बनावटी संबंध

 स्नेहा को हमेशा लगता था कि विवाह सिर्फ दो लोगों का नहीं, दो दिलों का रिश्ता होता है। उसकी सगाई पिछले ही महीने राजन से हुई थी, जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। सगाई के बाद राजन को तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए बेंगलुरु भेज दिया गया, और स्नेहा दिल्ली में अकेले—नए रिश्ते, नए परिवार और गिटर-बिटर भावनाओं के साथ।

शुरुआत में राजन हर रात वीडियो कॉल करता, तस्वीरें भेजता, बातें करता।
पर धीरे-धीरे राजन की व्यस्तता बढ़ने लगी।
कभी मीटिंग…
कभी ट्रेनिंग…
कभी थकान…

स्नेहा को महसूस होने लगा कि वह अकेली पड़ रही है।

उसी दौरान उसके ऑफिस में एक नई जॉइनिंग हुई—अंश
शांत स्वभाव, मददगार, और सबसे बड़ी बात—वह स्नेहा की बातें बहुत ध्यान से सुनता था।

शुरू में स्नेहा ने दूरी बनाए रखी।
वह जानती थी कि वह एक सगाईशुदा लड़की है।
मगर अंश के भीतर एक गहरी संवेदनशीलता थी।

एक दिन लंच ब्रेक में स्नेहा अकेली बैठी थी।
राजन फोन तीन बार काट चुका था।
उसके चेहरे पर शिकन साफ दिख रही थी।

“सब ठीक है?” — अंश ने पूछा।
“हाँ, बस… थोड़ा मन भारी है,” उसने झूठ बोल दिया।

पर अंश ने धीरे-धीरे उसके आसपास एक सुरक्षित सा घेरा बना दिया—
जहाँ वह अपने मन की बातें कह सकती थी,
जहाँ उसे तवज्जो मिलती थी।

एक शाम ऑफिस के बाहर बारिश हो रही थी।
अंश ने पूछा, “कैब मिल जाएगी या छोड़ दूँ?”

स्नेहा ने सोचा, “इसमें क्या बुराई है…”

रास्ते भर दोनों ने अपनी जिंदगी, अपने सपने और अपने डर के बारे में बातें कीं।
राजन की व्यस्तता और कम होती बातचीत के बीच, अंश का यह साथ उसे अच्छा लगा।

धीरे-धीरे अंश उसके जीवन का एक सहज हिस्सा बन गया—
कॉफी, फाइल्स, ऑफ़िस प्रोजेक्ट, छोटी बातें, हँसी…

स्नेहा कभी-कभी खुद को समझा लेती—
“यह बस एक दोस्ती है… इसमें गलत क्या है?”

लेकिन रिश्तों में गलती तब होती है जब हम खुद को समझा लेते हैं कि हम कोई गलती नहीं कर रहे।

राजन की ट्रेनिंग अब और बढ़ गई थी।
कॉल कम, मेसेज अनियमित, और बातें बस औपचारिक।

स्नेहा का मन खाली-सा रहता।
जिस खालीपन में अंश की बातें धीरे-धीरे घर करने लगीं।

एक रात ऑफिस में दोनों देर तक साथ काम कर रहे थे।

जनरेटर की हल्की गूँज…
खिड़की पर फिसलती बारिश…
फाइलों में उलझी उलझी साँसें…
और दो लोगों के बीच खिंची एक महीन-सी डोर…

अचानक बिजली गई और पूरी बिल्डिंग अंधेरे में डूब गई।
अंश ने उसके हाथ को हल्के से थाम लिया।

“डरो मत… मैं हूँ।”

स्नेहा का दिल धड़क उठा।
वह पीछे हटना चाहती थी—
पर भीतर कहीं एक टूटन, एक खालीपन उसे रोक रहा था।

अंधेरे में पड़े कुछ लंबे मिनटों में स्नेहा खुद को पहचान नहीं पाई।
और जब लाइट लौटी—
कुछ बदल चुका था।

वह दूरी जो होना चाहिए थी,
वह विचार जिसे रुक जाना चाहिए था,
वह रेखा जिसे पार नहीं होना चाहिए था—

सब धुँधले हो गए।

अगली सुबह राजन का फोन आया।
वह खुश था।
“स्नेहा! ट्रेनिंग खत्म! अगले हफ्ते वापस आ रहा हूँ!”

स्नेहा के हाथ काँप गए।
वह जवाब देने ही वाली थी कि उसकी स्क्रीन पर अंश का मैसेज आ गया—
“Reached office. Take care.”

दो दुनिया एक स्क्रीन पर आ गईं—
एक वह सुरक्षित रिश्ता जिस पर वह भरोसा करती थी,
और दूसरा वह भटकाव, जिसे उसने खुद को गिरने दिया था।

उस दिन स्नेहा ऑफिस गई पर अंश से नज़रें नहीं मिला सकी।
अंश ने महसूस किया—
“सब ठीक?”
“हाँ…”
लेकिन यह झूठ अंश के चेहरे पर सत्य बनकर पढ़ा जा चुका था।

“स्नेहा,” अंश ने धीमे स्वर में कहा,
“मैं कुछ भी नहीं बनना चाहता जो तुम्हें तोड़ दे।”

स्नेहा की आँखों में आँसू भर आए।
“मैंने गलती की है…”

राजन वापस आया।
पहली ही मुलाकात में उसने महसूस किया—
“कुछ तो है…”

स्नेहा ने होने न होने वाली बातें कीं, लेकिन राजन के चेहरे पर हल्की बेचैनी थी।

वह बोला—
“स्नेहा, मैं तुमसे दूर था, लेकिन तुम मेरी ज़िंदगी हो।
कहो न… सब ठीक है?”

उस पल स्नेहा को समझ आया—
जीवन में सबसे बड़ा अपराध किसी गलती का होना नहीं,
बल्कि उसे छिपाना होता है।

उस रात स्नेहा बहुत रोई।
पूरी तरह टूट गई।

सुबह होते ही उसने राजन को सब सच-सच बता दिया—
अमूमन लोग सोचते हैं कि सच बोलना आसान होता है,
लेकिन सच हमेशा दिल का सबसे भारी बोझ होता है।

राजन सुनता रहा, बिना टोके।
उसके चेहरे पर न गुस्सा था, न चीख, न मार—
बस एक शांत, गहरी चोट।

कुछ क्षण बाद उसने कहा—
“मैं तुम्हें समझता हूँ… अकेलापन टूटने की सबसे बड़ी वजह होता है।
गलती हम दोनों की है—
मैंने दूरी दी,
और तुम्हें उस दूरी में कोई और मिला।”

वह उठा, स्नेहा के आँसू पोंछे और बोला—
“तुम्हें माफ़ करता हूँ,
लेकिन हमें कुछ समय चाहिए… खुद को फिर से पहचानने का।”

अंश ने अपनी कंपनी बदल ली,
ताकि स्नेहा अपने जीवन को फिर से संतुलित कर सके।

स्नेहा और राजन ने काउंसलिंग ली,
अपनी गलतियों को समझा,
अपने रिश्ते में नई शुरुआत की।

रिश्ते टूटते नहीं हैं,
अगर दोनों उन्हें फिर से जोड़ना चाहे।

लेकिन स्नेहा ने एक बात जीवन भर के लिए सीख ली—

“दिल का खालीपन सबसे खतरनाक होता है,
क्योंकि वहीं से रिश्ते टूटते भी हैं…
और बनावटी संबंध पनपते भी हैं।”

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