सास बहू की जोड़ी

 “अरे सीमा, आज तेरे चेहरे पर यह उदासी क्यों है? सुबह से पार्क में चुप बैठी है, न किसी से बात, न मुस्कान।”

रीता ने अपनी सहेली के पास बैठते हुए पूछा।

सीमा ने गहरी सांस ली, “क्या बताऊँ रीता, अब तो मन ही नहीं लगता। जब से घर में बहू आई है, लगता है जैसे मैं इस घर की नहीं रही।”

“अरे, फिर वही बहू का किस्सा?” रीता ने हल्के मज़ाक में कहा, “क्या अब भी वही तनातनी चल रही है?”

सीमा की आँखों में नमी आ गई। “रीता, मैं ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं, पर अपने बेटे को इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए सब कुछ किया। उसे इंजीनियर बनाया, अपनी ज़रूरतें दबाईं। और अब उसकी पत्नी ने तो जैसे मुझे अपने घर की नौकरानी समझ लिया है। बोलती कुछ नहीं, पर उसके हावभाव मुझे बहुत कुछ कह जाते हैं।”

रीता ने ध्यान से सुना। सीमा का स्वर भारी हो गया था।
“परसों मेरे बेटे रोहन की पत्नी, अदिति का ऑफिस पार्टी थी। उसने मुझसे कहा कि मैं साथ चलूँ। मैं भी बहुत खुश थी कि बहू पहली बार मुझे कहीं ले जा रही है। लेकिन वहाँ जब उसके सहकर्मियों ने पूछा कि ‘ये कौन हैं’, तो अदिति ने मुस्कुराकर कहा—‘ये हमारे घर का ध्यान रखती हैं, बहुत अच्छी कुक हैं।’ मैं जड़ होकर रह गई रीता। अपने पति  की मां को उसने ‘घर की देखभाल करने वाली’ कह दिया। मैं कुछ बोल नहीं पाई। अब तो बेटा भी विदेश चला गया है, उसे क्या बताऊँ?”

रीता ने चुपचाप उसका हाथ थाम लिया। “सीमा, तू इस बात से कमजोर मत हो। आज की बहुएँ सोचती हैं कि अंग्रेजी बोलने और नौकरी करने से वो बड़ी हो गईं। पर असली बड़ी वही है जो दूसरों को छोटा न समझे। सुन, तू भी कुछ ऐसा कर जिससे उसे एहसास हो कि तू किसी से कम नहीं।”

“पर रीता, मैं करूँ भी तो क्या?”

“तू तो कमाल का सिलाई काम जानती है। याद है, तूने मोहल्ले के बच्चों के ड्रेस सिलकर कितनी तारीफें बटोरी थीं? अब तो ऑनलाइन ऑर्डर का ज़माना है। तू अपनी बनाई ड्रेसेज़ का वीडियो बनाकर डाल। मेरी बिटिया मीनल तुझे सिखा देगी कैसे फोन से सब करना है।”

सीमा को बात कुछ समझ नहीं आई, पर रीता की बातों में आत्मीयता थी। उसने सिर हिलाया, “ठीक है, आज शाम तुम्हारे घर आ जाऊँगी।”


शाम को जब सीमा घर पहुँची, तो अदिति पहले से ही अपने कमरे में थी।
“मम्मी, खाना फ्रिज में रख दिया है, मैं और रोहन (पति) का वीडियो कॉल है, फिर खाना खा लेंगे।”
सीमा कुछ कहना चाहती थी, पर रुक गई। अदिति से संवाद अब सिर्फ़ काम की बातें रह गई थीं।

वह चुपचाप रोटियाँ सेंककर फ्रिज में रखी और कपड़े बदलकर रीता के घर चली गई।

“आओ सीमा, अंदर आओ,” रीता ने कहा।
मीनल लैपटॉप लेकर बैठी थी।
“आंटी, आप सिलाई बहुत अच्छा करती हैं न? हम आपका एक छोटा इंस्टाग्राम पेज बना देते हैं। वहाँ आपकी डिजाइन वाली ड्रेसेज़ की फोटो और वीडियो डाल देंगे। धीरे-धीरे सब लोग देखेंगे। ऑर्डर मिलने लगेंगे।”

सीमा हँस पड़ी, “अरे बिटिया, मुझे इन चीज़ों का कुछ नहीं आता। ये तो शहर वालों का काम है।”
मीनल मुस्कुराई, “आप सीख जाएँगी, आजकल तो बच्चे भी सीख जाते हैं।”

और फिर मीनल ने सब सेटअप कर दिया।
नाम रखा — “सीमा स्टिचिंग स्टाइल्स”
पहले वीडियो में सीमा ने अपने बनाए सूट का डिज़ाइन दिखाया। रीता ने उसे एडिट कर पोस्ट कर दिया।

पहले कुछ दिन कुछ खास नहीं हुआ। पर दसवें दिन ही एक कमेंट आया — “आंटी, आपके हाथ बहुत निपुण हैं। ऐसा नेक पैटर्न कहाँ से सीखा?”
सीमा के चेहरे पर चमक आ गई।
धीरे-धीरे कुछ और ऑर्डर आने लगे।

अब उसका रोज़ का रूटीन बन गया था — सुबह पूजा, फिर दो-तीन घंटे सिलाई और शाम को एक नया वीडियो।
उसे अब अपना वजूद महसूस होने लगा था।


अदिति ने भी बदलाव नोटिस किया।
अब घर लौटने पर सास पहले की तरह सवाल नहीं करती थी — “देर कैसे हो गई?”
बल्कि अपने काम में व्यस्त रहती थी।

एक दिन ऑफिस में अदिति की दोस्त ने कहा, “अरे अदिति, तेरी सास तो बड़ी फैमस हो रही हैं। मैंने कल यूट्यूब पर उनका वीडियो देखा। उन्होंने कितनी खूबसूरत ड्रेसेज़ बनाई हैं!”
अदिति चौंक गई।
“मेरी सास? वो तो...” उसने आधे में वाक्य रोक लिया।

रात को घर पहुँचकर उसने फोन पर सर्च किया — सीमा स्टिचिंग स्टाइल्स
सैकड़ों फॉलोअर्स, ढेरों कमेंट, और लोग उनकी तारीफ कर रहे थे।

“अद्भुत काम, सादगी में सुंदरता।”
“माँ जैसे हाथों का जादू है इन कपड़ों में।”

अदिति देर तक स्क्रीन देखती रही।
उसे याद आया — वही माँ, जिनके पहनावे का उसने मज़ाक उड़ाया था। वही माँ, जिन्हें उसने अपने दोस्तों के सामने ‘घर की देखभाल करने वाली’ कहा था।

उस रात अदिति को नींद नहीं आई।


एक हफ्ते बाद रोहन भारत लौटा।
“माँ, तेरे वीडियोज़ तो मैं वहाँ देखता हूँ। ऑफिस में सब कह रहे थे — तुम्हारी माँ बड़ी क्रिएटिव हैं!”
सीमा मुस्कुराई। “बस बेटा, लोगों का प्यार है।”

अदिति खामोश खड़ी थी।
“माँ, अगले रविवार को पार्टी रख रहा हूँ। तुम्हारी सफलता का सेलिब्रेशन करेंगे।”

“पार्टी?”
“हाँ माँ, तेरी पहचान का जश्न मनाना तो बनता है।”

अदिति ने धीरे से कहा, “मैं सारी तैयारी करूँगी।”


रविवार की शाम। घर में रौनक थी।
अदिति ने खुद सास के बनाए डिज़ाइन का सूट पहना था।
मेहमानों से बोली, “देखिए, ये ड्रेस मेरी सास का डिज़ाइन है। सब उनकी ही मेहनत है।”

सीमा की आँखें नम हो गईं।
पार्टी में जब एक महिला ने कहा, “आपकी सास तो बहुत आधुनिक सोच रखती हैं, अदिति,”
अदिति ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, उन्होंने ही तो मुझे सिखाया कि असली आधुनिकता व्यवहार में होती है, कपड़ों में नहीं।”

रोहन ने सबके सामने कहा, “मेरी माँ ही नहीं, ये हमारी प्रेरणा हैं। जिन्होंने कभी हार नहीं मानी।”

अदिति ने आगे बढ़कर कहा, “माँ, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपकी कद्र नहीं की। मैं सोचती थी, पढ़ाई से इंसान बड़ा होता है, पर असली बड़ा दिल होता है।”

सीमा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा, “बेटी, तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया, बस यही मेरी जीत है।”


अब घर में बदलापन था।
अदिति रोज़ ऑफिस से आकर माँ से नई डिज़ाइन सीखती थी।
दोनों मिलकर वीडियो बनातीं। अब चैनल का नाम बदल गया था — सीमा & अदिति क्रिएशन्स

फॉलोअर्स अब लाखों में थे, और हर कमेंट में लिखा होता — “माँ-बेटी की जोड़ी ने दिखा दिया कि रिश्ते सुई-धागे की तरह होते हैं, बस एक गाँठ प्यार से बाँधनी आती हो तो सब जुड़ जाता है।”

घर में फिर वही मुस्कान लौट आई।
पार्क में जब रीता ने सीमा को देखा, तो कहा, “अरे, अब तो तू ही स्टार बन गई है!”
सीमा हँसते हुए बोली, “नहीं रीता, असली स्टार वो बहू है जिसने अपनी गलती मान ली।”

रीता बोली, “और असली गुरुमाँ तू, जिसने बिना बदले के बदला जीत लिया।”

हवा में ठंडी सुगंध घुल गई।
सीमा के चेहरे पर अब शिकन नहीं, संतोष था —
कि जिस घर को उसने बनाया था, अब वो फिर से हँसने लगा था।

मूल लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल


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