पवन के घर पर समुचा मुहल्ला सादर रात्रि भोज के लिए आमंत्रित है , आज उसके बेटा का छठी है और गाँव से आयी कुछ महिलाएं शिशु के छठी उत्सव में मंगल गीत गा रही हैं , ढोलक के ताल पर पवन की माँ मालती जी ठुमके लगा रही हैं । रात के सात बजे से भोज है , इसलिए पकवान की खुश्बू चहुंओर फैली है ।
पवन की पत्नी शुभ्रा अपने नवजात बेटा को गोदी में ले सुलायी हुई है , घर में काफी गहमागहमी है खुशी और उल्लास का माहौल छा गया है क्योंकि घर में पोता का जन्म हुआ है इसलिए पवन के पापा राजेंद्र झा भी खुशी से फुले नहीं समा रहे|
घर के डाइनिंग हॉल में मुहल्ले की औरतें बैठी हैं , मालती जी नाच करते थक जाती है | आती हैं शुभ्रा के पास ,बहू के बगल में बैठ जाती हैं और उसके कान में फुसफुसाती हैं, तुमने अपनी माँ को बोल रखा है ना ! आज के दिन क्या क्या अपने नाती के लिए लाना है ?
जी मम्मी ! कह दिया है , ऐसा बोल तो देती है शुभ्रा , पर उसके अंतर्मन में द्वंद्व जारी है!
मन ही मन सशंकित है और अंदर से डरी हुई है कि मम्मी जी की फरमाइशों की झड़ी को कैसे पापा पूर्ण करेंगे ? रिटायर्ड हैं पापा और भैया का भी प्राइवेट जाॅब है , उनके भी अपने खर्च हैं ।इधर मम्मी जी की सूची में सोने की चेन, पोता के लिए पांच कपड़ा , मेरे लिए साड़ी , मम्मी जी के लिए साड़ी खास कर पांच हजार वाली भागलपुरी सिल्क , जाड़ा के लिए कंबल , पवन के लिए रेमंड का पेंट शर्ट और पापा जी के लिए ब्रांडेड कंपनी मान्यवर का कुर्ता पायजामा व पालना ।
शुभ्रा की नजर बारंबार दरवाजे पर जा टिकती , बिचारी बहुत कशमकश में है , माता रानी से प्रार्थना करती है कि सब कुछ ठीक हो | आधे घंटे के उपरांत शुभ्रा के मम्मी पापा और भैया भाभी व भतीजा आ गए हैं । मम्मी जी उन्हें देखते ही स्वागत करती हैं , मन ही मन बुदबुदाती है शुभ्रा , जरा इनका दिखावा तो देखो !
शुभ्रा की माँ पापा भैया भाभी सभी के हाथ में दो दो गिफ्ट हैं । सारे उपहार शुभ्रा के मायका वालों के द्वारा सास के हाथ में थमा दिया जाता है ।
सभी गिफ्ट को अंदर मालती जी रखने चली जाती हैं, तुरंत वापस आ शुभ्रा के कानों में धीरे से बोलती हैं , सोने की चैन कहाँ है ? मुझे तो गिफ्ट्स पैकेट में नहीं मिला है|
जी मम्मी ,पूछ के देखती हूँ ।
अपनी माँ को इशारे से बुलाती है शुभ्रा !
माँ, तुम क्या क्या लाई हो हमारे लिए? मम्मी जी को बता दो,
समधिन जी ! आपने जिन चीजों का डिमांड की हैं वो सब सामान नाती के लिए लाए हैं । कुछ कमी हो तो आज्ञा दें आप !
लेकिन उपहार में सोना का चेन नहीं है ?
जी , वह नहीं ला सकते हम ?
क्यों ! ये क्या तरीका है भला |आप अपने नाती के लिए एक चेन भी नहीं ला सकते? कैसे फकीर समधियाना मिला है जोर से बोलते हुए बिफर पड़ी मालती जी ! उनकी तेज आवाज से ढोलक बजानेवाली का हाथ रूक गया है । सब लोग भौंचक हो गए,
क्या हुआ शुभ्रा ! माँ तुम क्यों शोरगुल मचा रही हो ? पवन से मालती जी डरती हैं क्योंकि वह अपनी माँ के लालचीपने से अनभिज्ञ था ?
दरअसल बात ये है बेटा , कि आज बच्चे की छठी के उत्सव पर सोना का चेन देना शगुन माना जाता रहा है यह एक तरह का संस्कार है । तुम्हारे ससुराल वाले लाना भूल गए हैं इसलिए पुछ रही ?
ओह माँ ! तुम भी कैसी ओछी बात पर अडिग हो ? पापा कहाँ से लाते इतना महंगा उपहार ? सोना का दाम आसमान छू रहा है , पचास हजार रुपए में दस ग्राम सोना आता है । है ना पापा !
हाँ बेटाजी , शुभ्रा के पापा सिर हिलाते हैं ।
अपने दामाद के बड़प्पन देख उन्हें बल मिलता है , बिचारे भर्राए गले से कहते हैं कि समधिन जी!पचास हजार में या तो एक चेन आता या सारा उपहार ! एक चेन लेकर चले आते हम , तो इतना उपहार नहीं ला पाते ?
समधी की बात सुन मालतीजी बंगले झांकने लगी ।
पवन अच्छा खासा क्लास लेकर चेता देता है अपनी माँ को !
- अंजू ओझा
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