पोते के कुंआ पूजन में सावित्री ने अपनी तीनों ननंदो के लिए एक एक सोने की अंगूठी, बिछुए पाज़ेब के साथ कपड़े और नगद "शगुन" के रूप में दिया तो तीनों ने मुंह बना लिया... अरे भाभी कमाऊ बहू बेटे है तुम्हारे, बहू के घर से भी कितना कुछ आया है और तुम हमें ऐसे सस्ते में निबटा रही हो.. ननंदो ने बहू के घर से आए सोने के गहनों की तरफ ललचाई नजरों से देखते हुए व्यंग से कहा तो हमेशा सावित्री को रोकने टोकने और किसी के भी सामने नीचा दिखाने वाली उसकी सास रौबदार आवाज में कड़कते हुए अपनी बेटियों को डांटते हुए बोली... माल लेने के लिए तो तीनों को बड़ी आग लगी है, जब यही भाभी और भैया दिवालिया होने पर तुम लोगों से मदद की गुहार कर रहे थे तब तो तुम लोगों ने मुंह मोड़ लिया और आज जब सावित्री सब भूलकर मान सम्मान कर रही है तो उसमें भी तुम्हे तस्सली नहीं... ऐसा करो तीनों अभी के अभी अपने सामान समेट कर निकलो मेरे घर से, मुझे खुशी के मौके पर कोई तमाशा नहीं चाहिए।
मां का ऐसा विकराल रूप देख तीनों बेटियों ने चुपचाप शगुन का सामान रख लिया और पूरे समारोह में भी शांत बनी रही... सावित्री, जो मन ही मन अपनी सास से नफरत करने लगी थी, आज उनका ये रूप देख, अपना सर सम्मान से झुका कर उनके पैरो को छूकर बोली "धन्यवाद अम्मा"...
किसी ने सच ही कहा है की # घी का लड्डू टेढ़ा भी भला होता है...
स्वरचित मौलिक रचना
कविता भड़ाना
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