पाँच मंजिला अपार्टमेंट की सीढ़ी चढ़ते हुए थक जाती है बिचारी निशा। रोज घर के सामानों की सूची लिए निकलना ही पड़ता है कभी शाश्वत व सुरूचि को स्कूल से लाने , कभी बिजली बिल जमा करने , कभी कुछ कभी कुछ काम करते रहती, काम करते रात के ग्यारह बज जाते । सबसे ज्यादा नागवार गुजरता , सीढ़ी चढ़ना उतरना । हालांकि अपार्टमेंट में लिफ्ट नहीं था? 30 साल पहले के बने अपेक्षाकृत अपार्टमेंट में लिफ्ट नहीं बनते थे? लिफ्ट बनाने हेतु सब फ्लैट वालों से पचास हजार रूपया मांग रहा था बिल्डर, पर कोई भी देने को राजी नहीं ! सब नौ छौ करते , बहानेबाजी भी ,
निशा रात के कामों से निवृत हो थक कर कमरे में आती है तो पतिदेव मुँह फुलाकर घूरते हुए बोल पड़ते हैं कि तुम्हें मेरे लिए फुर्सत ही नहीं है ? उफ्फ! संजय की तीखी बातें शूल के जैसी चुभती हैं? फिर पलंग पर पसर करवट बदल सो जाती ,शरीर का पोर - पोर दुख रहा होता , ऐसे भी इनके लिए कुछ करने की हिम्मत देह को शेष नहीं ? ऐसे में संजय की उपालम्भ जायज है जिसे मैं पूर्ण कर नहीं पा रही?
सासू माँ का पुराण भी चालू रहता है , निशा बहू तुम्हें छोले भटूरे बनाने;को कहा था ना ! जी मम्मी कहा तो था आपने , लेकिन रात को काबुली चना को पानी में भिंगोना भूल गई ?
ओफ्फ हो बहु! तुम्हारे भुलने की आदत कब जाएगी?एक नंबर की भुलक्कड़ दास हो । सासु माँ की उलाहना सुन वहीं बैठी दादी सास भी तपाक से सासू माँ से बोल पड़ती हैं , अच्छा बहू ! तुम्हारी स्मरण शक्ति कब स्ट्रांग रही है। चालीस बरस पहले की बात याद है तुम्हें , जब कोई काम कहती मैं! तुम आम के बजाय इमली सुनती और मेरी ही बात को काटने लगती ? खैर ! वो तो मैंने तुम्हें बहु नहीं बेटी समझा , दादी सास मेरे पक्ष में बोल पड़ी हैं। अपनी सास के मुँह से अपनी ही शिकायत सुन झल्लाते हुए तमककर अपने कमरे चली गई ।
दादी सास कहती हैं , निशा बहु तुम घर बाहर का सारा काम पुरी निष्ठा से जिम्मेदारी के साथ निभाती हो । इसके हर ताना का जवाब दूंगी मैं , आज की नारी हो तुम।।
"अबला तेरी यही कहानी
आंचल में दूध आंखों में पानी ," यह भाव मत लाना तुम ! दादी सास की बात सुन गदगद हो गई मैं , अपने दौर की पढ़ी लिखी महिला थीं , पोस्ट ग्रेजुएट। अंग्रेजी का अखबार पढ़तीं, भजन गातीं और मस्त रहतीं । दादी सास के विपरीत सासूमाँ हैं केवल नुक्ताचीनी में रह जातीं वो।
खैर !
बस स्टाॅप पर खड़ी निशा बच्चों के आने की प्रतीक्षा कर रही है , थोड़ी ही देर में स्कूल बस आ गई , वहीं बगल में आइसक्रीम शाॅप में दोनों बच्चों को ले जाती है ताकि गर्मी में कुछ ठंडा खिला सके, दोंनो ब्राऊनी और चॉकलेट आइसक्रीम खा लेते हैं ।
तभी दुकान में एक सजी धजी आकर्षक महिला दाखिल होती है । मुझ पर नजर पड़ी है उसकी , तुम निशा हो ना !
हाँ , पर आपको मेरा नाम .... कैसे पता ?
अरे तुम नहीं पहचानी ?
मैं तुम्हारी क्लासमेट सुधा !
अरे यार , तू तो पुरी मोटी ताजी हो गई है उस पर ऐसी चर्बी चढ़ी है कि पतली दुबली छरहरी सुधा से आंटी सुधा लग रही है तू ! अचानक से दोनों सहेली एक दूसरे को देख खुश हो गई हैं
चल सुधा मेरे घर , यहीं सौ मीटर की दूरी पर है ।
सुधा को खींचती अपने साथ घर ले आती है निशा । बेतकल्लुफ सुधा उत्साहित हो सबसे मिलती जुलती है , दादी सास भी उल्लासित हो सुधा से मिलती हैं लेकिन सासु माँ के नाक भौं सिकुड़े ही रहे सुधा को देखकर!
आजकल क्या कर रही हो निशा? सुधा पुछती है
घर गृहस्थी संभाल रही हूँ निशा बताती है
अच्छा तुम्हारे कथक नृत्य का क्या हुआ यार ! कितना लाजवाब डांस करती थी तुम, वेस्टर्न और इंडियन दोनों में पारंगत हो ।
वो सब स्वाहा हो गया है शादी के बाद ••••• संजय को नापसंद है मेरा नृत्य करना , कहता है कि मुझे बीवी चाहिए, कोई नचनिया बजनिया नहीं? इसलिए अपने शौक को तिलांजलि दे चुकी , बुझे स्वर में निशा कह उठी , उसके आंखों में मोटे मोटे आँसु टपक पड़े , जिसको सुधा की आँखे बरबस देख लेती है । वहीं बैठी सास मुँह बिचका चल देती हैं। दादी माँ सब कुछ ताड़ जाती हैं कि निशा अपने आप को लेकर सफर कर रही है? एक इंजीनियर व कथक नृत्यागंना की दुर्दांत स्थिती?
देखो निशा , हमने एक साथ पढ़ाई की है इंजीनियरिंग में,
मैं जाॅब करती हूँ पर मेरे हसबैंड को कोई आपत्ति नहीं, अपना कमाती हूँ , मनचाहा पहनती ओढ़ती हूँ , पति को फाइनेंशियल हेल्प भी करती हूँ । फिर तुम स्टेट लेबल की कथक नृत्यांगना हो , तुम्हें "कला सागर एकेडमिक" से
" कथक रत्न " अवार्ड से नवाजा गया है। साफ्टवेयर इंजीनियरिंग में भी अव्वल नंबर लाई हो । फिरभी , ऐसे संकीर्ण विचारधारा पति के सुर में सुर मिला रही हो ?
तुम्हें अजीब नहीं लगता क्या !
क्या करूँ यार ! तुम्हारी जैसी बोल्ड नहीं मैं ! घर में क्लेश न हो , शांति बनी रहे इसलिए अपना धर्म निभा रही हूँ ।
सारी बात सुन रही दादी सास बोल पड़ी हैं,
अब और नहीं बेटा ! तुम अपना स्वनिर्णय ले लो , अब और सहने की जरूरत नहीं है , आगे बढ़ो । आज के जमाने के साथ अपने पग बढ़ाओ।
सच दादी !
हाँ हाँ निशा , मेरी बुढ़ी हड्डियों में अभी भी जान है ।अपने पोते के दोनों बच्चों को संभाल लूंगी ।
संजय को कौन समझाए?
मैं उसे भी समझाऊंगी और उसकी माँ को भी, दादी मेरे पास आकर कहती हैं मानों खुला आसमान मिला हो मेरी आरजू को को पंख!
निशा खुशी से फूली नहीं समाती दादी के साथ देने से।
आज उसका दबा कुचला अरमान ऊपरी सतह पर कुलांचे मार आ चुका है ।
उसकी क्लासमेट सुधा का अकस्मात मिलना "मील का पत्थर " सिद्ध हुआ है ।
दादी भी ।
अरमानों के महल धराशायी होने के कगार पर आ चुके थे पर दादी ने सब ठीक किया ।
वहीं पर निशा अपने अपार्टमेंट में नीचे ग्राऊंडफ्लोर के फ्लैट में "शुभ संस्कार नृत्यशाला " खोली है । अच्छा खासा चल निकला है , मुहल्ले की बच्चियाँ भी आकर सीखती हैं और उसके एकेडमिक के प्रचार प्रसार से दुर दराज की लड़कियाँ भी सीखने आ रही हैं । साफ्टवेयर इंजीनियर निशा डांस क्लास लेने के बीच बीच में ऑनलाइन काम भी किसी कंपनी में कर रही है।
-अंजूओझा
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