"देखिये जी! हमें रमा बिटिया बहुत पसंद है आप उससे भी पूछ लें क्या उसे भी हमारा बेटा नमन पसंद आया?महेश जी ने कमल जी से पूछा! "
रमा और नमन की राय जान कर शादी की तारीख तय हो गई!
कमल जी ने सकुचाते हुए महेश जी से कहा"आपकी कोई विशेष डिमांड हो तो बता दें ताकि बाद में दिक्कत न हो"!
महेश जी ने उनके हाथ पकड़कर कहा"कैसी बातें कर रहे हैं भाई साहब?अब हम एक परिवार हैं आप अपनी बेटी दे रहे हैं इससे ज्यादा हमें क्या चाहिए! हम दान दहेज के एकदम खिलाफ हैं,हमें कुछ नही चाहिए!"
कमल जी का सर शान से ऊंचा हो गया,वे सोचने लगे हमने पिछले जनम में जरुर मोती दान किये होंगे जो आज के कलियुग में महेश जी जैसे समधी मिले!
रमा नमन की दुल्हन बन महेश जी के घर आ गई!
रमा ने देखा उसके प्रति घरवालों का व्यवहार कुछ रुखा रुखा सा है!
रात को उसने इस बारे पूछा तो नमन टाल गया!
सुबह रमा को जब पग फेरे के लिए लेने कमल जी आए तो महेश जी ने साफ शब्दों में उन्हें कहा" भाई साहब बुरा मत मानियेगा,हमने कुछ नहीं मांगा तो आपने तो सस्ते में ही बेटी निपटा दी,हमें लगा था आप फर्नीचर,फ्रिज,टीवी ,ऐ सी के साथ बड़ी गाड़ी ना सही छोटी कार तो देंगे ही!आपने तो मेरे बेटे को किसी के आगे मुंह दिखाने लायक नहीं छोडा.
मेरे पड़ोसी के पोर्च में खड़ी गाड़ी देखकर मेरा तो अब दिल जल रहा है!हमारी भलमनसाहत का आपने खूब फ़ायदा उठाया!वाह भाई साहब वाह!
कमल जी महेश जी का दोगलापन देखकर हक्के बक्के रह गए!
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक
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