तबादला " - अंजु ओझा

  ट्रक से सारा सामान उतरवा कर नए फ्लैट में शिफ्ट हुए ही हैं कि एकाध घंटे में एक लड़की धड़धड़ाते हुए आ पहुंची है । अकस्मात एक अनजान लड़की को चाय का ट्रे  के साथ देख हम सब अचरज से भर गए थे।

नमस्ते अंकल नमस्ते आंटी!पड़ोसी हूँ आपकी , चाय और सैंडविच लेकर आयी हूँ , मम्मी ने भेजा है  आपलोगों के लिए। वहीं बंद कार्टन के ऊपर चाय का ट्रे रखकर वापस चली गयी।

किसकी बेटी है भई ? ना बताया, ना कुछ पुछा चुपचाप चाय नाश्ता रखकर चली गई।  मम्मी पापा सवालिया नजर से एक दूसरे को देख ही रहे थे कि वह आधे रास्ते वापस आ गयी ।

मम्मी ने कहा है कि आपलोगों को कुछ भी चीजों की जरूरत हो तो निसंकोच बता दीजिए।  यहाँ बैंगलोर में कहाँ क्या मिलता है सब कुछ की जानकारी और पता उपलब्ध है गुगल पर , फिर भी तत्काल  के लिए स्थानीय चीजें दूध ,फल , सब्जी ,राशन वगैरह वगैरह कहाँ- कहाँ मिलती है निम्न सामान के लिए साथ में जाकर दिखा दूँगी ताकि आपको आसानी  हो ।बोलकर जोर से हँसती है चलती हूँ सहजभाव से कहकर चली गई। उसकी बेवाकी से हम सब सोचने लगे कि कौन है भई ये ?लेकिन बीस सेकेंड के पश्चात पुनः हाजिर थी !

आंटीजी , मैं फिर वापस आई हूँ यह बताने के लिए,  मम्मी ने कहा है कि आप सबका डिनर बना देंगी और रात आठ बजे ले कर आ जाऊंगी । आपलोग चिंता ना करिएगा। उसकी हाजिरजवाबी से कोफ्त हो रही थी मुझे , खैर चली गई वो ।

मेरा ट्रांसफर चेन्नई से बैंगलोर हुआ है । मम्मी पापा भी मेरे साथ ही रहते हैं , पापा सरकारी भवन निर्माण विभाग में एक्सक्यूटिव इंजीनियर थे । चार साल पहले रिटायर हो चूके हैं और अब मेरे साथ ही दोनों रह रहे हैं ।

मैं स्टेट बैंक का पी ओ की पोस्ट पर पाँच साल पहले नियुक्त हुआ था । पढ़ने लिखने का आरंभ से ही शौक था ,  मेरी दिली ख्वाहिश थी कि प्रशासनिक अधिकारी बनूं  , पर इंटरव्यू में छंटा गया था और आगे बैंक की परीक्षा में बैठा , पी ओ में सेलेक्शन हो गया ।

मैं बचपन से ही अंतर्मुखी स्वभाव का रहा हूँ।प्रारब्ध से ही किसी से ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं था । बिना मतलब बातें करने वाले और दूसरों के घर पर हस्तक्षेप करनेवाले लोग फूटी आंख नहीं सुहाते मुझे। मम्मी को मेरा अनसोशल होना नापसंद था परंतु मैं ऐसा ही हूँ इसलिए रोकना टोकना मम्मी ने छोड़ ही दिया था ।

अब मेरे लिए बहू खोज रही हैं जो आज की नारी हो और मेरे खड़ूस बेटा को सामाजिक बना सके परंतु मुझे कोई पसंद ही नहीं आता ? मम्मी बहुत ऊहापोह में है कहाँ से ऐसी चुस्त दुरूस्त लड़की मिलेगी ?मम्मी का वश चलता तो कब का अपने लिए बहू ले आयी होतीं , लेकिन मैं भी अपने परफेक्ट मैच का प्रतीक्षा कर रहा था ।कहते हैं न कि ऊपरवाला सबके लिए किसी न  किसी के साथ जोड़ी बनाकर भेजता है । अनवरत मेरी तलाश  भी जारी थी।

नया शहर ,नई ब्रांच , नए लोग के साथ तालमेल बिठाने में पंद्रह दिन गुजर गए थे मालुम ही नहीं  पड़ा काम मेंव्यस्तता के चलते ।

एक दिन सुबह सुबह बैंगलोर में रहनेवाले  सखा प्रद्युम्न का फोन आ गया ।

साले ! बीस दिन से आया है तू बैंगलोर,  अभी तक मिलने की फुर्सत नहीं मिली तुझे ?

अरे यार ! जल्द ही किसी दिन आता हूँ तुम्हारे बैंक । वह भी रिजर्व बैंक में पोस्टेड था ।आज आओ न यार ! ठीक है सेकेंड हाफ में आता हूँ ।

बचपन का दोस्त है प्रद्युम्न,  इसलिए उसके लिए समय निकालना ही था मुझे।उसका बैंक भी पास ही था सो लंच के बाद मिलने चला गया ।

उसका बैंक बहुत बड़ा था , बातचीत के दौरान वो मुझे अपने बैंक मैंनेजर के केबिन में लिवा गया ।

अंदर मैंनेजर की कुर्सी पर बैठी फीमेल शख्सियत को देख चौंक पड़ा ।

तुम! मेरा मतलब आप यहाँ की मैंनेजर हैं, बोलने के क्रम में खुद को तुरंत जांचने  का प्रयत्न किया कि कहीं मेरे अंदर की तिरस्कार वाली भावना इस समय मेरे शब्द के रूप में तो नहीं निकल गए । उस दिन वाली लड़की यानि ॠचा बैंक मैंनेजर के चेयर पर बैठी थी । आंखों में मोटा चश्मा,  कलफवाली साड़ी पहने हुए सौम्य सादगी की प्रतिमा लग रही थी।

ओ यू मिस्टर अक्षत ! आप तो मेरे पड़ोसी हैं हम पहले भी मिल चूके हैं ।वॉट ए प्लेजेंट सरप्राइज ! उस दिन के बाद समय ही नहीं मिला कि हम एक दूसरे के बारे में कुछ जान पाएं या बता पाएं । पर हमदोनों की मम्मियों के बीच अच्छी खासी फ्रेंडशिप हो गई है । अपनी मम्मी से ही आपका नाम मालुम  पड़ा है ! कहते हुए बैठने के लिए उसने मुझे और प्रद्युम्न से अनुरोध किया।

वहाँ से लौट कर आने के बाद आँखों के आगे बार बार उसका चेहरा आने लगा ।उसका आत्मविश्वास से लबरेज व्यक्तित्व का कायल हो चुका था मैं।मुझे लगने लगा कि मेरा चैन लुटा गया है जिस लड़की को बेबाक समझ रहा था अंडरइस्टिमेट कर रहा था वो मेरी योग्यता से बढ़कर निकली ।

अक्षत , तुझे एक बात बताऊंगी तो तू मेरी तरह अचरज में आ जाएगा , एक दिन मम्मी ने खाना खाते समय कहा।

कौन सी बात? उस दिन वाली लड़की , जो चाय नाश्ता देने आई थी वह हमारे बगल के फ्लैट में रहनेवाली मिसेज त्रिपाठी की बेटी है वो भी बैंक में मैंनेजर है ।कल ही उसकी मम्मी ने बताया , बिश्वास ही नहीं कर पाई मैं ।कितनी प्यारी सी दिखती है मम्मी उत्साहित हो बोलती जा रहीं हैं मुझे भी सुनने में मजा आ रहा था ।

मैं मिल चुका हूँ उससे बैंक में।मुझे पता है वो बैंक मैंनेजर है ।अपनी खिसियाहट छुपाने का भरसक प्रयास कर रहा था कि वह मुझसे बेहतर है , इस सच को हजम नहीं कर पाया था ।

चलो गनीमत है , अब कम से कम उसे तू अपने घर में आने देने लायक तो समझेगा। बेकार में उस भली लड़की से चिढ़े हुए था और मुझे भी मना करता था ।

बस क्या था ,  इधर पापा भी मजाक में शुरू हो गए । पूछ लो अपने बरखुदार से , यदि यह लड़की इनके टक्कर की है तो बैंड बाजे के साथ ले आएं उसे।पर पापा के इस ठिठोली पर हर बार की तरह करारा जवाब नहीं दे पाया ।क्या कहता मम्मी पापा से ,  कितनी लड़कियों का मीन मेख निकाल कर शादी न करने की जिद पर अड़े  आपके बेटे को यह लड़की भा गई है जो नौकरी के मामले में मुझसे श्रेष्ठ है ।

कल रविवार को लंच पर उसे और उसकी मम्मी को बुला लेते हैं । बहुत हेल्प की है उनलोगों ने हमारी , एक छोटा सा धन्यवाद देने का सबब तो बनता है , मम्मी ने कहा ।ठीक है  बुला लीजिए।

किसी लड़की के कई रूप होते हैं यह बात अब  समझ चुका था ।  वो जमाना नहीं रहा है कि घर की चारदीवारी में रहनेवाली लड़की का , जो अपने पिता पति के संरक्षण में पलती बढ़ती है। यह लड़की ॠचा एक कर्मठ, चुस्त दुरूस्त बहुत बड़ी बैंक पदाधिकारी ।

भाभीजी , आपकी बेटी बहुत ही होनहार है पहले ही दिन से अपनी प्यारी बातों से हमारे मन को भा गई थी ।अब तो आप लड़का भी देख रही होंगी इसके लिए?मम्मी के मुँह से ऋचा के विवाह की बात से आंटी रो पड़ती हैं । अब क्या शादी करेगी ॠचा , पहली शादी से ही त्रस्त हो गई थी , दामाद किसी से अफेयर चला रहा था इसलिए यह उसे छोड़कर चली आई है । अब कहती है  कि उसे शादी नहीं करनी ?

अरे मम्मी ! क्या तुम लेकर बैठ गई हो । औपचारिक हँसी के साथ ॠचा बोली है , छोड़ो न आजाद पंछी की भांति जिंदगी जी रही हूँ और अपने मन मुताबिक रहती हूँ।

पगली है ये ! किसी को भी अपना गम  नहीं बांटती ? ऐसे ही बेबाक स्वछंद हो सबसे हंसकर बोलती बतियाती है । एक दिन की शादी और चार दिन बाद तलाक हो गया । फिरभी कहती है अकेले ही जीवन बिताएगी।पूर्व दामाद ने उसी प्रेमिका के साथ शादी कर ली और मेरी फूल सी बच्ची को एक दिन का शादी का काला ठप्पा लगा गया । वो तो भला हो उसके माता पिता का , शादी के दिन ही वो लोग मेरी बेटी को इज्जत के साथ पहुंचा गए। अपने ही बेटे को घर से निकाल चुके हैं।

मेरा मन अजीब सा हो गया था , कितना बड़ा तुफान झेल चुकी थी ॠचा ।उसके पीड़ा से मुझे दुःख हो रहा था ।

आज एक साल बीत चुके हैं , ॠचा और मैं अच्छे दोस्त बन चुके हैं । बस उसके हृदय में शनै शनै प्रेम का बीज अंकुरित करने में लगा हुआ हूँ । वो भी खुल कर बात करती है , साथ ही सिनेमा देखने जाते हैं शापिंग भी करते हैं ।बस इंतजार है उस दिन का , जब ॠचा शादी के लिए हाँ करेगी । जिस दिन उसकी ओर से ओ के , चट मंगनी पट विवाह।

- अंजु ओझा


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