बाँसुरी वाला आया

 बाँसुरी वाला आया बाँसुरी वाला आया कहती हुई मचलती हुई रीता

दौड़ी दौड़ी अपने घर से निकलकर बाँसुरी वाँले के पास आकर खड़ी हुई, ‘आप मुझे बाँसुरी बजाना सिखाओगे?मुझे बाँसुरी की धुन बहुत अच्छी लगती है, मैं हर रोज़ आपकी बाँसुरी की धुन सुनकर बाहर आ जाती हूँ, मुझे आप बाँसुरी बजाते हुए बहुत अच्छे लगते हो!’सारी बातें रीता ने एक साँस में बाँसुरी वाले विजय को कह डाली! विजय ने अचम्भित होते हुए कहा- हाँ हाँ क्यों नहीं ! यहाँ से आधे किलोमीटर की दूरी पे दाहिनी ओर जाने वाले रास्ते में मेरी छोटी सी कुटिया है, वहाँ तुम चार बजे शाम में आ ज़ाया करना, मैं तुम्हें सिखा दिया करूँगा ।

                                    रीता प्रत्येक दिन स्कूल से लौटते हुए विजय के घर  जाने लगी। विजय के किराये का घर एक छोटा सा कमरा, उससे सटे एक बाथरूम था। कमरे में छोटी सी चारपाई, बग़ल में एक पढ़ाई की मेज़, जिसपर कुछ किताबें पड़ी हुई और दूसरी ओर एक  थोड़ी सी बड़ी मेज़ जिसपर एक स्टोव और कुछ खाना बनाने की सामग्री पड़ी हुई ।रीता बाँसुरी सीखने लगी...विजय ने उसे कई प्रेम धुन बजाना सिखाया, बीच बीच में वह बातें भी करता, कुछ अपनी कहता कुछ उसकी सुनता।कभी चाय वग़ैरह भी पूछ लिया करता। विजय बारहवीं कक्षा में पढ़ता था और रीता दसवीं में।रीता कभी कभी कभी गणित और भौतिकी की समस्याएँ भी पूछ लिया करती ।विजय पूरी संजीदगी से उसे समझाता... रीता उसे एक टक निहारती....यूँ ही समय बीतता गया। रीता के दसवीं क्लास का परीक्षाफल प्रकाशित हुआ । वों पंचानबे प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण हुई। विजय ने उसे बधाई दी और रसगुल्ले खिलाए। कुछ दिनों बाद बारहवीं का भी परीक्षाफल प्रकाशित हुआ । विजय नब्बे प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण हुआ। रीता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था! बाँसुरी सीखने का सिलसिला पूर्ववत चलता रहा ।क़रीब दो महीने बाद रीता पूर्व की भाँति बाँसुरी सीखने गई। विजय ने उसे ‘हाँ तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे...जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे तुम भी गुनगुनाओगे..’की धुन सिखाई। जाते वक्त विजय ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा- रीता मैं परसों शहर छोड़ कर जा रहा हूँ..मेरा आई आई टी कानपुर में बी टेक कोर्स हेतु दाख़िला हो गया है!कहकर उसने आँखें बंद कर ली! रीता बुत खड़ी रही....

          आठ वर्ष उपरांत रीता एक मल्टीनेशनल कम्पनी माइक्रोसॉफ़्ट में एच आर मैनेजर के रूप में कार्यरत थी।कम्पनी में सीनियर एनालिस्ट के पद पर नियुक्ति हेतु इन्जीनियरों के साक्षात्कार चल रहे थे।उत्तीर्ण परीक्षार्थियों का एच आर राउण्ड साक्षात्कार होना था।रीता एक एक कर साक्षात्कार ले रही थी!दस का साक्षात्कार हो चुका था। ग्यारहवें शख़्स ने जैसे ही प्रकोष्ठ में दाख़िला लिया,उसके आँख फटे के फटे रह गये....उसने किसी तरह साक्षात्कार की औपचारिकताएँ पूरी की और ग्यारहवें परीक्षार्थी को उत्तीर्ण घोषित किया।साथ ही एक पर्ची लिखकर बढ़ा दी। पर्ची में लिखा था शाम आठ बजे फ़ोरम मॉल में मिलें!

                                    विजय 7.30 में ही फ़ोरम मॉल पहुँच कर इन्तज़ार करने लगा! रीता की कैब ठीक आठ बजे फ़ोरम मॉल के पास आकर रूकी.... वही लम्बी छरहरी सी काया... ओजस्वी चेहरा आँखों में अद्भुत आत्मविश्वास  लिए वो विजय के सामने खड़ी थी...कुछ क्षणों के लिए दोनों चुपचाप खड़े थे! फिर विजय ने हाय कहकर सहज होने की कोशिश की। रीता ने भी हाय कर फूडकोर्ट की तरफ़ इशारा किया । दोनों टेबल के आमने -सामने बैठते हैं ।रीता ने चुप्पी तोड़ते हुए एक साथ कई प्रश्न दागे-‘आपने इस बीच क्या किया? मुझसे सम्पर्क क्यों नहीं किया? मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?’विजय के पास पहले प्रश्न का जवाब तो था पर दूसरे और तीसरे प्रश्न किस अधिकार से पूछे गये, पूरी तरह उसे समझ नहीं सका। उसने कहा पटना से निकलने के बाद मैंने आई आई टी, कानपुर में कम्प्यूटर साइंस में दाख़िला लिया, जैसा कि तुम जानती हो, फिर कैंपस प्लेसमेंट के तहत अमेजन नाम की कम्पनी में मेरी नियुक्ति हुई और मुझे बंगलोर में पद स्थापित किया गया । तब से मैं यहीं कार्यरत हूँ ।....दूसरे और तीसरे प्रश्न का ज़वाब मैं नहीं जानता रीता! रीता स्तब्ध थी, चुप चाप सुनती रही! विजय ने पूछा.. तुम अपनी सुनाओ!रीता ने तन्द्रा भंग करते हुए कहा -मैंने बारहवीं के बाद पटना कॉलेज से अर्थशास्त्र में बी ए किया, फिर मेरा दाख़िला आई आई एम इंदौर में हुआ। वहाँ से मैंने एच आर में एम बी ए की पढ़ाई पूरी की। फिर कैम्पस प्लेसमेंट के तहत माइक्रोसॉफ़्ट कम्पनी में नियुक्ति हुई , तब से यहीं कार्यरत हूँ।अच्छ... यहाँ कहाँ पे रहती हो? विजय ने पूछा।वहीं ऑफिस के पास ही एक पी जी हॉस्टल में। रीता ने कहा। क्यों अकेली रहती हो?... हाँ... माँ कैंसर की बीमारी में चल बसीं... पापा सहन नहीं कर पाये, एक साल के अन्दर ही ह्रदय आघात में चल बसे! भइया-भाभी लन्दन में नौकरी करते हैं। ओह्ह... विजय ने गहरी साँस ली और फिर पूछा- तुमनें शादी नहीं की?नहीं.. संक्षिप्त सा उत्तर!क्यों रीता आख़िर क्यों?विजय ने पूछा !इसके जवाब में रीता सूनी आँखों से उसे देखती रही...आधे घंटे तक मौन व्याप्त रहा... फिर विजय ने कहा- ‘रीता मैं चलता हूँ... अनन्या को मेरे बग़ैर नींद ही नहीं आती... वो अपनी माँ से अधिक मुझसे जुड़ी हुई है! रात के दस बजने को आए, फिर मिलूँगा ‘ यह कहकर वो लिफ़्ट से नीचे उतर गया! रीता सूनी आँखों से फ़ूड कोर्ट की छत ताकती रही..उसके ह्रदय की धड़कनों के साथ कई सवाल धड़कते रहे...क्या हम लड़कियाँ ही केवल भावनात्मक रूप से स्थिर रह सकती है?...भावनात्मक स्थिरता क्या ग़लत है?.... क्या लड़के हमारी भावनाओं को नहीं समझते? या नहीं समझने का स्वाँग रचते हैं?

- रंजना बरियार


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