रीना के तीन कमरे के फ़्लैट में भीड़ लगी है..एक अजीब सी नीरवता है.. श्मशान सी शांति है..ऐसा लग रहा है जैसे बेमौसम दामिनी की ह्रदय विदारक गरज के साथ धुआँधार बारिश ने सारे पेड़ पौधों को बेतरतीब कर शमशान की शांति फैला दी हो..रीना ड्रॉइंग रूम के कार्पेट पे बेसुध पड़ी है...कभी कोई गीले तौलिए से उसके चेहरे को पोंछ रहा है, कोई सर सहला रहा है..कभी मुँह खोल कर दो चम्मच पानी डाल रहा है.. वो टस से मस नहीं हो रही,जैसे शरीर में प्राण हो और मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया हो! कल रात से यही चल रहा है ।
दो वर्ष पूर्व ही रीना की माँ ह्रदयाघात में स्वर्ग सिधार चुकी थीं अब पिता भी सड़क दुर्घटना में काल कवलित.. माता पिता की इकलौती संतान होने के कारण अब रीना का इस दुनिया में कोई नहीं रहा..कहने को वो चार चाचाओं और तीन बूआओं के परिवारों के बीच एकमात्र लड़की है,पर सभी स्वार्थी हैं,अभी तो सांत्वना दिखाने की होड़ लगी है.. सबों ने अपने को सबसे अच्छा साबित करने में पूरी ताक़त लगा दी है..भले ही बाद में उसे रिश्तेदारों की सूची से भी अलग कर दिया जाए!
सभी चाचा, मौसा , मामा, फूफा ने मिल कर तेरह दिनों का श्राद्ध कर्म सम्पन्न कराया... कोई कसर नहीं छोड़ी गई..दिवंगत आत्मा की शांति हेतु सारे अनुष्ठान वृहत रूप से करवाए गये..उनकी पसंद नापसंद का पूरा ख़्याल रखा गया.. जैसे कोई सुख का मौक़ा हो!... खैर, अब सब के जाने की बारी आई..दो दिनों के अंदर सभी अपने अपने घर वापस चले गये, किसी ने रीना के भविष्य के विषय में चर्चा नहीं की। एक अमला मौसी रह गयीं...वो दिन रात रीना के साथ रहतीं.. उससे बातें करतीं... उसके भविष्य की योजनाओं के विषय में जानने की कोशिश करतीं । रीना अब कुछ कुछ सामान्य होने लगी है..उसने अपना कार्य भी प्रारम्भ कर दिया है,विद्यालय जाने लगी है ।दो वर्षों से वो एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका का काम कर रही है ।जब वो घर में रहती,अमला मौसी उसके पास ही बैठी कर कुछ कुछ बातें करतीं । उसके खाने पीने का ध्यान रखतीं । एक दिन मौक़ा देखकर उन्होंने उससे भविष्य की योजना पूछी.. उसने कहा " अकेली ही रहूँगी.. पापा ने फ़्लैट ख़रीद ही दिया है.." मौसी ने समझाने की कोशिश की " ज़माना ठीक नहीं है, अकेली लड़की देखकर नज़र बुरी करते देर नहीं लगती लोगों को! तुम सकूल में बात करो, दिल्ली स्थानांतरित कर दें तो ठीक , नहीं तो नौकरी छोड़ दो, वहीं हमारे साथ चलो, कोई न कोई नौकरी मिल ही जाएगी!"पहले तो इसके लिए तैयार नहीं हुई, फिर मौसी के बहुत कहने पर उसने स्कूल में बात की.. उसे दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया.. माता-पिता को खोना, फिर अपना घर अपना शहर छोड़कर कहीं और जाकर बसना.. ह्रदय को चकना चूर कर दूसरे ह्रदय के प्रत्यारोपण की तरह ही है...फिर भी उसे कोई दूसरा उपाय उसे सूझ नहीं रहा था..अकेले रह कर खुद का भविष्य बनाना उसे अथाह सागर में डूब कर निकलने की कोशिश करने जैसा महसूस हो रहा था.. मौसी का कहना उसे शत प्रतिशत सही जान पड़ा! सो अब वो मौसी के साथ दिल्ली आ रही है... पड़ोसी को घर की चाभी दे कर घर किराए पर लगाने हेतु अनुरोध कर वो मौसी के साथ दिल्ली आ जाती है।
एक सप्ताह के अन्दर वो डी.पी.एस., आर. के. पूरम में योगदान देकर ज़िन्दगी को पटरी पे लाने,सामान्य महसूस करने की कोशिश में लगी है।अमला मौसी और मौसा जी उसका बहुत ध्यान रखते हैं । कभी मैट्रो कभी बस से उसका विद्यालय आना-जाना होता है। सबीर उसी विद्यालय में शिक्षक है, अक्सर रीना और सबीर का साथ साथ ही आना-जाना होता है । सहकर्मी की तरह दोनों के बीच पठन- पाठन सम्बन्धी आचार विचार का आदान प्रदान भी होता है । रीना पे तो दुखों का पहाड़ टूट चुका है, इस वजह से वो कम ही बात करती,जितना पूछा जाता उतना ही बोलती..पर सबीर , रीना की खुबसूरती,उसके आचार विचार, व्यवहार से अछूता नहीं रह पा रहा था..किसी न किसी बहाने वो अपने को अभिव्यक्त करने की कोशिश करता...रीना समझ कर भी अनभिज्ञ बनी रहती।सबीर हिन्दी विषय का शिक्षक था, उसे ग़ज़लें, कविताएँ लिखने का शौक़ था, वो रीना को अपनी रचनाएँ सुनाता...वो भी मंत्रमुग्ध होकर सुनती... पर आँखों से कोई भाव ज़ाहिर नहीं होने देती..न जाने कैसे वो अहसासों को ज़ब्त करती..
ऐसे ही चल रहा था, पर एक दिन रीना ने अमला मौसी को अपनी और सबीर की कहानी बताई.. मौसी ने उसे घर लाने को कहा, तदनुसार रीना ने सबीर को मौसी की भावना से अवगत कराया।सबीर ख़ुशी ख़ुशी रीना के घर जाने को तैयार हो गया ।
मौसी ने सबीर के स्वागत में तरह-तरह के पकवान बनाए ।जी भर आवाभगत किया । रीना के प्रति उसकी भावनाओं को उसके ही शब्दों में समझने की कोशिश की। मौसी को दोनों जीवन साथी के रूप में एक दूसरे के लिए उपयुक्त लगे। केवल उसकी उम्र कुछ अधिक लगी, रीना सत्ताइस की थी और सबीर पैंतीस का.. दोनों में सात वर्षों का अंतर... और उन्हें विवाह की जल्दी थी… सादे समारोह में,मंदिर ( विंध्याचल) में शादी करनी थी।मौसी ने इस विषय में रीना से उसके विचार पूछे, उसे इन दोनों बिन्दुओं पे कोई आपत्ति नहीं थी..सो मौसी ने सबीर के घर जाकर उसके माता-पिता से सारी बातें तय कर विंध्याचल जा कर शादी करवा दी।
रीना ससुराल आ गई है,तीन कमरे का सजा सँवारा फ़्लैट है।सास ससुर के अलावा एक देवर है,जो पूर्व से ही शादी सुदा है।इनके अलावा शादी में आये हुए कोई रिश्तेदार नज़र नहीं आ रहे हैं।रीना को लगता है, मंदिर से शादी हुई है,शायद इसलिए रिश्तेदारों को खबर नहीं किया गया होगा.. वैसे उसने भी तो रिश्तेदारों को आमंत्रित करने हेतु मौसी को मना कर दिया था! उसके स्वागत में तो कोई कमी नहीं की गई थी.. सासु माँ और देवरानी ने ही सारी रस्में शौक़ से निवाहे थे!
सबीर के साथ परिवार के सभी सदस्य बहुत खुश नज़र आ रहे थे।सभी रस्मों की अदायगी के बाद अब सुहाग रात की बारी आई । दरवाज़े पे ही फूलों से " Reena Weds Sabeer" लिखा था।पूरा कमरा फूलों से लदा था.. दरवाज़े से पलंग तक जाने के रास्ते को रजनीगंधा और गुलाब की पंखुड़ियाँ डाल कर विशेष आतिथ्य दर्शाया गया था..पलंग की सजावट का तो कुछ कहना ही नहीं ....उस पर बैठकर फूलों को मलीन करने का मन नहीं हो रहा था.. सबीर से बातें तो होती ही थी,बातों में कोई नयापन नहीं था.. उसने हनीमून के लिए जगह पूछा..रीना ने तुरंत काश्मीर कह दिया... उसने कहा " अब काश्मीर नहीं रीना"
रीना ने कहा "अब " मतलब सबीर? "कुछ नहीं रीना.. बस समझो एक बार गया हूँ पर अच्छा अनुभव नहीं है.. इसलिए " सबीर ने कहा।सुहाग रात की बेला में बात बढ़ाना ठीक नहीं था, सो रीना ने बात ख़त्म करते हुए गोवा का विकल्प दिया।
हनीमून से वापस आने के बाद सासु माँ और ससुर जी दिल खोलकर नयी बहु रानी पे प्यार लुटाते..रीना को अपने मम्मी पापा के स्थान पे सास ससुर लगने लगे.. पर कुछ था जो अंदर ही अंदर उसे खटकता । विद्यालय आने जाने के क्रम में भी कोई अहम जानकारी नहीं मिल पाई..अकेली होने पर अपने कमरे में भी वो ढूँढती.. कमरे में सबीर के लिखने पढ़ने के लिए एक बड़ा सा टेबल था, उसमें तीन दराज़ थे, उपर और नीचे के दराज तो खुले रहते पर बीच वाले में ताला लगा रहता..शायद ताले के अंदर उसे कुछ हल मिले..इस विषय में उसने अपनी देवरानी, मनीषा से भी पूछने की कोशिश की.. पर उसने अनभिज्ञता ज़ाहिर कर मना कर दिया।हाँ कभी-कभी सबीर दराज खोलता , कुछ देखता,आँखें भी कभी नम हो जातीं.. पर रीना को कुछ नहीं बताता! रीना को चैन नहीं मिलता.. सब कुछ तो था, मम्मी पापा जैसे सास ससुर, प्यारी सी देवरानी,देवर, प्यार बरसाता पति.. फिर भी कोई तो बात थी, जो उसका चैन छीने जा रही थी,उदासी की परत उसके चेहरे को ढक रही थी। ऐसा लगता जैसे घर वाले भी उसकी उदासी देखकर किसी अनहोनी के भय से भयभीत हों ! सभी मन ही मन कुछ पीकर रह जाते.. ज़ाहिर नहीं करते!
रीना की तबियत ख़राब है, ज्वर से उसका शरीर तप रहा है, आज उसने विद्यालय से सी एल ले रखी है। सबीर ने भी लेना चाहा, पर रीना के मना करने पर वो उसे दवा देकर विद्यालय चला गया! अचानक रीना ने देखा वो दराज आज खुला है.. तुरंत उठकर उसने उसे खोला..उसे तो जैसे चक्कर ही आ गया..सबीर की शादी,हनीमून का ऐल्बम,दो तीन वर्ष के बच्चे के साथ दोनों की तस्वीर.. बहुत सारी चिट्ठियाँ..रीना वहीं पर बैठ कर बहुत सारी चिट्ठियाँ एक साँस में ही पढ़ डाली.. कुछ को पढ़ नहीं पाई..पढ़कर भी क्या करती.. इतना ही समझना कि सबीर पूर्व से ही शादी सुदा है और एक बच्चे का पिता है,उसे पहाड़ से गिरने से कम नहीं था..उसे लगा जैसे किसी ने पेड़ के निचली तना को हिला दिया हो..और पूरा पेड़ ही अनिश्चितता के भय से काँप रहा हो..वो बहुत रोई..आख़िर सबीर ने उससे इतनी बड़ी बात छुपाई क्यों?.. और कहाँ है उसकी पत्नी और बच्चा? सब कुछ था ही तो मुझसे शादी करने की आवश्यकता क्या थी? कुछ प्रश्न अब भी अनुत्तरित थे!
हमेशा की तरह शाम में विद्यालय से आकर सबीर सीधे अपने कमरे में जाता है..रीना औंधे मुँह पड़ी है..सबीर प्यार से उसके सर पे हाथ फेरता हुआ पूछता है.." कैसी हो रीना डार्लिंग?"
कोई प्रतिक्रिया नहीं... वो बल लगाकर उसका चेहरा सामने करता है.. आँखे लाल लाल , सूज कर बाहर निकल आई हैं.. , उसकी पेशानियाँ छूता है... ठंडा हुआ पड़ा है.. क्या हुआ रीना..? चलो डॉक्टर से दिखाता हूँ.. तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं... इतने में उसकी नज़र खुले दराज पर पड़ती है..जाकर देखता है.. सब कुछ बेतरतीब पड़ा है... उसे समझते देर नहीं लगी.. रीना के पास आकर उसका सर सहलाता रहा.. वो रोती रही..किसी ने कुछ कहा नहीं.. दोनों ने एक दूसरे की मनोदशा को महसूस करते हुए रात बिता दी..
सुबह होते ही रीना ने पैकिंग शुरू कर दी.."क्या कर रही हो?... कहाँ जाओगी?" सबीर ने पूछा ।
"मौसी के पास" रीना ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
"कब तक रहोगी वहाँ ?" सबीर ने पूछा ।
रीना ने कहा " किराए का घर मिलने तक वहाँ रहूँगी ।”
“रीना, मुझे अपनी स्थिति स्पष्ट करने का एक मौक़ा दो, फिर जो चाहो करना मैं नहीं रोकूँगा.!"
फिर याचना भरी नज़रों से हाथ जोड़ता हुआ रीना की आँखों में देखता हुआ कहता है " मैं बहुत टूट चुका हूँ...तुम्हारे प्रेम के सहारे जीने की थोड़ी कोशिश की है..ये अधिकार मुझसे मत छीनो!"
रीना रूक जाती है... दोनों पूर्व की तरह तैयार होकर विद्यालय जाते हैं । वापस आकर सबों के बीच दोनों बैठे, सामान्य बातें हुईं । डिनर के बाद दोनों अपने कमरे में गये.. सबीर, रीना का सर अपने गोद में लेकर कहना शुरू किया....
"रीना, पाँच वर्ष पूर्व मेरी शादी लीना से हुई थी..हम एक दूसरे से प्यार करते थे। तब हमलोग दोनों ही केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षक थे,हमने घर पर बताया,उसने भी अपने घर पे बताया, सबों की सहमति से हमारी शादी हो गई । लव मैरिज थी, किसी ने दहेज की बात नहीं की.. पर एक सप्ताह बाद मेरे मम्मी पापा ने हीरे की एक सेट और एक बाइक की माँग रख दी... कहा घर से लेकर आओ, नहीं तो वापस चली जाओ.. उसे मारते.. वो माँ बनने वाली थी, तब भी उसके साथ मुरव्वत नहीं करते... अंत में उसे मैंने उसके मायके छोड़ आया.. और उसके मम्मी पापा से हाथ जोड़कर कहा ... कुछ दिनों में स्थिति सामान्य होगी तो मैं ले जाऊँगा।मैं तो आकर मिलता ही रहूँगा ।पाँच महीने बाद बेटी का जन्म हुआ.. मैं तो जाता ही था, उस समय भी गया, पर मेरे मम्मी पापा नहीं गये!"
"रीना मेरी बेटी दो वर्ष की हो गयी ,पर मैं उसे घर नहीं ला सका.. उल्टे मम्मी पापा मेरी दूसरी शादी की बात करने लगे....मनीषा ने उसे ये बात बता दी... फिर तो लीना की रही सही उम्मीद भी जाती रही.. उसने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली..."
और बेटी? रीना ने पूछा ।
"वो अपने नाना नानी के साथ रहती है ।"
"सबीर तुमने अलग रहकर लीना को क्यों नहीं लाया? ये तुम्हारी कमजोरी थी..तब कहाँ था तुम्हारा पौरुष?"रीना ने सबीर पर आरोप लगाया।
"इस गलती के लिए तो मैं ख़ुद को कभी माफ़ नहीं कर पाया रीना.." सबीर ।
"अगर उसके नाना नानी तैयार हों तो हम उसके घर जाकर बेबी को ले आएँ और उसे उसका हक दें!"रीना।
बिलकुल रीना... अगर ऐसा हो सके... सबीर ने कहा।
दूसरे दिन सबीर और रीना , लीना के पिता से पूछकर उसके घर जाते हैं.. बेबी तो आती नहीं इनके पास... पर रीना में शायद उसे कुछ लीना का अक्स दिखा.. थोड़ा पास आई.. फिर भी रीना ने सबीर से कहा " तुम जाओ, एक सप्ताह मैं इसके साथ रहूँगी.. तब ये मुझे अपनी मॉम समझने लगेगी.. फिर तुम आना, हमलोग इसे लेकर घर चलेंगे! घर में कहना मैं मौसी के पास हूँ!"
एक सप्ताह बाद रीना और सबीर बेबी "क़ायशा" को लेकर घर में प्रवेश करते हैं... सासु माँ को उसे देखते जैसे बिच्छू ने काट लिया हो.. कहती हैं " कौन है ये? क्यों ले कर आये हो उसे?"
"मम्मी जी, ये मेरी बेटी है, आप लोग को कोई असुविधा हो तो हम किराए के फ़्लैट में चले जाएँगे!" रीना ने तेवर दिखाते हुए कहा ।
सासु माँ ने सर झुकाए धीरे से कहा.. " ये तुमलोग का घर है चाहे जो भी अनर्थ करो!"
"माँ हमने तब अनर्थ किया था.. अब तो हम दोनों अर्थ की बातें ही करेंगे!" सबीर ने सीना तान कर कहा!
- रंजना बरियार
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