"ये ले शकुंतला दीवाली की मिठाई और साथ मे शगुन"अपनी काम वाली को मिठाई के डिब्बे और साथ में पैसे देते हुए मैंने कहा,"ये ले तुमने बोला था न कि मुझे दीवाली पे रसगुल्ले ही देना तो मैंने तेरे लिए वो ही मंगवाए हैं"
सच मे बीबी जी, आप कितने अच्छे हो,आपको भी भगवान ढेर सारी खुशियां दे। सच्ची में आज मेरी छोटी सी गुड़िया कितनी खुश हो जाएगी रसगुल्ले देखकर….
आपको भी दीवाली की बहुत बहुत बधाई"मेरे हाथ से डिब्बे लेते हुए जब ये शब्द शकुंतला ने कहे तो उसके चेहरे की चमक देखने लायक थी।
इस नए घर में आये हुए मुझे अभी सात महीने ही हुए थे।तब से शकुंतला ही मेरे घर काम कर रही थी। कुछ दिन पहले उसको बहुत ज्यादा बुखार हुआ। दो दिन दवाई लेती फिर काम करने लगती। जब मैं पूछती तो कहती कोई न बीबी जी ये तो बुखार है आता जाता रहेगा, लेकिन इसके लिए अगर मैं घर पे बैठ गयी तो मेरा घर कैसे चलेगा क्योंकि उसका पति भी दिहाड़ी मजदूर था कभी काम मिलता था कभी नही।
अब की बार बुखार भी जैसे ढीठ हो गया था। एक दिन इतना ज्यादा चढ़ा कि शकुंतला उठ ही नही पा रही थी। जब डॉक्टर से सारे टैस्ट करवाये तो टायफॉइड निकला। दवाईयों पे तो जो ढेर खर्च हुआ सो हुआ साथ मे डॉक्टर ने बोल दिया कि कम से कम एक महीना आराम करो तभी ठीक होगी नही तो बार बार बीमार होती रहोगी।
उसने अपनी जगह किसी और को कुछ दिन के लिए काम पर भेज दिया ।मैं भी फोन करके उसका हाल चाल पूछती रहती थी।
दीवाली को दस बारह दिन ही बचे थे कि एक दिन शकुंतला आ गयी । मैं भी उसको देख कर हैरान हो गयी।
"अरे तू क्यों आ गयी, तुझे तो डॉक्टर ने आराम करने के लिए बोला है न'
बस बीबी जी,और आराम नही होता मुझसे, ऊपर से दीवाली भी तो आ रही है न..कल से मैं ही काम करूंगी
मैं समझ गयी कि दीवाली की वजह से ही ये घर पर नही रुक पा रही थी। क्योंकि अपने अभी तक के अनुभव से मैने यही जाना है कि ये जितने भी कामगार होते हैं एक दीवाली की आस में पूरा साल बीता देते हैं कि हमे दीवाली पे कोई अच्छा सा तोहफा मिलेगा। और दीवाली पास आने पर इस तोहफे को पाने के लिए लोगों की बड़ी बड़ी कोठियों को दिन रात एक करके शीशे की तरह चमका देते हैं।
कुछ बड़ी कोठियों वाले तो इस तोहफे की आड़ में उनसे इतना काम करवाते हैं जैसे दीवाली का तोहफा नही बदले में कोई खजाना ही दे देंगे।
अगले ही दिन से शकुंतला अपने समय से काम पर आ गयी।
"बीबी जी आज कहाँ से सफाई शुरू करूँ"आते ही हाथ मे झाड़ू और झाड़न लेते हुए बोली।
मैंने कहा,"कोई नही तू अभी अभी बुखार से उठी है तो ज्यादा काम नही करना। बस आराम से जितना होता है उतना ही करना'
जब दीवाली को दो दिन बचे तो मैने उसे बोला कि बता दे तुझे किस चीज की जरूरत है मैं तुझे वो ही ले दूंगी।
क्योंकि आज तक जब भी मैं दीवाली पर अपनी बाई को पूछ के तोहफा देती तो वो ज्यादातर कम्बल, कुकर या आटे का ड्रम ही बोल देती और मुझे भी उनको जो चाहिए होता वो ही ले के देने में ज्यादा खुशी मिलती।
"बीबी जी आपको तो पता ही है इस बार इस मुए बुखार ने बहुत नुकसान करा दिया। इसलिए तोहफे का तो अगले साल देखेंगे। आप मुझे पैसे दे देना मैं अपनी बिटिया को दीवाली पर पहनने के लिए फ्रॉक ले कर दूंगी और मिठाई में तो आप रसगुल्ले ही देना क्योंकि मेरी लाडो को सबसे ज्यादा रसगुल्ले ही स्वाद लगते हैं चाहे जितने भी खा ले उसका मन नही भरता।
बाकी कोठियों वाली बीबियाँ बिना पूछे ही दीवाली देती हैं तो मैं उनको बता नही पाती। क्योंकि सब घरों से मिक्स मिठाई मिलती है वो मेरे घर कोई नही खाता ऐसे ही पड़ी रहती है"
और मैं मन ही मन उस खुशी का अंदाजा लगा रही थी जो रसगुल्ले खाते हुए शकुंतला की बिटिया के चेहरे पर होगी और उसकी वो खुशी देखकर जो खुशी शकुंतला को मिलेगी उसका अंदाजा तो शायद मेरे लिए भी लगाना मुश्किल ही होगा।
- रीटा मक्कड़
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