सान्वी हमेशा से शांत स्वभाव वाली लड़की थी। पढ़ाई में तेज़, सोच में परिपक्व और चेहरे पर ऐसी मासूमियत कि कोई भी उसे देखकर प्रभावित हो जाए। बचपन से उसने एक ही सपना देखा था — शिक्षक बनकर लड़कियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देना। उसके पिताजी बस ड्राइवर थे और मां घरों में काम करती थी। घर की आर्थिक स्थिति बेहद तंग थी, पर सान्वी ने कभी शिकायत नहीं की। वह जानती थी कि उसकी मेहनत ही उसका रास्ता बनाएगी।
परिस्थितियों से जूझते हुए उसने बी.ए. किया और फिर टीचिंग कोर्स में एडमिशन लिया। कोर्स पूरा होने के बाद उसे शहर के एक नामी कोचिंग सेंटर में जॉब मिल गई। यहां वह बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते खुद भी सीखती रहती। कुछ ही समय में उसकी क्लास सबसे ज्यादा पसंद की जाने लगी।
इसी कोचिंग में उसकी दोस्ती आयशा से हुई। आयशा हंसमुख, बेबाक और बेहद आत्मनिर्भर लड़की थी। दोनों की दोस्ती थोड़े ही समय में गहरी हो गई। वे साथ लंच करतीं, साथ घर लौटतीं और एक-दूसरे से अपने मन की हर बात साझा करतीं।
कुछ महीनों बाद दोनों की मेहनत देखकर कोचिंग सेंटर के मालिक निखिल सर ने उन्हें एक नए प्रोजेक्ट में शामिल किया — लड़कियों के लिए फ्री स्कॉलरशिप बैच। सान्वी और आयशा बेहद खुश थीं। उन्हें लगा कि अब वे सच में समाज के लिए कुछ बड़ा कर पाएंगी।
पर उन्हें क्या पता था कि इस दिखावे के पीछे एक गंदी कहानी छुपी है।
एक दिन, क्लासेस खत्म होने के बाद निखिल सर ने आयशा से रुकने को कहा। वह मुस्कराते हुए बोली, “सर, आज घर जल्दी जाना है, अब्बू की तबीयत खराब है।”
निखिल ने कहा, “बस 10 मिनट की बात है, काफी जरूरी है।”
आयशा रुक गई।
उसके जाने के बाद सान्वी भी घर चली गई। अगले दिन जब वह कोचिंग पहुंची तो देखा कि आयशा नहीं आई। उसने फोन किया — फोन स्विच ऑफ। दोपहर तक भी कोई खबर नहीं। वह परेशान होने लगी।
शाम को आखिर आयशा का मैसेज आया — “मैं कुछ दिन के लिए नहीं आऊंगी।”
सिर्फ इतना।
सान्वी को यह बिल्कुल सामान्य नहीं लगा। वह सीधे आयशा के घर पहुंची। आयशा की बहन ने दरवाजा खोला। वह घबराई हुई थी। उसने कहा, “दीदी तबीयत खराब है… आराम कर रही हैं।”
उसकी आवाज में कुछ ऐसा था जिससे साफ पता चल रहा था कि वह सच नहीं बोल रही।
थोड़ी देर बाद सान्वी ने कमरे की खिड़की से झांका। आयशा बिस्तर पर बैठी रो रही थी। उसके हाथ कांप रहे थे। वह किसी से बात नहीं करना चाहती थी।
अगले दिन सान्वी फिर गई। इस बार वह आयशा के कमरे में सीधा घुस गई और बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया। बोली, “क्या हुआ है? मुझसे क्यों छिपा रही हो?”
आयशा फूट पड़ी, “सान्वी, मैं बर्बाद हो गई हूं।”
कांपती आवाज में उसने पूरी बात बताई — रात में निखिल ने ऑफिस में उसे रोककर उससे गलत हरकत करने की कोशिश की। जब उसने विरोध किया तो उसने उसे दीवार से सटाकर धमकाया, “मेरे खिलाफ कोई एक शब्द भी बोला तो देख लेना… तुम्हारे परिवार पर मुसीबतों की बरसात कर दूंगा।”
आयशा रोते हुए बोली, “उसने मेरी स्कॉलरशिप वाली लड़कियों की फोटो भी दिखाई और कहा कि अगर तुमने कुछ कहा तो मैं इन्हें भी नहीं छोड़ूंगा… सोच लो।”
सान्वी यह सुनकर सन्न रह गई। वह कांपते हुए बोली, “ये सब कब तक? कब तक चुप रहेंगी हम?”
आयशा ने सिर झुका लिया, “मैं गरीब हूं सान्वी… अब्बू बीमार रहते हैं। अगर कोई कांड हुआ तो समाज सबसे पहले मुझे ही दोष देगा। लोग कहेंगे कि लड़की ही गलत थी। मेरा परिवार बिखर जाएगा।”
सान्वी सारी रात सो नहीं पाई। उसके अंदर एक आग जल रही थी — इतनी कि वह खुद भी हैरान थी। अगले दिन वह कोचिंग गई और निखिल के सामने खड़ी होकर बोली, “आपके खिलाफ शिकायत होगी। जो आपने आयशा के साथ किया है, वह किसी हाल में बर्दाश्त नहीं होगा।”
निखिल हंस पड़ा।
“तू क्या करेगी? तेरी औकात क्या है? मैं एक फोन में तुझे कहीं का नहीं छोड़ूंगा।”
सान्वी ने पहली बार किसी की आंखों में इस तरह की हैवानियत देखी। वह बिना कुछ बोले वहां से निकल गई, पर एक बात उसके अंदर पक्की हो चुकी थी — वह चुप नहीं बैठेगी।
जब सान्वी ने ये बात घर में बताई तो मां डर गईं। बोलीं, “बेटी, यह बड़े लोगों का मामला है। तेरी नौकरी चली जाएगी। हमारा क्या होगा?”
उसके पिताजी बोले, “सान्वी, तू पढ़ी-लिखी है, समझदार है। ऐसे झगड़े में मत पड़।”
पर सान्वी कुछ सुनने को तैयार नहीं थी।
वह फिर आयशा के घर गई। इस बार आयशा ने डरी हुई आवाज में कहा, “सान्वी, निखिल के आदमी हमारे घर तक आ गए थे। उन्होंने साफ कहा कि अगर हम चुप नहीं रहे तो मुझे और मेरे घरवालों को उठाकर ले जाएंगे। मैं मर जाऊंगी पर शिकायत नहीं करूंगी।”
सान्वी ने आयशा का हाथ पकड़कर कहा, “अगर तुम नहीं चलोगी, तो मैं अकेली लड़ूंगी।”
आयशा चौंककर बोली, “अकेली? पागल हो क्या?”
सान्वी ने दृढ़ आवाज में कहा, “एक लड़की की आवाज कमजोर हो सकती है। पर अगर हर लड़की बोले, तो किसी की हिम्मत नहीं कि उसे दबा सके। किसी न किसी को शुरू तो करना होगा।”
करीब एक हफ्ते तक सान्वी अकेली कोचिंग जाती रही। निखिल लगातार उसे धमकाता रहा। एक दिन उसने सान्वी को अपने ऑफिस में बुलाकर कहा, “अगर अभी भी तेरे दिमाग में कोई हीरो बनने की बात चली तो याद रख — तेरी मां जिस घर में काम करती है, उसे भी बर्बाद कर दूंगा।”
यह सुनकर सान्वी की आंखों में खून उतर आया।
उसने कहा, “आप गलत लड़की से टकरा गए हैं।”
उस दिन से उसने चुप रहने वाली मासूम लड़की को पीछे छोड़ दिया था। उसने पहले उन सभी लड़कियों से मिलने का फैसला किया जिन्हें निखिल कभी अकेले रुकने को कहता था। जितनी भी लड़कियां थीं, सब डरी हुई थीं। कुछ ने बात बताने की कोशिश की, पर डर ऐसा कि गला सूख जाता।
सान्वी ने हर लड़की को समझाया, “अगर हम साथ खड़े हो जाएं, तो यह आदमी कुछ नहीं कर सकेगा।”
धीरे-धीरे पांच लड़कियां उसके साथ आ गईं। उनमें से एक ने हिम्मत जुटाकर कहा, “दीदी, मैं भी गवाही दूंगी। आप हमारे लिए खड़ी हुईं, हम आपके लिए खड़े रहेंगे।”
दो दिन बाद, आयशा भी रोते हुए बोली — “सान्वी… मैं भी चलूंगी। तुम्हारा साहस देखकर मुझे भी हिम्मत मिली है।”
अब सान्वी अकेली नहीं थी। वह एक समूह थी — साहस का समूह।
सभी लड़कियां मिलकर थाने गईं। पहले पुलिस ने टालने की कोशिश की। पर जब 7 लड़कियों ने एक साथ बयान दिया, तब मामला गंभीर हो गया।
निखिल को पता चला तो उसने गुंडे भेजकर उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन इस बार लड़कियां झुकी नहीं। FIR दर्ज हुई। सोशल मीडिया पर भी मामला उठ गया। स्थानीय महिलाओं के संगठन भी इनके साथ आ गए। मामला इतना बड़ा हो गया कि पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी पड़ी।
तीन दिनों के भीतर निखिल गिरफ्तार हो गया।
कोचिंग सेंटर सील कर दिया गया।
और लड़कियों के लिए नया बैच शुरू किया गया — सान्वी और आयशा के नाम पर।
आज सान्वी उसी समाज के सामने खड़ी थी जिसने हमेशा लड़कियों को डर के साए में जीना सिखाया था। वह बोली —
“हमारी चुप्पी ऐसे लोगों की ताकत है। जब हम बोलना शुरू कर देंगी, तो ये गिर जाएंगे… जैसे आज गिरा है।”
उसकी आंखों में वही चमक थी जो हमेशा से थी — पर अब उसमें साहस और आग भी शामिल थी।
और यही उसे विशेष बनाती थी।
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