" देख ले सोहन घर का ये हिस्सा तेरा है और ये मेरा। और हाँ आंगन के बीच में यहाँ दीवार बन जाएगी। ये रोज- रोज का झगड़ा अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। रसोई में और घर में जो भी सामान है वो भी आधा- आधा बांट लेंगे । कल को कोई ये ना कहे कि बड़े भाई ने छोटे भाई के साथ धोखा कर दिया । ,,
" रहने दो भईया... तंग तो मैं हो गया हूँ। छोटा हूँ इसलिए सब के ताने मुझे ही सुनने पड़ते हैं । इस समस्या का हल अब बंटवारा ही है... । ,,
आज मुरारी और सोहन दोनों भाईयों के बीच बंटवारा हो रहा था। दोनों भाईयों के परिवार में कभी काम- धंधे, कभी घर खर्च तो कभी बच्चों को लेकर झगड़ा होता रहता था। धीरे- धीरे हालात ये हो गए थे की दोनों परिवार एक दूसरे को देखकर मुंह फेर लेते थे । उनके पिता की मृत्यु को दस साल हो चुके थे और उनकी माँ सुभद्रा जी की कोई सुनता नहीं था । वो किसी सामान की तरह ही बस एक कोने में बैठी रहती थीं ।
दोनों बहुओं में से जिसका मन करता वो दो वक्त का खाना डाल देती थी नहीं तो जिस दिन घर में झगड़ा होता था उन्हें उपवास ही रखना पड़ता था ।
घर का सारा सामान आज आंगन के बीचों बीच इकट्ठा कर दिया गया था जिसपर दोनों बहुएं अपनी तीखी नजरें गड़ाए हुए थीं ।
दोनों भाई भी इस फिराक में थे कि कहीं दूसरे के पास जमीन का एक टुकड़ा ज्यादा ना रह जाए ।
सुभद्रा जी चुपचाप किसी मुरत सी खड़ी ये बंटवारे का तमाशा देख रही थीं। एक - एक बर्तनों का भी दोनों घरों में बंटवारा हो गया था । इतनी ज्यादा संपत्ति तो थी नहीं फिर भी जो कुछ था उसमें से कुछ भी किसी एक के पास ज्यादा रहे ये दूसरे को बर्दाश्त नहीं था.... सारा सामान बंट चुका था । तभी मुरारी की नजर अपनी माँ पर पड़ी ।
आंखों में बनावटी दुख लिए वो माँ के पास आया और बोला
" देख ले माँ तेरे लाडले सोहन को। एक -एक चीज का हिस्सा कर लिया। माँ मुझे तो बस तेरी फिक्र है । तूं तो उसपर जान छिड़कती है। उसके बच्चों से भी तुझे ज्यादा लगाव है। माँ मेरा क्या है मैं तो जैसे तैसे रह लूंगा। तूं उसके पास ही चली जा । ,,
मुरारी की कही बात को सोहन की पत्नी ने सुन ली... वो तो सन्न पड़ गई। थोड़ी देर में सोहन भागा- भागा आया।
" भईया, मानता हूँ हमारे बीच नहीं बनती लेकिन मैं इतना स्वार्थी नहीं की माँ को भी ले जाऊँ... । वैसे भी माँ को भाभी से ज्यादा लगाव है। उनके हाथ का खाना ही माँ को भाता है। मेरी पत्नी को तो माँ वैसे भी ज्यादा पसंद नहीं करती ... फिर आप बड़े हैं और माँ की सेवा का पुण्य तो आपको ही मिलना चाहिए...। ,,
माँ अपने कपड़ों की गठरी लिए खड़ी थी और दोनों भाई माँ की चिंता में ऐसे बहस कर रहे थे जैसे उन्हें माँ के सुख- दुःख की कितनी चिंता हो।
जहाँ घर के एक- एक सामान को उन्होंने थोड़ी देर में ही बांट लिया वहीं अब माँ का बंटवारा बेचारे कैसे करते। आखिर दोनों को माँ की फिक्र जो थी ।
उनकी इस फिक्र को सुभद्रा जी शायद समझ गईं थीं ... बचपन में भी दोनों भाई आपस में ऐसे ही लड़ते थे .....
दोनों भाई कभी माँ के हाथों से खाना खाने के लिए आपस में झगड़ा करते थे तो कभी मां की गोद में बैठने के लिए ।
" आज माँ के पास मैं सोऊंगा......,,सोहन माँ का आंचल खींचते हुए कहता ।
" नहीं माँ मेरे पास सोएगी ... माँ , तुम सोहन को ज्यादा प्यार करती हो मुझे नहीं। ,, सोहन की इस बात पर मुरारी अक्सर ऐसा बोलता था।
आज भी वो बोल तो वैसे ही रहा था लेकिन माँ का साथ पाने के लिए नहीं बल्कि उनसे पीछा छुड़ाने के लिए ... इसिलिए सुभद्रा जी ने अपनी गठरी उठाई और वृद्धा आश्रम का रास्ता पकड़ लिया।
आखिर एक माँ अपने बच्चों को कब तक अपने लिए झगड़ता देख सकती थी। अब ना तो किसी को उनकी जरूरत थी और ना चिंता करने की वजह । दोनों बेटों में से किसी ने भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की.... ।
सविता गोयल
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