उन तीन बहनों में कुसुम ही सबसे बड़ी थी। सो कुसुम के माता-पिता को उसके विवाह की चिंता लग गई। कुसुम सुंदर व पढ़ी-लिखी लड़की थी। इसलिए माता-पिता चाहते थे कि कुसुम को भी पढ़ा लिखा सुंदर लड़का मिले। वे उसके लिए इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, डॉक्टर लड़का तलाश करने लगे।
मगर लड़के वालों के भी नखरे कम नहीं थे।
कभी तो लड़के वाले दहेज के कारण मना कर देते। कभी उनको कुसुम का रंग रूप पसंद नहीं आता। कुसुम के माता-पिता के नखरे बहुत थे। उन्हें भी ऐसा वैसा लड़का पसंद नहीं था। अब कुसुम की उम्र भी हो चली थी। मां बाप ने समझाया कि अब ज्यादा नखरे करने से काम नहीं चलेगा शादी की उम्र निकली जा रही है।
एक बार एक लड़का कुसुम को देखने आया। कुसुम को देखते ही पसंद कर लिया मगर कुसुम ने वहां पर भी नखरे करने शुरू कर दिए। कहने लगी लड़के का रंग बहुत काला है मैं इसके साथ शादी नहीं करूंगी। लड़का पढ़ा लिखा एवं होशियार था। उसका बिजनेस बहुत अच्छा था।
बस उसका रंग अधिक सांवला था। लड़की इसी बात पर अड़ गई। तब उसकी मां ने समझाया कि बेटा घी का लड्डू टेढ़ा ही भला। इनके गुणों के आगे इनका रूप रंग कुछ मायने नहीं रखता।
फिर कुछ दिन बाद कुसुम भी उस लड़के से शादी करने को राजी हो गई। उसे भी लड़के का रंग रूप भाने लग गया। कुसुम ने खुशी-खुशी उस लड़के से शादी करके अपनी जिंदगी बस ली।
सवर्था अप्रकाशित व मौलिक रचना
लक्ष्मी कानोडिया
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