मेरे घर के पास में रहने वाली सिमी जी की एक बहुत ही बुरी आदत थी। "एक मुंह दो बात करना"
वे जब भी किसी से मिलती कोई कुछ पूछे या ना पूछे वे हमेशा कहती आपको पता है...... और फिर बस हर किसी की बात को नमक मिर्च लगाकर दूसरे को सुनाना यह उनका प्रिय शौक था।
उनकी इस आदत से पूरा मोहल्ला परेशान था। ज्यादातर तो अगर उन्हें कोई सामने से आता देख ले तो अपना रास्ता ही बदल लेता था।
अब तक तीन-चार महिलाओं को तो उनकी इन नमक मिर्च वाली मसालेदार बातों की वजह से बहुत बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था।
जिन पड़ोसियों के कभी एक दूसरे से बहुत अच्छे संबंध थे, उनकी वजह से उन लोगों के रिश्तों में भी दरार आ गई थी।
सिमी जी हमेशा "एक मुंह दो बात" करती थी। जब भी कोई उन्हें ये कहे कि अरे आपने तो ऐसा कहा था, तो तुरंत ही अपनी बात से पलट जाती थी। मुकर जाती और कहती ऐसा तो मैंने कहा ही नहीं था।
उनकी बात पर भरोसा करने वाली कोई भी महिला बेचारी बुरी बन जाती थी।
यह सब देखकर मुझे बहुत गुस्सा आता था।
बहुत दिनों से मेरे मन में विचार चल रहा था कि ऐसा क्या किया जाए की सीमी जी की यह बुरी आदत भी छूट जाए और बाकी सब का भी सीमी नाम की इस समस्या से पीछा छूटे।
बहुत इंतजार के बाद आखिर आज वह दिन आ ही गया था।
कुछ दिनों पूर्व पास वाले शर्मा जी की बेटी का प्रेम विवाह हुआ था। आजकल सिम्मी जी का प्रिय विषय वही था।
कल ही सिम्मी जी की वजह से श्रीमती शर्मा और श्रीमती बत्रा में बहुत बड़ा झगड़ा हुआ।
वैसे तो सभी जानते थे कि यह सिमी का ही किया धरा है। जब श्रीमती बत्रा ने सिम्मी जी को बुलाकर श्रीमती शर्मा को बताने के लिए कहा की बताओ तुमने मुझे ऐसा कहा था। फिर क्या था सिम्मी जी तो ठहरी "एक मुंह दो बात" वाली महिला तुरंत वह अपनी बात से मुकर गईं। फिर वही हुआ जिसका सबको डर था श्रीमती शर्मा और श्रीमती बत्रा के बीच एक घमासान युद्ध।
आज जैसे ही मैंने सिम्मी जी को उनके दरवाजे पर खड़ा देखा। मैं स्वयं ही उनसे मिलने चली गई।
बातों बातों में फिर वही बात श्रीमती शर्मा की बेटी का प्रेम विवाह विषय छिढ़ ही गया।
मगर आज यह विषय कुछ अलग ही रूप लेने वाला था, यह मैंने तय कर ही लिया था।
मैंने अपने फोन का वॉइस रिकॉर्डर ऑन करके सिम्मी जी से अपनी बातचीत जारी रखी। इसके बारे में सिम्मी जी को कोई जानकारी नहीं थी। सिम्मी जी अपनी आदत के अनुसार शर्मा जी के परिवार के बारे में, उनकी बेटी के प्रेम विवाह के बारे में बहुत कुछ ऊल-जुलूल बकने लगीं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि शर्मा जी की बेटी तो प्रेग्नेंट है, इसीलिए तो यह प्रेम विवाह हुआ है। श्रीमती शर्मा की बेटी तो चरित्रहीन है। मैंने तो खुद ही उसकी प्रेगनेंसी रिपोर्ट देखी है।
वैसे तो मुझे उनकी इन सारी बातों में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी। मैं यह भी जानती थी कि यह सब मनगढ़ंत बातें हैं। मगर मैंने आज उनकी हर बात को बहुत आनंद लेकर सुना और सब कुछ रिकॉर्ड कर लिया।
कुछ ही देर में काम का बहाना बनाकर मैं वहां से घर लौट आई।
सिम्मी जी की सारी बातें मेरे फोन में रिकॉर्ड हो चुकी थी।
मैंने सिमीजी का फोन मिलाया और उन्हें तुरंत घर आने को कहा। मैंने तभी मैसेज शर्मा और मिसेस बत्रा को भी फोन कर अपने घर आने को कहा।
सिम्मी जी के आने से पहले ही मैंने श्रीमती बत्रा और श्रीमती शर्मा को वह पूरी फोन रिकॉर्डिंग सुना दी और उन्हें अंदर कमरे में छुप जाने को कहा।
सिम्मी जी के आते ही मैंने उन्हें वह फोन रिकॉर्डिंग सुनाई। उनकी शक्ल देखने लायक थी। कुछ ही क्षणों में वे पसीना पसीना-पसीना हो गई थी। उनकी धड़कनें तेज हो गई थी और वे घबराहट के मारे कुछ बोल भी नहीं पा रही थी।
"अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे" मैं मन ही मन यह सोचकर बहुत खुश होने लगी।
वे मुझे चाह कर भी यह पूछ नहीं पा रही थी कि यह रिकॉर्डिंग मैंने क्यों की थी।
"समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है।" वे रोने लगीं और मुझे कहने लगी कि दीपिका प्लीज तुम यह रिकॉर्डिंग किसी को मत सुनाना।
वे समझ चुकी थीं कि अब तक जो वे शर्मा जी के परिवार के बारे में अफवाहें फैला रही थी, अगर मैंने यह रिकॉर्डिंग सबको सुना दी तो उनका सच सबके सामने आ जाएगा और वे किसी को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी।
रोते-रोते उन्होंने सब कुछ स्वीकार किया कि यह सब वे सिर्फ अपने इंटरटेनमेंट के लिए ही करती थी। उन्होंने यह भी स्वीकार की उनके मन में शर्मा जी के परिवार के लिए जलन की भावना भी कुछ हद तक इन अफवाहों को फैलाने का कारण थी।
मैंने पानी का ग्लास उनकी और बढ़ाते हुए, उनसे कहा सिमीजी आप मुझसे उम्र में बड़ी है और "एक मुंह दो बात करना" आपको शोभा नहीं देता है। किसी के घर परिवार और उनकी बेटी के बारे में इस तरह की अफवाहें फैलाना अच्छी बात नहीं है।
मुझे उम्मीद है कि अब आप जिंदगी में कभी भी इस तरह का कोई भी दुर्व्यवहार किसी के साथ नहीं करेंगी।
मेरा उद्देश्य केवल आपको सही राह पर लाना मात्र था, आपको नीचा दिखाने का मेरा कोई मंतव्य नहीं था।
सिम्मी जी हाथ जोड़कर मुझसे माफी मांगते हुए बोली कि तुम ठीक कहती हो दीपिका, अब मैं पूरी जिंदगी कभी भी ऐसी कोई हरकत नहीं करूंगी। प्लीज मुझे माफ कर दो।
तभी मैंने श्रीमती शर्मा और श्रीमती बत्रा को बाहर बुलाया।
पहले तो उन्हें देखकर सिम्मी जी बहुत घबरा गई। फिर उन्होंने संयत होकर, हाथ जोड़कर उन दोनों से भी माफी मांगी। तत्पश्चात शर्म से सर झुकाए अपने घर चली गईं।
श्रीमती शर्मा और श्रीमती बत्रा के बीच की गलतफहमियां भी अब दूर हो चुकी थी। दोनों ने चैन की सांस ली और एक दूसरे से माफी मांग कर घर जाते-जाते मुझे भी बहुत बहुत धन्यवाद कहने लगी।
मैंने दोनों से यही कहा सिम्मी जी की आदत को हम सभी जानते हैं। आप लोग तो समझदार हैं, ऐसे लोगों की बातों पर आपको भी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपने संबंधों को खराब नहीं करना चाहिए।
सिम्मी जी जैसे लोग तो ऐसे ही मौकों की तलाश में रहते हैं। उन्हें तो दूसरों के घरों में आग लगाने में ही मजा आता है।
हमें ऐसे "एक मुंह दो बात करने वाले" लोगों पर विश्वास कर उनकी इन हरकतों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।
श्रीमती शर्मा कहने लगी यह तो तुम्हारी "समझदारी की जीत है दीपिका"।
आज मन को बहुत सुकून महसूस हो रहा था। ऐसा लगा जैसे मैंने कोई गढ जीत लिया हो।
स्वरचित
दिक्षा बागदरे
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