तौबा करना

 पति की सर्विस के चलते हमें खूबसूरत स्थानों को देखने का मौका मिला ,हर पांच साल में नई जगह ट्रान्सफर हो जाता था,कभी आसाम ,कभी उड़ीसा ,कभी बिहार तो कभी पंजाब।हर पांच साल बाद सामान की पैकिंग करना अखरता तो जरूर था ,लेकिन कम्पनी की टाउनशिप कॉलोनी में रह े का अप ा ही आनंद था।हर त्योहार पर एक दूसरे े के घर जाना घर में बनाई मिठाई व पकबानों का आदान प्रदान असीम सुख देता था।कयोंकि त्यौहार का मतलब ही है परस्पर मिलना जुलना।हां आज से चालीस साल पहले मार्केट में खाने पीने की इतनी बैराइटी मिलती भी नही थी ,सो त्यौहार के अबसर पर ही अपने पाक कौशल को दिखाने का मौका मिलता था साथ ही अपनी बनाई मिठाई की तारीफ मुंह में मिसरी खोल देती थी।

वक्त बदला पति के रिटायर होने के बाद दिल्ली में अपना आशियाना बनाया,जब दीपाली का त्यौहार आया तो हमने अपनी पुरानी आदतानुसार अपनी पडौसिन को अपने हाथों से बनाई मिठाई व पकबान की प्लेट दी तो उनका चेहरा अजीब सा हो गया फिर धीरे धीरे उन्होंने कहा भाभी जी आप तो सब कुछ घर में बना लेती हैं तो कम पैसों में ढेर सारी चीजें बन जाती हैं हम लोग तो हल्दीराम से मिठाई लाते है जो बहुत मंहगी होती है इस मिठाई के सामने तो हम तो इस तरह प्लेट शेयर नहीं कर सकते।हम तो उनका चेहरा देखते रह गए,कैसी मानसिकता है इन दिल्ली बालों की।तब से हमने #तौबा करली जो उनके घर कोई मिठाई बना कर भेजी।बैसे जब कभी कहती हैं आपके हाथ के गुलाबजामुन तो सच में बहुत ही अच्छे व स्वादिष्ट थे,अब आप नही बनाती क्या गुलाबजामुन।हमने भी नहले पर दहला मारा अरे हम तो अभी भी हर त्योहार पर सारी मिठाई घर में ही बनाते हैं आपके हल्दी राम ने गुलाबजामुन बनाना छोड़ दिया क्या।बस उनका चेहरा देखते ही बनता था।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता


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