तंग आ गया हूं मैं रोज रोज की किच किच से कहां कहां देखूं मैं क्या क्या संभालूं नौकरी ही कर लूं या फिर घर के फसाद ही सुलझाता रहूं .. तनिक धैर्य नहीं है आपको बस अपना ध्यान रहता है हर समय आपकी ही सेवा में कौन दिन भर लगा रहेगा पिताजी इतनी फुरसत किसी को नहीं है.... इसीलिए वृद्ध आश्रम में भेजना सही रहता है जाओ अब वहीं चैन से रहना और हम लोगो को भी चैन से रहने देना.. अभय तेज स्वर में बड़बड़ाता जा रहा था और पत्नी रेणु के साथ तेजी से पिताजी का सामान भी बांधता जा रहा था।
आज रविवार का सदुपयोग हो रहा था।
हां हां भेज दे मुझे निकाल दे मेरे ही घर से मुझे बेदखल कर दे बस यही करना तो तुझे आता है अब मैं बोझ हो गया हूं ना तुझ पर तेरी जोरू पर... अवश हो गया हूं ना ...पिता आलोक नाथ विवश आंसू लिए चिल्ला उठे।
मत भूलिए आप ने भी अपने पिताजी को अपने से दूर कर दिया था अभय ने भी तेजी से तंज कसते हुए कहा।
सकते में आ गए थे आलोकनाथ जी।
दूर नही किया था मैंने ...उन्हें गांव में ही रहना अच्छा लगता था तो मैं क्या करता लाख कोशिश करने पर भी वह मेरे साथ शहर के छोटे से मकान में नहीं रह पा रहे थे सफाई सी देने लगे थे वह।
छोटे से मकान के कारण नहीं आपकी छोटी छोटी बातों में किच किच से छोटी सोच के कारण नहीं रहना चाहते थे वह मुझे अच्छे से याद है दादाजी कितने दुखी थे बुढ़ापे में गांव में अकेले असहाय रहना किसे अच्छा लगता है पिताजी!!अभय का स्वर उग्र था।
मुझ पर झूठा लांछन लगा रहा है मैं खुद गया था गांव उनके साथ वहां सारी व्यवस्था करवाने उनको वहां कोई कष्ट नहीं था मैं हर महीने जाता था आस पड़ोस के लोग ख्याल रखते थे...!तनिक जोर से कहा था उन्होंने।
अपने दिल को झूठी तसल्ली आप ही दीजिए पिताजी... जहां आज मैं आपको ले जा रहा हूं वहां भी सारी व्यवस्था बहुत बढ़िया है कोई दिक्कत नही होगी बहुत सारे लोग ख्याल रखने को मैं भी हर महीने आता रहूंगा ... चलिए अब ...बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय....ये रहा आपकी दवाई का डिब्बा .!!अभय ने डिब्बा थमाते हुए रोष से कहा तो आलोकनाथ घर छूटने के दुख में रो पड़े।
पापा रुकिए... किशोर वय मिंटू मचल उठा दरवाजे तक जाते हुए दादाजी का हाथ पकड़ लिया उसने।
मिंटू..... अभय और रेनू गरज उठे।
पापा जरूरी है क्या कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय का ये व्यंग्य दादाजी को सुनाना और वही काम जो आपको उस समय बुरा लगा था वही आप अपने पिता जी के साथ दोहरा रहे हैं आपने क्या सबक लिया फिर!!!आप भी तो वही कर रहे हैं कारण जो भी दे रहे हैं..!!
क्या मैं भी इसी लकीर को आगे बढ़ाने का सबक लूं??
पापा प्लीज किसने क्या गलत किया इस पर तोहमत लगाने के बजाय आइए ना बबूल का पेड़ उखाड़कर आज हम मिलकर आम का ही पेड़ लगाते हैं जिससे हमेशा आम ही खाने को मिलते रहें..!!
मिंटू ने अपने हाथों से अपने पापा और दादाजी का हाथ मिलाकर पकड़ते हुए उत्साह से कहा तो जाते हुए कदम थम गए ...और आंखें नई खुशी से छलक उठीं..!
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय#लघुकथा
लतिका श्रीवास्तव
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