे थे पर निशांत ने भी सोच लिया था जब सामने मेरी तारीफ़ और पीछे बुराई करते हो तो मैं क्यों अच्छा बनकर खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारूँ….सही कहते हैं लोग ताली एक हाथ से नहीं बजती… तुमने मेरे साथ गलत किया तो मुझसे अच्छे की उम्मीद करना बेकार है ।
रश्मि प्रकाश
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