गुल्लक

 मैं और मेरा भाई , माँ - पापा जबलपुर में रहते थे पापा बैंक में काम करते थे । , पापा की पोस्टिंग उसी साल पास के एक गाँव में उनकी पोस्टिंग हो गई । हम अपनी पढ़ाई की वजह से उनके साथ न जा सके माँ को भी हमारे साथ ही रहना पडा पापा ने हर वीकेंड पर आने का वादा किया और छुट्टियों में अपने साथ ले जाने की बात भी कह दिया । हम सबने पापा को भीगी आँखों से विदा कर दिया क्योंकि अकेले हम कभी नहीं रहे थे । हमारे आँसुओं का एक कारण यह भी था कि जब हम बहुत छोटे थे और स्कूल में सबको पिपरमिंट ख़रीदता देख पापा से पैसों की ज़िद करते थे । एक दो बार उन्होंने पैसे दिए तो थे पर उन्हें हमारी यह आदत अच्छी नहीं लगी, बहुत सोच विचार कर उन्होंने एक उपाय खोजा ।

एक दिन शाम स्कूल से आकर हम खेल रहे थे उन्होंने आफिस से आते ही हमें बुलाया सोचा कुछ खाने के लिए लाए होंगे, भाई ने कहा नहीं दी शायद खिलौना है इसी उधेड़बुन में हम घर पहुँचे । पापा ने कहा आँखें बंद करो कुछ सरप्राइज़ है । हमने आदत के अनुसार हाथों को आगे बढ़ाया और आँखें भी बंद की कुछ भारी सी चीज़ हमारे हाथ में रखकर पापा ने कहा अब आँखें खोलो देखा गुल्लक थी , हमारे समझ में कुछ नहीं आया पापा ने कहा आज से यह आप लोगों का बैंक है बिना खाते वाला, अब भी हमारे समझ में कुछ नहीं आया उन्होंने कहा जब भी मैं शाम को ऑफिस से आऊँगा जितनी भी चिल्लर मेरे जेब में होगी मैं आधा - आधा आप दोनों को दे दूँगा स्कूल में पिपरमिंट के पैसे भी सप्ताह में एकबार गुल्लक में जाएँगे , खेल मज़ेदार था महीने में एकबार गुल्लक खोलकर पैसे गिनेंगे और उन पैसों से हम अपनी मन पसंद चीज़ ख़रीद सकते थे । हम दोनों बड़े ख़ुश थे और ज़्यादा से ज़्यादा पैसा इकट्ठा करने की होड़ में रहते थे । चोरी नहीं , छीना झपटी नहीं , किसी से माँगना नहीं यह कुछ नियम भी थे । अब जब पापा जा रहे थे इसलिए आँखों में पानी था कि अब रोज़ - रोज़ के पैसे नहीं मिलेंगे । पापा ने हँसते हुए कहा जब वीकेंड में मैं आऊँगा तब आपके लिए सप्ताह भर का चिल्लर लाकर दोनों में बाँट दूँगा यह सुनकर हमें ख़ुशी हुई और हम दोनों वीकेंड का इंतज़ार करते थे पापा के आते ही पैसे गिनकर आधा -आधा बाँट लेते थे और पूछते थे पापा फिर कब आओगे पापा हँसते हुए कहते थे जब मैं जाऊँगा तभी तो आऊँगा न , क्या दिन थे वे भी । तीन साल तक यह सिलसिला चलता रहा और पापा वापस जबलपुर आ गए ।

हम बड़े हो गए पापा -माँ भी नहीं रहे पर अब तक मेरे पास वह गुल्लक है और अब भी मैं उसमें पैसे डालकर रखती हूँ । बहुत कोशिश की बच्चों को भी यह आदत डालूँ पर नाकाम रही । पति या बच्चों को चिल्लर की ज़रूरत पड़ती है तो कहते हैं चलो भाई अपने गुल्लक से दे दो फिर वापस कर देंगे , उनकी बातों से हँसी आती है ।

Kameshwari karri


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