"भाँजी की शादी है और अपने यहाँ की रस्म है कि मामा के यहाँ से भात दिया जाता है। क्या करूँ मैं? छुटकी ने तो ज़्यादा तामझाम करने के लिए मना किया था, पर शादी ब्याह बार-बार तो होते नही हैं। लोग क्या कहेंगे कि मामा खाली हाथ आ गया.. और फिर छुटकी अब बड़े घर की बहू है तो उसकी इज़्जत का भी तो ख्याल रखना होगा! पत्नी सुधा और बच्चों को न भी ले जायें तब भी खर्चा तो है ही... कैसे इंतजाम करे?".. जबसे भांजी की शादी का न्योता आया है तभी से ये सब सोच-सोचकर सुरेश को उलझन सी होने लगती।
आख़िरकार किसी तरह से पैसों का इंतजाम करके सबके लिए कपड़े, भाँजी के लिए हल्की सी ही सही एक छोटी सी नथ,थोड़ा मीठा व शगुन के रुपये लेकर सुरेश उसके घर आ गया। लेकिन सारा सामान देखकर जब छुटकी ने उसे ध्यान से देखा और कुछ ना बोली तो उसमें हीन भावना सी आ गई "इसे अच्छा नही लगा क्या? शायद इतनी हल्की नथ और कम सामान देखकर गुस्सा आ गई होगी उसे" सोचकर दिल में अजीब सी उलझन होने लगी इसीलिये हँसी मज़ाक के माहौल में भी वह चुप-चुप ही रहता..पर शादी के घर में बहुत देर तक यूँ मुँह लटकाये रहना अच्छा भी तो नही लगता,सो उसने अपने को संयत करके सारे कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और फिर जैसे ही शादी निपट गई,वह अपने कमरे में आकर जल्दी से जल्दी वापस जाने की तैयारी करने लगा।
"भइया, इतनी जल्दी जाने की तैयारी कर रहे हो?" तभी पीछे से आवाज़ सुनकर सुरेश पलटा तो सामने छुटकी खड़ी थी।
"भइया,तुमने तो मेरा मान रख लिया पर मैं जानती हूँ कि तुम्हें कितनी परेशानियों से गुज़रना पड़ा होगा...ये देखा है मैंने! अपने लिए ढंग के कपड़े, जूते तक नही ले पाये" उसका गला रुँध गया "और मेरे लिए सब कुछ ले आये " कहते हुए उसने सबके लिए सौगातों के साथ-साथ हाथ में रुपये की गड्डी भी थमा दी।
"अरे!!! ये क्या छुटकी, उल्टी गंगा क्यों बहा रही हो ? और ये सब करके मुझे पाप का भागीदार मत बनाओ" उसके अप्रत्याशित व्यवहार से सुरेश सकपका सा गया।
"उल्टी गंगा कैसी? और कैसा पाप ? आपने अपना फ़र्ज निभाया ,अब हमें अपना फ़र्ज करने दो। पैसा ही सब कुछ नही होता है भइया! अपनी बहन से बस ऐसे ही अपना स्नेह बनाये रखना" भावुक होते हुए छुटकी ने सुरेश का हाथ पकडकर अपने माथे से लगा लिया।
ओह्ह!! मेरी बहन मुझे कितना समझती है और मैं उसे समझ ही नही पाया, बल्कि कुछ और ही समझ रहा था" सुरेश का दिल आत्मग्लानि से भर गया.. उसे बचपन के दिन याद आ गये जब उसकी यही नन्ही सी बहन छुटकी सबसे छुपाकर उसकी मदद करती थी,जो आज भी बिल्कुल वैसी ही है प्यारी सी, माँ जैसी ममतामयी। उसका मन भीग गया और आँखो से आँसू झरझर बह निकले।
-कल्पना मिश्रा
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