सच्चा प्यार

 माया शहर के नामी कॉलेज में पढ़ती थी — खूबसूरत, होशियार और ज़िंदादिल।

क्लास के लगभग हर लड़के की नज़र उस पर रहती, लेकिन माया का ध्यान सिर्फ़ एक व्यक्ति पर था — चंदर।
चंदर दिखने में आकर्षक था, बातों में बेहद मीठा, और कॉलेज का सबसे लोकप्रिय लड़का।
माया को लगा कि उसने अपना जीवनसाथी पा लिया है।

चंदर हर रोज़ माया के आगे-पीछे घूमता, उसे उपहार देता, क्लास के बाद बाइक से घर छोड़ने जाता।
धीरे-धीरे माया भी उसे दिल से चाहने लगी।
दोनों साथ घूमते, बातें करते, और चंदर अक्सर कहता —
“माया, मैं तुमसे शादी करूँगा। तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊँगा।”
माया के चेहरे पर उस वक्त सच्चे प्यार की चमक होती थी।

लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
माया के पिता की कपड़ा फैक्ट्री, जो पूरे शहर में मशहूर थी, अचानक घाटे में आ गई।
कर्ज़ बढ़ता गया, और कुछ महीनों में फैक्ट्री बंद हो गई।
घर की आर्थिक हालत बिगड़ने लगी।
माया अब पहले जैसी बेफिक्र नहीं रही थी।
वो चंदर से मिलने के लिए भी अब कम निकलती थी।

एक दिन कॉलेज कैंटीन में माया ने चंदर को देखा —
वो किसी और लड़की के साथ बैठा हँस रहा था।
माया ने पास जाकर कहा —
“चंदर, तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो? कल तक तो कहते थे कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी हूँ!”
चंदर ने बिना उसकी ओर देखे कहा —
“माया, अब तुम्हारे पास क्या बचा है? न दौलत, न शोहरत। तुम्हारे पिता की फैक्ट्री बंद हो चुकी है। अब तुम मेरे किस काम की?”
माया स्तब्ध रह गई।
“तो तुम्हारा मेरे साथ रिश्ता सिर्फ़ मेरी दौलत की वजह से था?”
चंदर हँस पड़ा —
“अरे माया, मैं तो बस टाइमपास कर रहा था। अब मेरी नज़रों में वो है — जिसकी ज़िंदगी में सब कुछ है।”

चंदर किसी और लड़की का हाथ पकड़कर कैंटीन से चला गया।
माया वहीं खड़ी रह गई — टूटी, बिखरी, अपमानित।
उस रात उसने तकिए में मुँह छिपाकर खूब रोया।
सपनों में वो रिश्ता जिसे उसने सच्चा समझा था, झूठ साबित हो गया।

उसी शहर में मनीष नाम का एक लड़का रहता था।
वो बचपन से माया को जानता था, पर कभी अपने दिल की बात नहीं कह पाया।
वो जानता था कि माया चंदर को चाहती है,
फिर भी उसने हमेशा उसकी मदद की —
कभी किताबों में, कभी मुस्कान लौटाने में, कभी बस खामोशी से साथ देने में।

जब माया के पिता बीमार पड़े,
मनीष रोज़ दवा लेकर उनके घर आता।
कभी कोई एहसान नहीं जताता, बस यह कहकर चला जाता —
“अंकल, अब आप आराम कीजिए, सब ठीक हो जाएगा।”
माया को धीरे-धीरे एहसास हुआ कि जो इंसान बिना कुछ चाहे साथ खड़ा है,
वही सच्चा होता है।

एक शाम माया की माँ, सविता जी, रसोई में काम कर रही थीं।
उन्होंने देखा कि मनीष बाहर बरामदे में बैठा है।
वो बाहर आईं और बोलीं —
“बेटा, रोज़ इतना भाग-दौड़ क्यों करता है? तेरे अपने भी तो काम होंगे।”
मनीष मुस्कुराया —
“आंटी, अपने लोग मुश्किल में हों तो काम की परवाह कौन करता है।”

उसी वक्त माया बाहर आई।
उसकी आँखें सूजी हुई थीं, लेकिन उनमें अब एक नई चमक थी —
सच पहचानने की चमक।
उसने धीरे से कहा —
“मनीष, तुम अब तक मेरे लिए इतना करते रहे,
जबकि मैंने तुम्हारे प्यार की कभी कद्र नहीं की।”
मनीष ने मुस्कुराते हुए कहा —
“माया, प्यार सौदा नहीं होता। मैं तो बस चाहता था कि तुम खुश रहो।”

कुछ हफ्तों बाद माया को एक कंपनी में नौकरी मिल गई।
अब उसने ठान लिया था कि वह खुद को फिर से खड़ा करेगी।
वो रोज़ मेहनत करती, हर ज़रूरी बात सीखती।
मनीष हर कदम पर उसका हौसला बढ़ाता।
“तुम ये कर सकती हो माया। तुम्हारे अंदर बहुत ताकत है।”

धीरे-धीरे माया की ज़िंदगी पटरी पर लौटने लगी।
उसने अपनी पहली तनख्वाह से माँ के लिए साड़ी और पिता के लिए दवा खरीदी।
और मनीष के लिए एक छोटी-सी कलम —
कहते हुए,
“इस कलम से तुमने मुझे शब्दों में जीना सिखाया है।”

एक दिन अचानक माया को ख़बर मिली —
चंदर जिस लड़की से शादी करने जा रहा था,
वो रिश्ता भी टूट गया।
क्योंकि जिस लड़की को उसने अमीर समझा था,
उसके पिता की कंपनी पर भी टैक्स का छापा पड़ा था।
माया ने यह सुना, पर उसके दिल में अब कोई गुस्सा नहीं था।
बस एक सुकून था —
“जो झूठ पर टिका हो, वह रिश्ता कभी नहीं टिकता।”

कुछ महीनों बाद माया के घर में फिर खुशियाँ लौट आईं।
उसके पापा की सेहत सुधर गई थी,
और कंपनी में उसका प्रमोशन भी हो गया था।
एक दिन शाम को माँ ने कहा —
“माया, एक बात कहूँ — मनीष से शादी कर लो।
उसके जैसा सच्चा लड़का इस दुनिया में बहुत कम है।”

माया चुप रही,
फिर मुस्कुराकर बोली —
“माँ, अब निर्णय दिल नहीं, समझ से लूँगी — और मनीष मेरा दिल भी है, मेरी समझ भी।”

अगले दिन माया ने मनीष को मिलने बुलाया।
वो आई, उसकी आँखों में खुशी थी।
“मनीष, मैं अब तुम्हें ‘धन्यवाद’ नहीं कहूँगी।”
मनीष ने हँसकर पूछा — “तो फिर क्या कहोगी?”
माया ने धीरे से उसका हाथ थाम लिया और बोली —
“बस इतना कि — आई एम सॉरी, और अब अगर तुम चाहो तो ‘आई लव यू’ भी कह सकती हूँ।”

मनीष के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।
वो बोला — “तुमने जो कहा, वही तो मैं सालों से सुनना चाहता था।”

शाम को जब माया की माँ ने दोनों को साथ देखा,
उन्होंने भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर कहा —
“सच्चे दिल से किया गया प्यार भले देर से फल दे,
पर वो सबसे मीठा होता है।”

दोस्तों
झूठे रिश्ते दिखावे पर टिके होते हैं,
पर सच्चा प्यार वही होता है जो हर हाल में साथ दे —
चाहे समय बुरा हो या अच्छा।
प्यार का मोल दौलत नहीं, सच्चाई तय करती है।

मूल लेखिका 

विभा गुप्ता 


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