देवकी पूजा ख़त्म करके पूजा घर से बाहर आती है और जल्दी-जल्दी रसोई की तरफ़ बढ़ती है क्योंकि पति रामनाथ को जूस पीने के लिए देना था । उन्होंने नाश्ता तो पहले ही कर लिया था पर जूस बाद में पीना चाहते थे । इसीलिए देवकी नहा धोकर पूजा करके जूस देने के लिए लाती है । रामनाथ सो रहे थे दो तीन बार बुलाने पर भी जब उन्होंने आँखें नहीं खोलीं तो देवकी ने उन्हें हाथों से हिलाने के लिए छुआ पर!!!!यह क्या उनका शरीर तो ठंडा हो गया था । वह डर गई और ज़ोर ज़ोर से उन्हें हिलाते हुए पुकारने लगी । देवकी के लाख कोशिशों के बावजूद भी रामनाथ बिना हिले-डुले उसी अवस्था में थे जैसे वे सो रहे हों । देवकी ने अपने बेटे को फ़ोन किया और एंबुलेंस को बुलाया । बेटे के आने के पहले ही देवकी ने ख़ुद रामनाथ को अस्पताल पहुँचाया और वहाँ डॉक्टरों ने बताया कि रामनाथ की मृत्यु हो चुकी है । देवकी एँबुलेंस के ड्राइवर की ही मदद से रामनाथ के पार्थिव शरीर को बर्फ़ की पेटी में रखकर पार्किंग में रखवाया तभी उनका बेटा विश्वा भी आ जाता है । माँ के पास आकर पूछता है कि आपने सबको फ़ोन करके बता दिया । देवकी शॉक में थी उसने कहा नहीं बस वह सबके सामने उन्हें डाँटने लगा । दूसरों के कहने के बाद वह रुका ज़रूर था पर देवकी के दुख को उसने महसूस ही नहीं किया । रामनाथ का अंतिम संस्कार कर दिया गया क्योंकि करोना की वजह से कोई भी नहीं आ सकते थे । देवकी की बेटी अमेरिका में रहती थी दो दिन बाद वह भी आ गई । नेहा ने आते ही माँ को ढाँढस बँधाईं । माँ के साथ रहकर उसने देखा माँ के पैसे दो तीन बैंकों में है ।
उसने माँ की सहायता से उनके सारे पैसों का हिसाब किताब किया और सबको इस तरह से एक ही बैंक रखा कि माँ को कोई तकलीफ़ न हो । यह बात जब विश्वा को पता चला तो वह माँ बेटी पर टूट पड़ा कि उसको बिना बताए बैंक का काम चोरी छिपे क्यों किया गया । बहन ने भाई को बहुत कुछ बताना चाहती थी । माँ या बहन की बातें बिना सुने ही उसने अपने आप में फ़ैसला कर लिया । बहन ने सोचा मुझे पैसों से कोई मतलब ही नहीं है फिर भी विश्वा को किस बात का ग़म है । देवकी सोच रही थी जब रामनाथ जीवित थे तब ही देवकी ने विश्वा से पूछा था कि घर तेरे नाम पर लिख देती हूँ तब उसने कहा नहीं मेरे नाम नहीं मेरी पत्नी या मेरी बेटी के नाम कर दो तब पति पत्नी ने बहू सविता के नाम लिख दिया और जो भी गहने आदि थे सब की वसीयत लिख दिया था फिर उसे किस बात पर ग़ुस्सा आया है पता नहीं है । वैसे भी विश्वा अपने पिता के समान ही बहुत ही ग़ुस्से वाला है ।उसे लगता है तो उसे ही सबकुछ आता है इसलिए किसी और ने कुछ काम बिना उससे पूछे कर दिया तो बर्दाश्त नहीं कर सकता है । वह पिता की तेरहवीं ख़त्म होते ही घर से जो निकला तो फिर माँ की तरफ़ देखा ही नहीं । माँ की जरूरतों के बारे में या लोग क्या सोचेंगे कुछ नहीं सोचा । उसे लगा उसके साथ धोखा हुआ है माँ और बहन ने उसे धोखा दिया है इसलिए बहन जब वापस अमेरिका जाने लगी वह उससे मिलने नहीं आया । उसने उससे बात करना तो दूर उसकी सफ़ाई भी नहीं सुननी चाही । नेहा तो चली गई पर विश्वा ने ग़ुस्से से माँ के घर आना भी बंद कर दिया जबकि देवकी को इस समय सहारे की ज़रूरत थी । और ऐसे समय में उनका अपना उनके साथ कोई नहीं था । अब उस माँ की वेदना को कौन समझे ? इसमें उस माँ की क्या गलती है कि मजबूरन उसे इस वृद्धावस्था में अकेले रहना पड़ रहा है । मैं चुपचाप उस माँ के दर्द को महसूस करती रही और सोचने पर मजबूर हो गई कि बच्चों को अपने माँ बाप के दर्द का अहसास कभी होगा भी कि नहीं !!!!!!
-के कामेश्वरी
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