मनोहर जी और सुमित्रा जी का बेटा राघव स्वभाव की बहुत ही मधुर,विनोदप्रिय और जल्दी ही सबको मित्र बनाने वाला था। मनोहर जी एक बहुत बड़े बिजनेसमैन थे वो तो किसी से बात भी अपना नफा-नुकसान सोचकर करते थे ऐसे में मनोहर राघव की किसी की भी मदद करना,अपने से छोटे स्तर के लोगों के साथ उठना-बैठना उन्हें अपनी शान के खिलाफ लगता था। उनको लगता था कि राघव का ये व्यवहार अभिजात्य वर्ग के बीच उनका नाम डुबो रहा है। मनोहर जी कभी राघव को अपने तरीके से समझाने की कोशिश भी करते तो वो मुस्कराते हुए कहता पापा हमें तो अपने आपको खुशनसीब समझना चाहिए कि जो भगवान ने हमें इतना समर्थ बनाया है कि हम दूसरों की मदद कर सकते हैं। ज़िंदगी इसी तरह आगे बढ़ रही थी ना मनोहर जी बदलने को तैयार थे ना राघव।
एक दिन मनोहर जी की कंपनी पर आयकर विभाग ने छापा डाला।मनोहर जी के खिलाफ किसी उनके ही खास परिचित और मित्र ने प्रतिस्पर्धावश आयकर विभाग को कुछ झूठे-सच्चे सबूत उपलब्ध करवाए थे। उनके यहां आयकर विभाग के छापे का सुनकर सब जगह उनकी बदनामी हुई थी। कंपनी के शेयर भी काफ़ी गिर गए थे,नुकसान भी बहुत हुआ था। ऐसे में कंपनी को डूबता जहाज समझ कंपनी में काम करने वाले काफी कर्मचारी काम छोड़ गए थे।मनोहर जी वैसे भी हृदय रोग से ग्रसित थे।वो बरसों से बनाई अपनी मेहनत की कंपनी और साख को समाज में इस तरह बिखरता हुआ देख सहन नहीं कर पाए और हार्ट अटैक का शिकार हो गए। ऐसे में राघव और उसके दोस्त जिन्हें मनोहर जी अपने स्तर से बहुत कम आंकते थे उन्होंने आकर सब संभाल लिया।
राघव के दोस्तों ने मनोहर जी को हॉस्पिटल में एडमिट कराने से लेकर उनके स्वस्थ होने तक काफ़ी दौड़ धूप की, वहीं राघव ने जब कंपनी की बागडोर अपने हाथ में ली तो जो कर्मचारी काम छोड़ गए थे उनकी जगह अपना सहयोग देकर सब संभाला। यहां तक की सुगंधा जिससे राघव शादी करना चाहता था पर उसके मध्यम पारिवारिक स्तर को देखकर मनोहर जी ने इंकार कर दिया था। वो वकील थी और आयकर संबंधी केस ही देखती थी उसने काफ़ी मेहनत करके आयकर विभाग वालो के सामने मनोहर जी की सभी कागज़ात सही होने के साक्ष्य प्रस्तुत किए। ऐसे समय में उसने मनोहर जी के व्यवहार को नज़रअंदाज़ करके अपना फ़र्ज़ निभाया था।
सबके प्यार और देखभाल से मनोहर जी जल्दी ही अच्छे हो गए। अब वो राघव के दोस्तों के प्रति अपनी सोच को लेकर आत्मग्लानि से भर गए। उनको लगा वो तो बस पूरी ज़िंदगी धन कमाने में रह गए पर असली पूंजी तो उनके बेटे राघव ने कमाई है।उन्होंने सुमित्रा जी और सबके सामने हंसते हुए कहा कि अगर राघव जैसा बेटा और उसके जैसे दोस्त हों तो नाम डूबना तो बहुत दूर की बात है,यमराज भी पास नहीं आ सकते। फिर उन्होंने राघव से भी सुगंधा के माता पिता को बुलाने को कहा जिससे वो घर जाते ही दोनों के लगन की रस्म कर सकें।
डॉ.पारुल अग्रवाल,
नोएडा
0 टिप्पणियाँ