शहर के बीचोंबीच एक पुराना मोहल्ला था — तंग गलियाँ, छतों पर सूखते कपड़े, और हर नुक्कड़ पर बैठी गॉसिप की यूनियन। वहाँ की क्वीन थी – श्यामा चाची, जिनका काम था हर छोटी बात को बड़ी बनाकर पेश करना, यानी हर बात में भरपूर नमक-मिर्च लगाना।
एक दिन मोहल्ले के शर्मा जी सुबह-सुबह टैक्सी लेकर निकले। बात बस इतनी थी कि उन्हें अपने रिश्तेदार को स्टेशन से लाना था। लेकिन श्यामा चाची की नजरें सब पर रहती थीं। उन्होंने खिड़की से देखा और आँखें चौड़ी कर लीं।
दोपहर तक ख़बर फैल चुकी थी – “शर्मा जी कोई गुप्त ऑपरेशन के सिलसिले में शहर से बाहर जा रहे हैं!”
शाम होते-होते चाची ने इसका मसालेदार संस्करण बना दिया – “सुनो-सुनो! शर्मा जी की बहू मायके चली गई है, और वो वकील से मिलने निकले थे!”
दूसरे दिन मोहल्ले की महिलाओं ने शर्मा जी की पत्नी को घेर लिया – “बहन जी, सब ठीक तो है? सुना है घर में कुछ अनबन चल रही है?”
बेचारी शर्मा अंटी तो चकरा ही गईं।
तीसरे दिन शर्मा जी खुद सामने आए और बोले, “भाइयों, मैं तो बस स्टेशन गया था। आप लोग तो मुझे कोर्ट-कचहरी तक पहुँचा दिए!”
श्यामा चाची हँसते हुए बोलीं, “अरे भैया, बातें तो बातें हैं, थोड़ा मज़ा डालना पड़ता है! वरना मोहल्ला कितना सूना लगे!”
सब हँस पड़े, लेकिन अब मोहल्ले में एक कहावत चल पड़ी —
"श्यामा चाची की बातों को सुनो जरूर पर नमक कम समझोl
स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित रचना
लक्ष्मी कनोडिया खुर्जा उत्तर प्रदेश
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