बुढ़ापा बहुधा रूपेण नन्हा सा भोला बालपन जैसा ही है ।बुजुर्ग कविताजी बेऔलाद थी और पिछले साल पति ललित जी गुजर गए थे , बहतर साल की कविताजी के लिए बड़ा सा तीन कमरे युक्त फ्लैट और चालीस हजार पेंशन के हकदार उनके पति बनाकर गए थे ।
कविताजी के एक भतीजा संजय के अलावा और कोई भी नहीं था भाई भाभी का भी देहावसान हो चुका था ससुराल में भी इकलौती हैं।अपने भतीजे को ही अपने देखभाल करने हेतु रख लिया है भतीजा की पत्नी रूपाली और बेटा शशांक भी साथ में रहने लगे हैं । कविता जी को जिह्वा स्वाद के अलावा और कोई शौक न था भांति भांति के पकवान बनातीं रहीं और पति को भी खिलाती रहीं। शुरू में सब कुछ ठीक-ठाक रहा, कविता जी को रूपाली समय से नाश्ता, दोपहर का खाना, रात का खाना वगैरह-वगैरह परोसकर खिलाती रही । रूपा स्वभाव से तीव्र मिजाज की है पर भगवान से डरती है अगर बुआ सास की सेवा न करेगी तो आह लग जाएगी । उनके ही रूपयों से हम सब पल रहे हैं पति संजय तो नालायक है ।
हर महीने संजय बैंक जाकर कविता जी का पेंशन लाता है इन्हीं पैसों से घर चलता है ।
कहावत है विनाशकाले विपरित बुद्धि....... संजय के मन में पाप का बीजारोपण हुआ कि क्यों न यह फ्लैट अपने नाम से करवा लिया जाय । फुआ के आगे पीछे है ही कौन? " आगे नाथ न पीछे पगहा " मतलब बुजुर्ग फुआ के बुढ़ापे की एकमात्र लाठी भी हम हैं सहारा भी । पेंशन भी हम ही खर्च करते हैं मालिक बन ही गए हैं तो मालिकाना हक भी ले लेते हैं।
फुआ से बोलता है ..... आपका जो बैंक अकाउंट है उसमें हमको भी जोड़ दीजिए ताकि कभी कुछ इमरजेंसी आ जाए तो बेधड़क पैसा निकाल पाऊँ। सीधी कविता जी मान गईं हैं और अपने कुचेष्टा में सफल रहा है संजय।
कुछ दिन के बाद संजय फ्लैट के कागज पावर ऑफ अटॉर्नी/ मुख्तारनामा में साइन / हस्ताक्षर यह कहकर करवाता है कि आपके न रहने पर मुझे आराम से मिल जाए । कविता जी अपने भतीजा के प्रति अति अनुरागी हैं भतीजे के प्रेम में अनुभूत हो बात मान कर साइन कर दी हैं।
संजय हर महीने उनके पेंशन के पैसे को निकाल कर अपने अकाउंट में डालता जा रहा है , यह जतलाता कि वो फुआ का हितैषी है ? बिचारी के आँख में धूल छोंकता जा रहा है कपटी संजय ।
एक दिन बैंक से नोटिस आ गया कि आपके फ्लैट के कागज पर लोन लिया गया है आपके नाम पर लोन खाता में छ: महीने से ब्याज की किश्त नहीं चुकाई है आपने?
बैंक जाकर कविता जी बोलती हैं..... मैंने कोई बैंक से लोन नहीं लिया , हर महीने चालीस हजार पेंशन मिलता है और फ्लैट भी अपना है ।
अरे मैडम .. देखिए न बीस लाख का लोन आपके नाम से लिया गया है और आपके ज्वाॅइन्टअकाउंट के साथी संजय कुमार ही लोन उठाए हैं। यह सुनते कविता जी मूर्छित होते होते बचीं। उनके अकाउंट से हर महीने पैसा निकाल संजय अपने खाते में जमा करते जा रहा उनके नाक के नीचे ही यह छल प्रपंच हो रहा है उनको पता ही नहीं चला ।
संजय तुम मेरे नाम से लोन क्यूं लिए हो क्या जरूरत आन पड़ी है? सब कुछ अच्छा खासा चल रहा है और मेरा पेंशन भी खा रहे हो और फ्लैट भी गिरवी रख दिए हो । मेरे ही छाती पर मूंग दल रहे हो तुम हो किस फेरे में? मुझे बरगला दोगे धिक्कार है तुम पे ....विश्वासघाती ।
अभी अपना बोरिया बिस्तर बांधो और निकलो मेरे घर से।अनभल करते रहे यह सोचकर कि फुआ भी जल्दी टनक गाएगी बिचारी अकेली विधवा है इसलिए सब समेटते रहे ताकि मुझे भीख मांगना पड़े?
तब तक बैंक अधिकारी आ गए हैं पुलिस को लेकर और संजय को जालसाजी व धोखेबाजी के गहन आरोप लगे हैं उसके खिलाफ गवाही उसकी पत्नी भी दी है कि उसका पति अपनी बुआ के साथ धोखा किया है और अब जेल की हवा खा रहा है।
बैंक वालों ने भी भलमनसाहत का साथ दिया है ।
सामाजिक संदेश __ यदि औलाद धोखे से प्रापर्टीज के पेपर पर हस्ताक्षर करा लेती है तो कानूनन उस पर केस कर वापस ले लेना चाहिए । ऐसी संतान से निःसंतान भले।
- अंजूओझा
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