अब कोई नहीं टोकता...

 अरे मधु  ... वट सावित्री के व्रत के दिन भी तूने मेंहदी नहीं लगाई... पहले तो हमेशा लगाती थी.... और वो तेरी शादी वाली लाल चुनरी भी नहीं पहनी आज  ....।,,

" वो आंटी जी.... बस जल्दी जल्दी में भूल गई  । ,,

 कहकर मधु नजरें चुराकर आगे जाकर अपनी पूजा करने लगी  । दर असल उसे काम काम में याद ही नहीं रहा कि मेंहदी लगानी है, लेकिन रह रहकर उसका ध्यान भी   मंदिर में आई बाकी औरतों के हाथों पर जा रहा था  ।  सबके हाथों में रची मेंहदी देखकर आज उसे अपनी सासु माँ की बहुत याद आ रही थी....। कैसे हर त्यौहार के पहले दिन ही वो बोलने लगती थीं  , " बहु.... मेंहदी जरूर लगा लेना । त्यौहार पर खाली हाथ! अच्छे नहीं लगते  .... ।,,

सास की इस बात पर मधु को बहुत खीझ भी आती थी।    वो बुदबुदाती रहती  " घर के काम करूँ या मेंहदी लगाकर बैठ जाऊँ??? ,,

सासु माँ भी शायद उसके मन की बात समझ जाती थी और कहतीं,

  " अरे बहु.. आजकल तो रेडिमेड मेंहदी की कीप आती हैं.. आधे घंटे में ही रच भी जाती हैं। हमारे टाइम में तो खुद ही मेंहदी घोल कर कीप बनानी पड़ती थी ।  ऊपर से कम से कम तीन चार घंटे तक उसे सुखाना भी पड़ता था   ।

 ....  चाय  वाय तो में भी बना दूंगी तूं जा मेंहदी लगा ले।   ,,

 उनके बार बार टोकने पर मधु मेंहदी लगा लेती थी ।  जब सुबह अपने गोरे हाथों में रची हुई मेंहदी देखती तो खुश भी हो जाती थी  । मौहल्ले की सारी औरतें जब उसकी मेंहदी की तारिफ़ करती थीं तो उसे अपनी सासु माँ पर बहुत प्यार आता था...।

 मंदिर से घर वापस आकर मधु चुपचाप बैठ गई।   थोड़ी देर में मधु का बेटा आरव भागते हुए आया और बोला, " मम्मी मम्मी... कुछ खाने को दो ना । ,,

 " बेटा वहाँ बिस्किट रखे हैं अभी वो खा लो।   ,,

" मुझे नहीं खाने बिस्किट..। पहले तो आप मठरी और लड्डू बनाती थीं लेकिन दादी के जाने के बाद क्यों नहीं बनातीं । ,, आरव ने मुंह फुलाते हुए कहा। 

मधु चुप थी..... कहती भी क्या?? सच में सास के जाने के बाद उसने मठरी और लड्डू नहीं बनाए थे । सासु माँ तो पीछे पड़ी रहती थीं, " बहु घर में बनाई हुई चीजें अच्छी रहती हैं और साथ साथ बरकत भी करती हैं   ।  घर में अचानक से कोई मेहमान आ जाए तो भी चाय के साथ नाश्ते के लिए बाहर नहीं भागना पड़ता।   ,,

मधु को उस वक्त उनकी बातें अच्छी नहीं लगती थीं  । वो कहती  , " आजकल सब कुछ रेडिमेड भी तो आता है... ये सब बनाने के चक्कर में सारा दिन निकल जाता है । ,,

लेकिन सासु माँ नहीं मानती और खुद ही मठरी बनाने लग  जातीं ।  फिर मधु को ना चाहते हुए भी ये सब बनवाना पड़ता था ।

  ये सब बातें याद करते करते मधु अनमनी हो रही थी । घर के काम करते करते दोपहर हो गई थी । अचानक से उसका सर घूमने लगा तब उसे याद आया कि उसने सुबह से पानी भी नहीं पीया है ।

जब उसकी सास थीं तो व्रत वाले दिन सुबह से ही पीछे पड़ जाती थीं ।

  कहतीं  " पहले थोड़ा जूस निकाल कर पी ले फिर घर के काम कर लेना ।  नहीं तो गर्मी में चक्कर आने लगेगा।   ,,

आज ये सब बातें मधु को अंदर ही अंदर कचोट रही थीं । उसे हमेशा अपनी सास का टोकना अच्छा नहीं लगता था। लेकिन अब उसे टोकने वाला कोई नहीं था । फिर भी वो खुश नहीं थी।

 कहीं बाहर जाने से पहले भी उसे अब दस बार सोचना पड़ता है। घर के सारे काम करके जाओ फिर आते ही फिर से काम में जुट जाओ। यहाँ तक की घर की चिंता भी लगी रहती है कि कहीं कुछ खुला तो नहीं छोड़ आई  । कहीं कपड़े छत पर तो नहीं रह गए ।

सब की नजरों में तो वो आज आजाद थी लेकिन वो कितना बंध गई है ये बात उसके अलावा कोई नहीं जानता था... ।

दोस्तों, हमारे बड़ो का साथ हमारे सर पर छत्रछाया सा होता है जो हमेशा हमारे लिए कवच की तरह काम करता है ... लेकिन उनकी अहमियत को हम नजर अंदाज करते रहते हैं । जब वो हमसे दूर हो जाते हैं तब उनकी कमी का एहसास हमें पल पल होता रहता है.... ।

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धन्यवाद ।

सविता गोयल


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