घर में हँसी-खुशी का माहौल था। रिटायर्ड मास्टर रामकिशन जी का छोटा बेटा रोहित और उसकी पत्नी कविता पाँच साल बाद माता-पिता बनने वाले थे। घर में सब कुछ नया सा लग रहा था — आने वाले मेहमान के स्वागत की तैयारी हर कमरे में झलक रही थी। बड़ी बहू मीना, जो दस साल से शादीशुदा थी लेकिन अब तक संतान सुख से वंचित थी, वह भी पूरे दिल से इस आने वाले बच्चे के लिए खुश थी। या शायद... वो खुश दिखने की कोशिश कर रही थी।
बड़ी बहू मीना का स्वभाव सीधा-सादा था, लेकिन सास विमला देवी को उसकी हर बात में कमी दिखती। जबकि रोहित और कविता आते ही घर के लाड़ले बन गए थे। कविता पढ़ी-लिखी, स्मार्ट और बातों की तेज़ थी — वही विमला देवी को बहुत पसंद आई थी।
धीरे-धीरे घर का संतुलन बदलने लगा। जब कभी भी मीना कुछ कहती, तो विमला देवी उसे डाँट देतीं —
“तू तो बस दूसरों की खुशियों में खलल डालना जानती है। कुछ अच्छा बोलना आता भी है?”
और कविता, जो सास के हर ताने पर मीठी मुस्कान दे देती, सबका मन जीत लेती।
कभी-कभी मीना सोचती — क्या मेरा सीधापन मेरी गलती है?
दिन बीतते गए, और कविता का गर्भ बढ़ता गया। घर में हर दिन पूजा, टोने, और खुशियों की बातें होतीं। मीना हर रोज़ पूजा में दीया जलाती, बच्चे के लिए बुनाई करती, फिर भी कोई उसकी ओर नहीं देखता।
अंततः वो दिन आ गया जब कविता को अस्पताल ले जाया गया। रोहित और विमला देवी दोनों उसके साथ थे। मीना घर पर अकेली रह गई। रात के करीब तीन बजे दरवाज़े पर घंटी बजी। दरवाज़ा खोलते ही देखा — रोहित की आँखें लाल थीं।
“भाभी… बच्चा नहीं रहा।”
मीना के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसने बिना कुछ पूछे रोहित को पानी दिया, और शांत स्वर में बोली,
“कविता कैसी है?”
“वो टूट गई है। बस एक ही बात कह रही है — ‘मेरा बच्चा मुझे क्यों नहीं मिला।’”
अगले दिन कविता घर लौटी — बेजान, सूनी आँखों वाली। विमला देवी भी बुरी तरह टूट चुकी थीं। पूरे घर में सन्नाटा था। मीना ने उसके कमरे की सफाई की, दवा दी, और धीरे से बोली,
“सब ठीक होगा कविता, समय फिर से खुशियाँ देगा।”
कविता कुछ नहीं बोली, बस तकिये में चेहरा छिपा लिया।
दो महीने बाद मीना को तेज़ बुखार रहने लगा। डॉक्टर के कहने पर जाँच करवाई गई, तो रिपोर्ट देखकर सब हैरान रह गए — मीना गर्भवती थी।
रामकिशन जी खुश हुए, “देखो भगवान की लीला! जिसने अब तक उम्मीद छोड़ दी थी, उसके घर अब किलकारी गूँजेगी।”
पर विमला देवी और कविता के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी।
कविता धीरे-धीरे चुप होती गई। जब भी मीना के कपड़े या बच्चे की चीजें दिखतीं, वो कमरे में चली जाती।
एक दिन विमला देवी ने रोहित से कहा,
“बेटा, मीना को समझा देना। कविता की आँखों के सामने इतना दिखावा मत करे। उसके जख्म अभी भरे नहीं हैं।”
रोहित ने मीना को समझाने की कोशिश की,
“भाभी, थोड़ा ध्यान रखो ना, कविता बहुत दुखी है।”
मीना ने शांत स्वर में कहा,
“दिखावा मैं नहीं कर रही रोहित, माँ बनने का सुख छिपाया नहीं जा सकता। मैं उसके दुख को समझती हूँ, पर क्या अपने सुख पर शर्म करूँ?”
वो बात शायद किसी को नहीं जँची।
अब घर में अजीब सी खामोशी छाई रहती।
मीना का पेट बढ़ता गया और उसके साथ बढ़ती गई कविता की बेचैनी।
छठे महीने में कविता की तबीयत अचानक बिगड़ गई। डॉक्टर ने कहा — “उसे मानसिक सहारे की बहुत ज़रूरत है। अगर परिवार से तनाव बढ़ा तो उसकी स्थिति और बिगड़ सकती है।”
रामकिशन जी परेशान थे। एक रात उन्होंने मीना से कहा,
“बेटी, तू कुछ दिन मायके चली जा। कविता को थोड़ा सँभलने का मौका मिल जाएगा।”
मीना ने सिर झुका लिया।
“ठीक है पिताजी, मैं चली जाऊँगी। लेकिन क्या किसी का दुःख किसी और की खुशी छीनकर कम होता है?”
वो बिना विरोध किए अगले दिन मायके चली गई।
तीन महीने बाद उसने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। जब विमला देवी को खबर मिली, तो उन्होंने फोन काट दिया। बस इतना ही कहा, “भगवान उसे सुखी रखे।”
दो हफ्ते बाद कविता घर में बुरी तरह टूट चुकी थी। तब रोहित ने माँ से कहा,
“माँ, मीना भाभी ने बेटे के नामकरण में हमें बुलाया है। चलिए ना।”
विमला देवी बोलीं, “नहीं बेटा, हम क्या मुँह लेकर जाएँ? जिस औरत ने अपने सुख से हमारी बहू को दर्द दिया, उसे कैसे देखूँगी?”
रोहित कुछ नहीं बोला। अकेले ही चला गया।
मीना ने बेटे को गोद में उठाकर कहा,
“देखो रोहित, ये तुम्हारा भतीजा है। इसका नाम ‘सौरभ’ रखा है — खुशबू फैलाने वाला।”
रोहित की आँखें भर आईं।
“भाभी, कविता भी आपको याद करती है। बस, बोल नहीं पाती।”
मीना ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“मैं उसे दोष नहीं देती। कभी-कभी दर्द इंसान की समझ पर भारी पड़ जाता है। जब भगवान चाहेगा, वो खुद मेरे पास आएगी।”
और सच में, कुछ महीनों बाद कविता एक दिन बिना बताए मीना के घर पहुँची।
मीना बच्चे को गोद में लेकर झूला झुला रही थी। कविता ने धीरे से कहा,
“भाभी… एक बार गोद में लेने दो ना। शायद मेरा मन भी शांत हो जाए।”
मीना ने बिना एक पल गंवाए बच्चे को उसकी गोद में रख दिया।
कविता के आँसू झर-झर गिरने लगे।
“माफ़ कर दो भाभी, मैं बहुत छोटी सोच रखती रही। तुम्हारा बच्चा देखकर मुझे जलन होती थी। पर अब लगता है, भगवान ने उसे इसलिए भेजा है कि मैं फिर से मुस्कुराना सीखूँ।”
मीना ने उसका हाथ पकड़ लिया,
“माँ बनने की खुशी बाँटने से कम नहीं होती, कविता। अब ये बच्चा हम दोनों का है — तू चाची नहीं, दूसरी माँ है इसकी।”
विमला देवी जब ये सब देख रही थीं, तो उनकी आँखों में आँसू आ गए।
उन्होंने मन ही मन सोचा —
कभी-कभी घरों में जंग औरतों की नहीं, उनके दिलों की नासमझी की होती है। और जब समझ आ जाए, तो घर फिर से मंदिर बन जाता है।
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